
भारतीय सेना (Photo: IANS)
दुनिया के ज्यादातर मुल्कों में रक्षा बजट में बढ़ोतरी दर्ज की जा रही है। रक्षा बजट में नए और घातक हथियार के साथ ड्रोन और रोबोट की भी खरीददारी बड़े पैमाने पर होने लगी है। युद्धों में ड्रोन और रोबोट का इस्तेमाल भी तेजी से बढ़ रहा है। अब यह सवाल भी उठने लगा है कि क्या यह संभव होगा कि सेना पूरी तरह से ड्रोन और रोबोट पर निर्भर हो जाएगी? इस सवाल का जवाब जानने से पहले हमें ड्रोन और रोबोट की सेना में उपयोगिता को समझने की जरूरत है।
दुनिया के ज्यादातर देश अपने पड़ोसी देशों की सैन्य हरकतों या गतिविधियों पर नजर रखने के लिए ड्रोन की सहायता लेने लगा है। खासतौर पर युद्ध या युद्ध जैसी स्थिति में ड्रोन की उपयोगिता बढ़ जाती है। ड्रोन आकार में बहुत छोटे और आसानी से नहीं दिखने वाले आकार के होते हैं जिनके जरिए दुश्मन देश की सीमा में घुसकर आसानी से जानकारी जुटाकर दे सकते हैं। इसके साथ ड्रोन दुश्मन देश के खतरनाक इलाकों का पता लगाकर भी दे सकते हैं।
भारतीय सेना ने पहली बार पाकिस्तान में आतंकी ठिकानों को ध्वस्त करने के लिए ड्रोन का इस्तेमाल किया। ऑपरेशन सिंदूर के दौरान कामिकेज और स्काई स्ट्राइकर ड्रोन का इस्तेमाल किया था। आत्मघाती ड्रोन कामिकेज के इस्तेमाल से भारतीय सेना पाकिस्तान और पाक अधिकृत कश्मीर यानी पीओके में घुसकर आंतकी ठिकानों को तबाह कर दिया था। वहीं स्काई स्ट्राइकर ड्रोन का इस्तेमाल अचूक हमला करने में किया।
पहलगाम आतंकी हमलों के बाद भारत ने ऑपरेशन सिंदूर के दौरान ड्रोन के झुंड के जरिए मिलकर मिशन को अंजाम दिया। रूस और यूक्रेन के बीच लगभग तीन साल से चल रहे युद्ध के दौरान अक्सर यह देखा गया कि दर्जनों ड्रोन को एक साथ मिशन पर लगाकर हमले को अंजाम दिया गया। रूस ने यूक्रेन के खिलाफ अपने ऑरलान-10 (Orlan-10) जैसे टोही ड्रोन का इस्तेमाल बढ़चढ़ किया है। रूस ने ईरान से भी ज़ेरान-2 (Zeran-2) ड्रोन खरीदे हैं। वह यूक्रेन के खिलाफ इनका इस्तेमाल काफी कर चुका है। इस पैटर्न से सेना के मिशन में समन्वय स्थापित करने में मदद मिलेगी। सेना की दक्षता भी बढ़ जाती है।
युद्ध अब सिर्फ सेना की संख्याबल से नहीं लड़ा जा रहा है। युद्ध अब तकनीक से लड़ा जा रहा है। सेना में अत्याधुनिक हथियारों के साथ-साथ अब रोबोट का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल होने लगा है। रोबोट के इस्तेमाल से सैनिकों को जोखिमों से बचाने की कोशिश की जा रही है। रोबोट की मदद विस्फोटक ढूंढने या घायल सैनिकों तक पहुंचने में की जा रही है।
भारतीय सेना में रोबाल का इस्तेमाल होने लगा है। डीआरडीओ युद्ध के मोर्चे पर उच्च जोखिम वाले कार्यों से सैनिकों को बचाने के लिए रोबोटिक म्यूल, नैनो ड्रोन और ह्यूमनॉइड रोबोट जैसे विभिन्न रोबोटिक सिस्टम विकसित करने में जुटी है। डीआरडी का लक्ष्य है कि वह वर्ष 2027 तक ह्यूमनॉइड रोबोट विकसित कर लेगा।
रोबोट का इस्तेमाल पड़ोसी देशों से लगती सीमाओं की निगरानी के लिए भी किया जा रहा है। रोबोटिक म्यूल पहाड़ी इलाकों में खच्चर की जगह ले चुका है और इसका काम सेना के लिए रसद, सामान ले जाना और सीमा के इलाकों में गश्ती के लिए हो रहा है। सेना में इस्तेमाल किए जाने वाले रोबोट में हाई क्वालिटी के सेंसर और कैमरे लगे होते हैं जो दुश्मन के इलाकों की 3D इमेज तैयार कर देते हैं। इससे सेना को अपनी गतिविधियों को अंजाम देने में आसानी रहती है।
दुनिया में अमेरिकी सेना के पास सबसे ज्यादा 13 हजार से ज्यादा सैन्य ड्रोन हैं। अमेरिका के पास MQ-9 Reaper, RQ-4 Global Hawk और RQ-11 Raven ड्रोन हैं। अमेरिकी सेना इनका उपयोग दुश्मनों की निगरानी करने, दुश्मन देशों की जासूसी करने और अचूक हमले के लिए कर रहा है। तुर्की का Bayraktar TB2 ड्रोन दुनिया में बेहद लोकप्रिय है।
ड्रोन और रोबोट या तकनीक कभी भी इंसानों की जगह नहीं ले सकते। हां, यह जरूर है कि वह सेना की कार्यशैली को ज्यादा सक्षम और अचूक बनाने में सहयोग कर रहे हैं। युद्ध के लिए निर्णय लेना और मिशन को कहां अंजाम देना है, किसे मारना और किस को बचाना है आदि जैसे जटिल और नैतिकता से जुड़े निर्णय मशीनों की समझ से परे है। इसके साथ ही तकनीकी खामियां, तकनीकी उन्नति और हैकिंग के खतरे से मनुष्य ही निकाल पाएगा। यह भी सच है कि रोबोट और ड्रोन बारूदी सुरंगों, ड्रोन स्ट्राइक, मिसाइल की अटैक से सैनिकों को काफी हद सुरक्षित रख पाएंगे।
Updated on:
19 Sept 2025 10:15 am
Published on:
18 Sept 2025 04:27 pm
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