सामान्य मवेशी की मौत होने पर भी कई किमी. दूर तक दुर्गंध जाती है। लेकिन तेदुए का शिकार होने के बाद संबंधित बीट गार्ड को एक माह से भी अधिक समय तक पता नहीं चल सका। इससे आशंका है कि वे जंगल ही नहीं जाते होंगे। जंगल के बाहर से ही डयूटी और वनय प्राणियों के सुरक्षा कर होंगे। यदि नियमित रूप से जंगल जा रहे होते तो शिकार की वारदात के साथ ही मांस और चमड़े के सडऩे से उठने वाली दुर्गंध के बारे में जरूर जानकारी होती। अभी भी वन विभाग के किसी कर्मचारी के बजाए एक मुखबिर द्वारा ही शिकार के वारदात की जानकारी दी गई थी। जिससे शिकार की घटना सामने आ सकी।
गौरतलब है कि बीते माह दक्षिण वनमंडल के पवई रेंज में भी तेंदुए और भालू के शिकार की वारदात सामने आई थी। जिसमें तेंदुएं और भालू का करंट लगाकर शिकार किया गया था। भालू का शिकार करने के बाद आरोपी उसके महत्वपूर्ण अंगों को काटकर ले गए थे। जिन्हें वन अमले ने बरामद करने के साथ ही आरोपियों को भी गिर तार कर लिया है।