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‘यात्रा’ में भटकी कांग्रेस, रणनीतिकार एक बार फिर विफल

कांग्रेस के रणनीतिकार एक बार फिर विफल होते दिखाई दे रहे हैं। राहुल गांधी को अपनी ‘भारत जोड़ो न्याय यात्रा’ में कदम-कदम पर मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। कभी यात्रा को किसी राज्य में प्रवेश नहीं करने दिया जाता तो कभी मार्ग बदलना पड़ता है।

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bhuwanesh jain article


कांग्रेस के रणनीतिकार एक बार फिर विफल होते दिखाई दे रहे हैं। राहुल गांधी को अपनी ‘भारत जोड़ो न्याय यात्रा’ में कदम-कदम पर मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। कभी यात्रा को किसी राज्य में प्रवेश नहीं करने दिया जाता तो कभी मार्ग बदलना पड़ता है। प. बंगाल में तो, जहां ‘इंडिया’ गठबंधन के घटक दल तृणमूल कांग्रेस की सरकार है, राहुल गांधी की कार पर कथित पथराव तक हो गया।

 

देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस पिछले कुछ वर्षों से अपनी खोई प्रतिष्ठा पुन: हासिल करने के लिए जूझ रही है। लेकिन बार-बार यह बात साबित हो रही है कि पार्टी के पास या तो अच्छे रणनीतिकार नहीं बचे हैं, या फिर उनकी सलाह मानी नहीं जाती। अभी सबसे बड़ा सवाल भारत जोड़ो न्याय यात्रा के समय को लेकर ही उठ रहा है। मार्च के दूसरे पखवाड़े में जब यह यात्रा समाप्त होगी, तब तक शायद देश में लोकसभा चुनाव का कार्यक्रम घोषित हो चुका होगा या होने वाला होगा। ऐसे में फरवरी और मार्च के महीने कांग्रेस के लिए लोकसभा चुनाव की तैयारी के हिसाब से महत्वपूर्ण समय है। ऐसे समय पार्टी की पूरी ऊर्जा केवल यात्रा के आयोजन और उससे जुड़े विवादों से जूझने में लग जाए, यह अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारने जैसा होगा।

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दूसरी ओर, सत्तारूढ़ राजग का नेतृत्व करने वाली भारतीय जनता पार्टी रणनीति बनाने और उसे सफलतापूर्वक अंजाम तक पहुंचाने में कांग्रेस से बहुत आगे निकल चुकी है। चुनाव की दृष्टि से यह जरूरी है कि दोनों प्रमुख दल अपने-अपने गठबंधन सहयोगियों को मजबूती से अपने साथ जोड़ लें। इस दृष्टि से कांग्रेस को एक के बाद एक विफलता हाथ लग रही है। ‘इंडिया’ गठबंधन का स्वरूप अभी औपचारिक बैठकों से बाहर नहीं आ पा रहा है। तेईस जून को पटना के बाद बेंगलूरु, मुंबई और दिल्ली में बैठकें हो चुकी हैं, लेकिन सीट शेयरिंग सहित किसी भी मुद्दे पर बात आगे नहीं बढ़ पा रही है। तृणमूल कांग्रेस प. बंगाल में और आम आदमी पार्टी पंजाब में अकेले चुनाव लड़ने का ऐलान कर चुकी है। नीतीश कुमार तो ‘इंडिया’ से अलग होकर पुन: राजग का हाथ थाम चुके हैं। कांग्रेस के साथ संकट यह है कि एक तो वह ‘बड़ा’ होने का गुमान छोड़ने को तैयार नहीं है और दूसरे यात्रा की व्यस्तता के चलते उसके पास इन ‘कम महत्त्व’ के विषयों पर सलाह-मशविरा करने का समय नहीं है। दूसरी ओर, भाजपा कभी राममंदिर में प्राण प्रतिष्ठा करवा कर, कभी कर्पूरी ठाकुर के बहाने समाजवादी वोटों में सेंध लगा कर तो कभी नीतीश को अपने साथ जोड़ कर सधे कदमों से अपनी रणनीति पर आगे बढ़ रही है।

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इस बात से कौन इनकार करेगा कि स्वस्थ लोकतंत्र के लिए मजबूत विपक्ष भी जरूरी है। देश की जनता चाहती है कि कांग्रेस पहले विपक्षी पार्टी के रूप में तो मजबूत बने। उसके लिए पार्टी को संगठन, मैदान और रणनीति जैसे हर मोर्चे पर एक साथ काम करना होगा। लेकिन पूरी पार्टी अभी ‘यात्रा’ में ही अटक कर रह गई। चुनाव के नजदीक आते दिनों और भाजपा के कदमों को देखते हुए बेहतर तो यह होता कि पार्टी राहुल गांधी की यात्रा को स्थगित या कम से कम छोटा कर देती। पर ऐसा होगा नहीं। पिछली ‘भारत जोड़ो यात्रा’ के बाद भी पार्टी को फायदा कम, नुकसान ज्यादा हुआ था। समय तो कम बचा है, पर कांग्रेस को सोचना जरूर चाहिए।