
प्रतीकात्मक तस्वीर (AI)
नशे की बढ़ती प्रवृत्ति गंभीर चिंता का सबब बनी हुई है। नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो को विभिन्न मादक पदार्थ कानून प्रवर्तन एजेंसियों (डीएलईए) ने एनडीपीएस (नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस) एक्ट के तहत दर्ज मामलों के आँकड़े उपलब्ध कराए हैं। उसके अनुसार राजस्थान में वर्ष 2024 में (सितंबर तक) एनडीपीएस एक्ट के तहत ड्रग्स से संबंधित 4499 मामले दर्ज किए गए। सबसे ज़्यादा दर्ज मामलों की सूची में राजस्थान देश में पांचवें स्थान पर है। 2022 में 3778 मामले और 2023 में 5098 मामलों के बीच दर्ज मामलों की संख्या में यह 16 प्रतिशत की वृद्धि है। यह वृद्धि केरल में 14 प्रतिशत (केरल सूची में सबसे ऊपर है) और पंजाब में 25 प्रतिशत की तुलना में कहीं ज़्यादा है।
एनसीआरबी की नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार राजस्थान दूसरा ऐसा राज्य रहा जहां पंजाब के बाद ड्रग ओवरडोज से होने वाली मौतों की संख्या सबसे ज़्यादा थी। ये आँकड़े राजस्थान में नशीली दवाओं की बढ़ती समस्या की गंभीरता को दर्शाते हैं। खासतौर पर राज्य के युवाओं को नशे की लत में धकेला जा रहा है। इस बात की भी आशंका बढ़ी है कि ये युवा धीरे-धीरे नशे की चपेट में आ रहे हैं। समस्या के समाधान के लिए सबसे पहले हमें इसके कारणों की तह में जाना पड़ेगा। सार्वजनिक रूप से जो सीमित जानकारी उपलब्ध है, उसके अनुसार पंजाब में हमारी सीमाओं पर हर 20–30 किलोमीटर पर निगरानी बटालियन है जबकि राजस्थान में प्रत्येक 50 किलोमीटर पर बटालियन है।
निगरानी की कमी के चलते सीमा पार तस्कर ड्रग्स तस्करी के लिए राजस्थान को ठिकाना बना रहे हैं। विशेषकर श्रीगंगानगर, बीकानेर और बाड़मेर तस्करों का अड्डा बन रहे हैं। रिपोर्ट्स हैं कि सीमा पार से नशे की खेप की तस्करी के लिए ड्रोन का इस्तेमाल भी बढ़ा है। हालिया घटनाक्रमों के मद्देनजर, यह स्पष्ट है कि सीमा पार तस्करी के लिए राजस्थान को सप्लाई हब बनाया जा रहा है। नशीले पदार्थों का कारोबार, जो पहले स्थानीय स्तर पर बिखरे हुए लोगों द्वारा चलाया जाता था, आज विभिन्न राज्यों में एक संगठित गिरोह के रूप में पनप गया है। आज विभिन्न पड़ोसी राज्यों से नशे की खेप आ रही है जो खुद ही पिछले कई दशकों से इसी समस्या से जूझ रहे हैं। वास्तव में, राज्यों में भी नशीले पदार्थों का उत्पादन बढ़ती समस्या बना है।
ऐसा देखा गया है कि ड्रग्स सिंडिकेट खासकर समाज के कमजोर वर्गों जैसे युवाओं और कम आय वाले समुदायों को निशाना बनाते हैं। वे उन्हें कम शक्तिशाली ड्रग्स से शुरू कराते हैं, इस उम्मीद में कि बाद में उन्हें अत्यधिक रासायनिक नशीले पदार्थों की लत लग जाएगी। हमें ऐसे आदर्श व्यक्तियों की आवश्यकता है जो लोगों को ड्रग्स के इस्तेमाल से रोकें और उनकी लत छुड़ाएं। ड्रग्स की लत से जुड़ी एक खास समस्या भी है।
वह यह कि लोग ऐसे मुद्दों पर बात करने में असहजता महसूस करते हैं। परिणाम यह होता है कि प्रभावित लोगों को परिजनों, मित्रों और पेशेवर लोगों से मदद लेने में मुश्किलें होती हैं। एक अन्य गंभीर मुद्दा बुनियादी ढांचे का भी है। भारत सरकार के सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय के अनुसार, राजस्थान में सरकार से वित्तपोषित सिर्फ 28 नशामुक्ति केंद्र (व्यसनी एकीकृत पुनर्वास केंद्र, समुदाय पीयर लीड इंटरवेंशन्स और आउटरीच एंड ड्रॉप-इन सेंटर) हैं और केवल 7 जिला नशामुक्ति केंद्र हैं। जबकि निजी केंद्र काफ़ी महंगे हैं।
वर्ष 2023 की एक रिपोर्ट में सामने आया है कि केंद्र और राज्य सरकार से जागरूकता के लिए धन तो आवंटित किया जा रहा है, लेकिन जमीनी स्तर पर क्रियान्वयन बेहद निराशाजनक है। सरकार को बहुआयामी रणनीति लागू करने की दिशा में कदम उठाना चाहिए। आखिर में यही, सरकार के जन-जागरूकता अभियान प्रभावी होने चाहिए। ये अभियान ऐसे हों जो विभिन्न जनसांख्यिकी को संबोधित कर सकें। सरकार को इस मुद्दे पर काम कर रहे विचारकों और विशेषज्ञों को साथ लेते हुए उनकी क्षमताओं का लाभ उठाना चाहिए। हमें इस समस्या की गहराई, भयावहता को समझना होगा। कहीं देर न हो जाएं, इससे पहले हमें कार्रवाई करनी होगी।
4439 मामले राजस्थान में दर्ज हुए एनडीपीएस एक्ट के तहत ड्रग्स से संबंधित (वर्ष 2024 में सितंबर तक)।
→ पिछले वर्षों की तुलना में मामलों में 36% वृद्धि दर्ज हुई है।
Published on:
16 Sept 2025 08:08 pm
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