16 अगस्त 1988 को अजमेर में जन्मी राखी ने अजमेर से ही बीए तथा एमए की शिक्षा ली। इसके बाद आइटीआइ इलेक्ट्रोनिक में दाखिला लिया। जब 2012 की रेलवे भर्ती बोर्ड में असिस्टेंट लोको पायलट की भर्ती निकली तो प्रथम प्रयास में ही चयन हो गया। लेकिन, यहां से राखी का कड़ा संघर्ष शुरू हो गया। पुरुषों के वर्चस्व वाले इस कार्यक्षेत्र में खुद को साबित करना किसी चुनौती से कम नहीं था। रेलवे का भारी भरकम इंजन तो चलाना ही था, दिन-रात की रनिंग नौकरी, पुरुष प्रधान रनिंग रूम में जाकर ठहरना, फिर देर रात्रि में कभी ड्यूटी आने पर इंजन चलाना, इंजन की जांच करना, ऑयल के साथ ही प्रेशर व वॉल्व चेक करना सरीखे कई ऐसे काम हैं, जो शुरुआती दौर में काफी कठिनाई भरे थे। उसमें भी सर्दी, गर्मी व बरसात के समय इंजन की खिडक़ी पर बैठकर रेल की पटरियों पर इंजन को चलाना और कागजी कार्यवाही पूर्ण करना भी चुनौती रहा। लेकिन, राखी ने सभी जिम्मेदारियों को निभाकर खुद को साबित किा। आज वह पिछले पांच वर्ष से लोको पायलट के रूप में खुद को साबित कर रही है। वर्तमान में राखी अजमेर रेल मंडल के आबूरोड मुखयालय पर लोको पायलट (इंजन चालक) के रूप में कार्यरत है। राखी जब मालगाड़ी लेकर निकलती है, तो उसका स्टॉपेज मारवाड़ जंक्शन भी होता है।
बॉर्डर पर बेटियां भी तो हो रही तैनात
बकौल राखी, ‘बॉर्डर पर भी तो बेटियां एके 47 गन लेकर खड़ी है, जो महीनों बाद ही घर पर लौट पाती है। हम तो फिर तो सप्ताह में एक रेस्ट लेकर बच्चों व परिजनों के पास पहुंच जाते हैं। हालांकि, मेरा भी इस क्षेत्र में आना आसान नहीं था। लेकिन, पिता अशोक कुमार की प्रेरणा मिली तो माता रतन देवी ने सदैव प्रोत्साहित किया। साथ ही पति रामकुमार राठौड़ व दो बच्चों का भी सहयोग है, जिन्होंने मुझे सदैव ऊर्जा प्रदान की। मेरा ये ही कहना हैं कि बेटियां खुद को कमजोर नहीं समझे और संघर्ष कर औरों के लिए मिसाल बनें।’