scriptlok sabha election 2019 : जानिये…इस चुनाव की रोचक कहानी, आखिर मतदाताओं को क्यों याद नहीं थे प्रत्याशियों के नाम? | lok sabha election 201: Pali Parliament Constituency election history | Patrika News

lok sabha election 2019 : जानिये…इस चुनाव की रोचक कहानी, आखिर मतदाताओं को क्यों याद नहीं थे प्रत्याशियों के नाम?

locationपालीPublished: Apr 20, 2019 04:14:46 pm

Submitted by:

rajendra denok

– भारत के भाग्य का चुनाव

third phase election, who will lead in 10 seats of Loksabha election

third phase election, who will lead in 10 seats of Loksabha election

पाली. वैसे तो ये लोकतंत्र की खूबसूरती का ही दृष्टांत है कि किसी भी चुनाव में मतदाता अपनी सहभागिता ज्यादा से ज्यादा निभाए। चाहे प्रत्याशी के रूप में या फिर मतदाता के रूप में। यह भी स्वस्थ लोकतंत्र का ही परिचायक है कि यहां चुनाव लडऩे की भी पूरी आजादी है। इसके लिए कुछ नियम-कायदों का पालन जरूर करना पड़ता है। पाली संसदीय सीट के इतिहास में भी जागरूकता के ऐसे कई उदाहरण है, जिसमें मतदाताओं ने खुलकर चुनावी प्रक्रिया में हिस्सा लिया था। यहां ऐसे ही दो चुनाव काफी यादगार और रोचक रहे हैं।
वर्ष 1996 व 1991 का आम चुनाव पाली संसदीय क्षेत्र के लिए सर्वाधिक चर्चित और रोचक माना जाता हैं। कारण, इन दोनों चुनावों में प्रत्याशियों की संख्या इतनी ज्यादा थी कि मतदाताओं के सामने उनके नाम और चुनाव चिन्ह् ठीक से याद रखना मुश्किल हो गया था। हालांकि, चुनाव लडऩे के रूप में आई यह जागरूकता कुछ चुनावों तक ही सीमित रही। लगभग हर चुनाव में प्रत्याशियों की संख्या घटती-बढ़ती रही है। आठ विधानसभा सीटों वाले इस संसदीय क्षेत्र में मतदान प्रतिशत की तरह सियासी मैदान में उतरने वाले प्रत्याशियों के ग्राफ में भी उतार-चढ़ाव की स्थिति बनी हुई है। पिछले दो चुनावों के मुकाबले इस बार प्रत्याशियों की संख्या घटी है।

इसलिए बन गए यादगार
पाली लोकसभा सीट के लिए प्रत्याशियों की संख्या का रिकॉर्ड 1996 के चुनाव के नाम दर्ज है। इस चुनाव में 43 प्रत्याशी मैदान में रहे थे। यह संख्या अब तक के लोकसभा चुनावों में सर्वाधिक है। इनमें 38 प्रत्याशियों ने निर्दलीय के रूप में भाग्य आजमाया था, जबकि पांच उम्मीदवार किसी न किसी राजनीतिक दल के प्रत्याशी के रूप में मैदान में रहे। 1991 में 33, 1989 में 18 एवं 1984 के चुनावों में 15 प्रत्याशियों ने चुनाव लड़ा था। 2014 व 2009 में भी 14-14 प्रत्याशी मैदान में थे। शेष चुनावों में दस से नीचे ही इनकी संख्या रही है।
नहीं बढ़े राजनीतिक दल
लोकसभा चुनाव में उतरने वाले राजनीतिक दलों की संख्या में कोई खास इजाफा नहीं हुआ है। 2019 के चुनावों में छह पार्टियां चुनाव लड़ रही है, जबकि दो निर्दलीय के रूप में मैदान में है। राजनीतिक दलों की संख्या में मामूली-सी घटत-बढ़त हर चुनाव में रही है। लोकतंत्र के शुरूआती वर्षों में चुनाव लडऩे वाले राजनीतिक दल ज्यादातर गायब हो गए है। अब कई नई पार्टियों ने जन्म लिया है। ये बात दीगर है कि नई-नवैली पार्टियां अपना जनाधार बढ़ाने में अब तक सफल नहीं हुई है। यहां मुख्य मुकाबला कांग्रेस-भाजपा में रहता आया है।
चार चुनावों में रही थी निर्दलीयों की बाढ़
निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में लोकसभा चुनाव लडऩे की हिम्मत हर कोई नहीं जुटा पाता। पाली संसदीय सीट के इतिहास में चार चुनाव ऐसे रहे हैं जिनमें निर्दलीय प्रत्याशी की बाढ़ आ गई। 1996 के चुनाव में 38 निर्दलीय प्रत्याशियों ने चुनाव लड़ा था। जबकि 1991 में 26, 1989 में 15 तथा 1984 के चुनाव में 12 प्रत्याशी निर्दलीय के रूप में मैदान में रहे हैं।
वोटों पर भी लगाई थी सेंध
1996 का चुनाव सिर्फ प्रत्याशियों की संख्या के लिहाज से ही चर्चित नहीं रहा था, इस चुनाव में निर्दलीय प्रत्याशियों ने वोटों में भी अच्छी सेंधमारी की थी। चुनाव जीतने में भाजपा के प्रत्याशी गुमानमल लोढ़ा अवश्य कामयाब रहे थे, लेकिन निर्दलीय प्रत्याशियों ने भी वोट बटोरने में कमी नहीं रखी। निर्दलीय मीठलाल जैन दूसरे स्थान पर रहे थे। अन्य निर्दलीय प्रत्याशियों ने भी काफी वोट हासिल किए थे।
सीट का सियासी सफर
वर्ष प्रत्याशी दल निर्दलीय
2019- 08-06-02
2014-14-07-06
2009-14-05-09
2004-09-04-05
1999-04-03-01
1998-08-06-02
1996-43-05-38
1991-33-07-26
1989-18-03-15
1984-15-03-12
1980-09-03-06
1977- 03-02-01
1971- 05-02-03
1967- 04-02-02
1962- 04-04-00
1957- 05-03-02
1951- 04-02-02

loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो