31 दिसंबर 2025,

बुधवार

Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

अब खेती के खतरों का कवच बन रहा एआइ

डॉ. सचिन बत्रा, वरिष्ठ पत्रकार एवं तकनीकी विशेषज्ञ

3 min read
Google source verification

अब तक हमारे देश के किसान खेती में अनगिनत खतरों से अकेले लोहा लेते हुए नफा-नुकसान की पेचीदा पहेली ही नहीं वांछित मात्रा में फसल उत्पादन की चुनौतियों को सुलझाने में जुटे थे। उत्पादन के लक्ष्य को हासिल करने में उसके सामने कई बाधाएं, हरियाली का आखेट कर लेती थीं, कभी मौसम की मार तो कभी कीटों का वार, यही नहीं कभी-कभी तो यह आंकलन करना भी मुश्किल था कि आखिर मिट्टी को कितनी खाद या वांछित पानी देना है और फसल के रोगों का सटीक निराकरण या उपचार क्या है। लेकिन अब इन सवालों का जवाब आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस यानी एआइ देने को तैयार है।
अगर दुनिया की बात की जाए तो जर्मन कंपनी पीइएटी ने ‘प्लॉटिक्स’ एआइ एप विकसित किया है। जिसमें एक किसान कीट संक्रमित या मौसमी रोग की चपेट में आई फसल का मोबाइल से फोटो खींचकर ‘इमेज रिकॉग्निशन’ व डीप लर्निंग तकनीक के एआइ एप से समस्या की पहचान कर, समाधान का ज्ञान हासिल कर सकता है। इसी प्रकार अमरीका में अब ‘फार्मबॉट’ जैसे रोबॉट भी खेती में सिंचाई, जल प्रबंधन व निगरानी के लिए लोकप्रिय हो रहे हैं। इस परिशुद्ध खेती ने खाद और कीटनाशकों का खर्च आधा कर दिया है। दिलचस्प बात यह है कि एआइ आधारित हार्वेस्ट सीआरओओ और एग्रोबॉट फसल उगा रहे हैं। वहीं इकोरोबॉटिक्स कीटनाशकों के न्यूनतम उपयोग में सटीक साबित हो रहे हैं। ऐसे ही इजराइल में तो कई कंपनियां कृषि में एआइ स्टार्टअप के लिए अपना दमखम आजमा रही हैं। जैसे ‘तारानिस’ कंपनी अपने एआइ एप से फसल की सेहत जांच व निगरानी करती है, ‘प्रोस्पेरा’ अपने एप से फसल प्रबंधन, ‘प्साइटेक’ के एआइ औजारों से नियंत्रित सिंचाई, ‘फील्डइन’ कंपनी पेस्ट मात्रा व रोग का आंकलन और ‘इक्विनॉम’ कंपनी एआइ औजारों से बीजारोपण व गुणवत्ताक उत्पादन के लिए अपने एआइ टूल्स का उपयोग कर खेती को अधि्क सुरक्षित व मुनाफे का कारोबार बनाने में सहायक साबित हो रही है।
हमारे देश में भी खेती को रक्षा कवच और उत्पादन को गुणवत्ताक गति देने के लिए एआइ आधारित शोध व समाधान का अभियान चल रहा है। सरकारी ही नहीं गैर सरकारी प्रयास भी इसमें मील का पत्थर कायम करने में कोई कसक नहीं छोड़ रहे। देश में पहली बार भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद व भारतीय धान अनुसंधान संस्थान ने एआइ आधारित ‘क्रिसपर क्रास9’ तकनीक से जीनोम एडिटेड धान की दो किस्में ‘सुमला’ डीआरआर धन 100 और ‘पुसा’ डीएसटी राइस 1 विकसित की हैं। जो कम पानी में अ‘छी उपज और जलवायु अनुुकलन में सफल साबित हुई। इसी प्रकार भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, राजस्थान में एआइ आधारित ड्रोन सेंसिंग तकनीक से फसलों की निगरानी, कीटों की पहचान सहित दवा व वांछित मात्रा का उपयोग कर रहा है। इसी प्रकार कीट नियंत्रण के लिए आइआइटी खडग़पुर के विद्यार्थियों ने ‘क्रॉपसेंस’ नामक एआइ प्रणाली इजाद की है जो मिट्टी की उर्वरा क्षमता और फसलों की सेहत के मामले में डिजिटल डॉक्टर साबित हो रही है। फायदा यह भी हुआ कि लागत भी कम हुई और कीटनाशकों के कम उपयोग से पर्यावरण भी संतुलित रहा। हैदराबाद में भी एक स्टार्टअप कंपनी ‘फैसल’ ने एआइ एप उपयोग करते हुए सिंचाई में 40 प्रतिशत पानी की बचत करते हुए जल संरक्षण में सफलता प्राप्त की है। इसी प्रकार पंजाब में किसान मित्र एआइ परियोजना के जरिए किसान मौसम का सटीक अनुमान लगाते हुए 18 फीसदी लाभ प्राप्त करने में कामयाब हुए हैं। उल्लेखनीय है कि ‘मेक एआइ इन इंडिया एंड मेक एआइ वर्क फॉर इंडिया’ विजन के तहत भारत सरकार ने 900 करोड़ की वित्तीय सहायता की घोषणा की है। हाल ही गूगल ने भी भारतीय खेती में बदलाव के लिए अपना एग्रीकल्चरल मॉनिटरिंग एंड इवेंट डिटेक्शन ‘अमेड’ एप्लीकेशन प्रोग्रामिंग इंटरफेस एपीआइ पेश किया है। यह पूरे भारत में फसल और खेती को ट्रैक कर आंकड़े इकट्ठा करते हुए उत्पादन बढ़ाने के उपकरण विकसित करने में मदद करेगा। खास बात यह है कि गूगल डीपमाइंड के शोधकर्ता एम्प्लीफाई इनीशिएटिव के माध्यम से आइआइटी खडग़पुर के साथ साझेदारी में किसानों को फसल की बुवाई-कटाई ही नहीं फसल बोने के लिए उपयुक्त तारीख और समय भी बताएगा।
नीति आयोग की 2021 की रिपोर्ट को आधार माना जाए तो एआइ के उपयोग से कृषि उत्पादकता में अधि्कतम 25 फीसदी की वृद्धि संभव है। इसी प्रकार सीएजीआर की हालिया रिपोर्ट में एआइ आधारित रूपांतरण के चलते कृषि क्षेत्र में 2.1 प्रतिशत की बढ़ोतरी का अनुमान लगाया गया है। माना जा रहा है कि पूरी दुनिया में एआइ का जादू हरियाली और खाद्यान्न सुनिश्चितता को रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंचा देगा। सीएजीआर की रिपोर्ट के मुताबिक वैश्विक स्तर पर कृषि बाजार 2023 में जहां 1.7 बिलियन डॉलर था वह 2028 तक उछलकर 4.7 बिलियन यूएस डॉलर तक पहुंच जाएगा। कुल मिलाकर भारत सरकार और निजी कंपनियां एआइ औजारों के माध्यम से एक नए हरित आंदोलन की क्रांतिकाारी बुनियाद तय करने में जुट गई है। आने वाले समय में अन्य रोजगार और व्यापार की तरह खेती भी कारोबार का खिताब हासिल कर लेगी और हमारा देश एआइ सुरक्षित कृषि प्रधान देश बन जाएगा।