12 दिसंबर 2025,

शुक्रवार

Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

संघर्ष को सलाम: ढाबे में जूठे बर्तन धोए, लोगों को चाय पिलाई, अब भारत को दिलाएगी स्वर्ण पदक

कुछ साल पहले तक अपने ढ़ाबे के अलावा कविता और उनके परिवार का कुछ और सहारा और ठिकाना नहीं हुआ करता था।लेकिन आज भारतीय कबड्डी टीम की स्टार डिफेंडर कविता ठाकुर को आज कौन नहीं जानता ?

2 min read
Google source verification

image

Prabhanshu Ranjan

Aug 20, 2018

संघर्ष को सलाम: ढाबे में जूठे बर्तन धोए, लोगों को चाय पिलाई, अब भारत को दिलाएगी स्वर्ण पदक

संघर्ष को सलाम: ढाबे में जूठे बर्तन धोए, लोगों को चाय पिलाई, अब भारत को दिलाएगी स्वर्ण पदक

नई दिल्ली । दृढ़ हौसलों और कड़ी मेहनत के साथ कामयाबियों की बुलंदी छूती भारतीय कबड्डी टीम की स्टार डिफेंडर कविता ठाकुर को आज कौन नहीं जानता । आज कविता उस मुकाम पर पहुंच चुकी है जहां पहुंचना कइयों का सपना होता है । आज कविता के पास तमाम सुख-सुविधाएं हैं।पर कविता ने यह सब कुछ अपनी कड़ी मेहनत के बलबूते हासिल किया है।एक छोटे से गांव के गरीब परिवार में पली और बड़ी हुई कविता का अब तक का सफर किसी फ़िल्मी कहानी से काम नहीं है । बचपन और किशोरा अवस्था में कविता और उनके परिवार को कई रातों तक भूखे सोना पड़ता था । कुछ साल पहले तक अपने ढ़ाबे के अलावा कविता और उनके परिवार का कुछ और सहारा और ठिकाना नहीं हुआ करता था ।

कभी सिर्फ पेट भरने के लिए लिए करना पड़ता था संघर्ष
हिमाचल प्रदेश के मनाली से छह किलोमीटर दूर जगतसुख गांव की कविता ठाकुर और उनका परिवार कभी बस अपना पेट भरने के लिए दिन-रात मेहनत किया करते थे । लेकिन अब ऐसा वक्त आ गया उनके पास वो हर चीज है जिसे कोई भी पाना चाहता है। 2007 में जब कविता ने स्कूल से कबड्डी खेलना शुरू किया था तो उन्होंने कबड्डी का चयन बस इसलिए किया था क्योंकि इस खेल में कुछ खास पैसे नहीं खर्च करने पड़ते हैं ।

ठंड रातों में फर्श पर सो कर काटनी पड़ती थी रातें
कविता बताती हैं ''सर्दियों में हम दुकान के फर्श पर सोते थे, जो बर्फ जैसा ठंडा हुआ करता था। लेकिन हमें ठंड में फर्श पर ही सोना पड़ता था। हमारे पास गद्दे खरीदने के लिए भी पैसे नहीं हुआ करते थे। कई बार पैसों के कारण हमें भूखे रहना पड़ता था । जब मैं अपने माता-पिता के साथ ढ़ाबे पर काम करती थी, मैं बर्तन धोने, फर्श साफ करने के लिए अलावा कई और भी काम किया करती थी। मेरा बचपन और किशोरावस्था काफी संघर्षों में बीता।'' आपको बता दें कविता की बहन भी अच्छी कबड्डी खेलती थी लेकिन आर्थिक तंगी के कारण वो अपना सपना पूरा नहीं कर पाई ।

माँ ने बताया सर पर छत आई बेटी के कारण
2014 के एशियाड में गोल्ड मेडल मिलने के बाद कविता अचानक से चर्चा में आई और इसके बाद राज्य सरकार ने भी उन्हें कुछ आर्थिक सहायता दी ।उसके बाद कविता ने कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा । कविता की मां कृष्णा देवी कहती हैं कि "यह कविता की कड़ी मेहनत का परिणाम है, जिससे हमारे सर पर आज छत है। कुछ साल पहले तक तो हम ढाबे के अलावा और कहीं रहने की सोच भी नहीं सकते थे। मेरी इच्छा है कि मेरी बेटी देश के लिए और ख्याती प्राप्त कर सके।

भारतीय कबड्डी टीम के नाम अनोखा रिकॉर्ड
कविता ठाकुर इस बार भी एशियन गेम्स में भारतीय कबड्डी टीम का प्रतिनिधित्व कर रही हैं। साल 2014 में हुए एशियन गेम्स में भारत को गोल्ड मेडल दिलाने में भी कविता का अहम योगदान था।आपको बता दें भारतीय कबड्डी टीम ने पुरुष और महिलाओं के मुकाबलों में हर बार स्वर्ण जीता है। यह अपने आप में एक बड़ा विश्व रिकॉर्ड है । उम्मीद है इस बार भी भारत की कबड्डी टीम एशियाई खेलों में स्वर्ण ही जीतेगी ।