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बिहार चुनाव में नाराज हुए थे कायस्थ, अब नितिन नबीन को बड़ी जिम्मेदारी… क्या BJP कर रही डैमेज कंट्रोल?

BJP National President: बिहार चुनाव के दौरान टिकट बंटवारे को लेकर कायस्थ समाज की नाराजगी सामने आई थी। अब भाजपा ने नितिन नबीन को पार्टी का राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष नियुक्त कर दिया है। जिसके बाद सवाल उठ रहे हैं कि क्या भाजपा इस फैसले के जरिए उस असंतोष को साधने की कोशिश कर रही है।

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पटना

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Anand Shekhar

Dec 14, 2025

BJP National President

भाजपा के राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष नितिन नबीन (फोटो- फेसबुक)

BJP National President: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के नतीजों के ठीक एक महीने बाद भारतीय जनता पार्टी ने एक बड़ा फैसला लेते हुए बांकीपुर से पांच बार के विधायक और बिहार सरकार में मंत्री नितिन नबीन को पार्टी का राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष नियुक्त किया। यह नियुक्ति 14 दिसंबर 2025 को हुई और इसके साथ ही नितिन नवीन BJP में एक टॉप पद पर पहुंच गए। यह फैसला ऐसे समय आया जब बिहार चुनाव में जीत के बावजूद पार्टी के भीतर और बाहर एक खास वर्ग (कायस्थ समाज) की नाराजगी खुलकर सामने आ चुकी थी। ऐसे में अब नितिन नबीन की ताजपोशी को लेकर यह सवाल उठने लगा कि क्या यह सिर्फ एक संगठनात्मक फैसला है या फिर चुनावी असंतोष को साधने का सोचा-समझा राजनीतिक कदम।

क्यों नाराज हुए थे कायस्थ?

बिहार चुनाव में भाजपा ने शानदार प्रदर्शन किया, लेकिन टिकट बंटवारे के दौरान कुछ फैसले पार्टी के लिए असहज स्थिति भी पैदा कर गए। खासकर, कायस्थ समुदाय में यह भावना थी कि बीजेपी ने इस बार उन्हें पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं दिया है। पार्टी के तीन कायस्थ विधायकों में से सिर्फ नितिन नवीन को टिकट मिला था, जबकि कुम्हरार से लगातार जीत रहे अरुण कुमार सिन्हा और नरकटियागंज की विधायक रश्मि वर्मा का टिकट काट दिया गया था। कुम्हरार जैसी सीट पर, जहां कायस्थ वोटरों की निर्णायक भूमिका है, वैश्य समुदाय के उम्मीदवार को उतारने के फैसले से कई संगठनों में नाराजगी थी।

कायस्थों की संख्या कम लेकिन असर बड़ा

कायस्थ समाज भले ही बिहार की कुल आबादी का बहुत छोटा हिस्सा हो, लेकिन उसका सामाजिक और प्रशासनिक प्रभाव ऐतिहासिक रूप से मजबूत रहा है। इस समाज ने बिहार को जय प्रकाश नारायण के समय से लेकर रविशंकर प्रसाद तक कई प्रभावशाली नेता दिए हैं। यही वजह है कि जब टिकट कटौती को अनदेखी के तौर पर देखा गया, तो असंतोष सिर्फ भावनात्मक नहीं रहा, बल्कि संगठित प्रतिक्रिया के रूप में सामने आया। अखिल भारतीय कायस्थ महासभा, चित्रगुप्त पूजा समिति और अन्य कायस्थ संगठनों के बयान और सार्वजनिक नाराजगी ने भाजपा नेतृत्व को यह संकेत दे दिया कि इस वर्ग को नजरअंदाज करना महंगा पड़ सकता है।

5 बार विधानसभा चुनाव जीत चुके हैं नितिन नबीन

ऐसे माहौल में नितिन नबीन को राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष बनाना सिर्फ एक व्यक्ति का प्रमोशन नहीं, बल्कि एक राजनीतिक संदेश भी माना जा रहा है। नितिन नबीन की पहचान केवल कायस्थ समाज तक सीमित नहीं है। वे लगातार पांच बार चुनाव जीत चुके नेता हैं और शहरी राजनीति में मजबूत पकड़ रखते हैं। उन्होंने पहले बार 2006 के उपचुनाव में पहली बार पटना पश्चिमी से जीत दर्ज की थी। छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव 2023 और लोकसभा चुनाव 2024 में उनकी रणनीतिक भूमिका को पार्टी नेतृत्व ने गंभीरता से नोट किया था।

डैमेज कंट्रोल या रणनीतिक संतुलन?

सीनियर पत्रकार लव कुमार मिश्रा के अनुसार, यह फैसला एकतरफा नहीं है। इसे सिर्फ़ डैमेज कंट्रोल कहना बात को बहुत ज्यादा आसान बनाना होगा, लेकिन इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि इस नियुक्ति से सबसे बड़ा राजनीतिक संदेश कायस्थ समुदाय को गया है। बीजेपी ने संगठन के सबसे ऊंचे लेवल पर प्रतिनिधित्व देकर विधानसभा चुनाव टिकटों के लेवल पर हुए असंतुलन की भरपाई करने की कोशिश की है। यह बीजेपी की पुरानी रणनीति का हिस्सा रहा है, जिसमें चुनावी हार या असंतोष को संगठनात्मक बदलावों के जरिए दूर किया जाता है।

लव कुमार मिश्रा कहते हैं कि नितिन नवीन की नियुक्ति से बीजेपी ने यह साफ कर दिया है कि वह सामाजिक बातों को नजरअंदाज नहीं करती है। पार्टी यह संदेश देना चाहती है कि प्रतिनिधित्व सिर्फ़ विधानसभा सीटों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि संगठन और पॉलिसी बनाने के लेवल पर भी उतना ही जरूरी है। नितिन नवीन को राष्ट्रीय ज़िम्मेदारी देकर, बीजेपी एक ऐसे नेता को बढ़ावा दे रही है जो भविष्य में पार्टी के प्रमुख राष्ट्रीय चेहरों में से एक बन सकते हैं।