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आलाकमानों पर भारी पड़ रही पाली की ‘पंचायती’

locationपालीPublished: Nov 18, 2018 02:20:25 am

Submitted by:

Satydev Upadhyay

www.patrika.com/rajasthan-news

आलाकमानों पर भारी पड़ रही पाली की ‘पंचायती’,

आलाकमानों पर भारी पड़ रही पाली की ‘पंचायती’,

पाली. सियासत के गलियारों में ‘पाली की पंचायती’ खासी प्रसिद्ध है। कहावत बन चुकी पाली की इस हकीकत से अब सभी वाकिफ है। यह क्यों प्रसिद्ध है आप भी जान लीजिए। कांग्रेस अब तक १८४ सीटों पर प्रत्याशी तय कर चुकी है, लेकिन पाली, जैतारण, सुमेरपुर और बाली विधानसभा सीट पर नाम तय करने में आलाकमान को अब भी तनाव झेलना पड़ रहा है। प्रदेश में सिर्फ १६ सीटों पर उम्मीदवार तय होने हैं, इसमें अकेले पाली जिले की चार सीटें शामिल है। कांग्रेस ही नहीं, सुमेरपुर में प्रत्याशी का चयन करने को लेकर भाजपा भी ‘पाली की पंचायती’ की शिकार है।

पाली-जैतारण में बगावत का झंडा बुलंद
पाली सीट पर कांग्रेस 1980 के बाद कभी नहीं जीती। कांग्रेस के हारने का बड़ा कारण बगावत ही रहा। पार्टी के स्थानीय आपसी फूट से कभी नहीं उभरे। पार्टी को हर बार हार का सामना करना पड़ा। इन चुनावों में भी एेसी ही प्रबल आशंका है। आलाकमान का फैसला आने से पहले ही पूर्व विधायक भीमराज भाटी रविवार को सभा का एेलान कर चुके हैं। जैतारण में बागी नेता सुरेन्द्र गोयल पहले से ही भाजपा के लिए अड़ंगा बने हुए हैं। शनिवार को कांग्रेस नेता और पूर्व संसदीय सचिव दिलीप चौधरी ने भी पर्चा दाखिल कर एेसा ही संकेत दिया। इसी तरह, मारवाड़ जंक्शन सीट पर पूर्व मंत्री और भाजपा के प्रदेश उपाध्यक्ष लक्ष्मीनारायण दवे और कांग्रेस नेता खुशवीरसिंह जोजावर बगावत का झंडा बुलंद कर चुके हैं।
सुमेरपुर में अब भी फंसा है पेच
प्रत्याशी चयन करने के लिहाज से कांग्रेस के लिए सर्वाधिक मुश्किल सीटों में से एक है सुमेरपुर। यहां कांग्रेस के दो कद्दावर नेता बीना काक व दीवान माधवसिंह में से किसे उतारा जाए, यह तय करना मुश्किल है। यहां किसी तीसरे पर भी दावं खेलने पर विचार किया जा रहा, लेकिन पार्टी को सीट गंवाना हरगिज मंजूर नहीं। एेसे में सुमेरपुर सीट पर पार्टी अब सभी समीकरण साधने में लगी है। एेनवक्त पर यानि रविवार तक ही चेहरा सामने आएगा। भाजपा के लिए भी यह सीट समस्या की जड़ बनी हुई है। जबकि पार्टी की तीन सूचियां जारी हो गई।

इसलिए प्रसिद्ध हैं यह कहावत
सियासत में यह कहावत इसलिए प्रसिद्ध है कि स्थानीय नेताओं में कभी आम सहमति नहीं बनती। खासतौर से जिला मुख्यालय पर आपसी फूट आमबात है। कांग्रेस में अध्यक्ष पद को लेकर भी लम्बे समय तक विवाद चला था। कांग्रेस ही नहीं भाजपा में भी खींचतान कभी कम नहीं रही। तत्कालीन अशोक गहलोत सरकार के मंत्री आमीन खान को पाली में विवादास्पद बयान देने के कारण पद गंवाना पड़ा था। उन्होंने पाली की गुटबाजी के संदर्भ में भी बयान दिए थे।

गंभीरता से विचार

प्रदेश नेतृत्व जिताऊ उम्मीदवार तय करना चाहता है। इसलिए गंभीरता से विचार किया जा रहा है। आलाकमान जल्द नाम तय करेगा।
चुन्नीलाल चाड़वास, अध्यक्ष, कांग्रेस


समीकरण साध रहे
सुमेरपुर में कांग्रेस ने अपना नाम तय नहीं किया। इसलिए सभी समीकरणों पर विचार किया जा रहा है। आज कल में प्रत्याशी घोषित कर दिया जाएगा।
करणसिंह नेतरा, जिलाध्यक्ष भाजपा
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