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नितिन नबीन को भाजपा अध्यक्ष बनाने के पीछे 5 सबसे ठोस वजहें, जानें क्या है?

जे.पी. नड्डा भी जून 2019 से जनवरी 2020 तक अमित शाह के राष्ट्रीय अध्यक्ष काल में राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष के रूप में काम कर चुके हैं, हालांकि बाद में उन्हें ही राष्ट्रीय अध्यक्ष भी बनाया गया।

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नितिन नबीन को बीजेपी ने बनाया राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष (Photo-IANS)

भाजपा के राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष के रूप में नितिन नबीन की नियुक्ति चौंकाती तो है, लेकिन बारीकी से देखने पर ऐसा लगता है, जैसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बहुत साहस और दृढ़ इच्छाशक्ति के साथ अपने उस विजन के क्रियान्वयन की दिशा में कदम आगे बढ़ा दिये हैं, जिसके तहत 15 अगस्त 2024 को देश के 78वें स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर लाल किले की प्राचीर से अपने भाषण में उन्होंने कहा था कि "देश तय करके चले कि आने वाले दिनों में एक लाख ऐसे नौजवान, जिनके परिवार का राजनीति में दूर-दूर का संबंध न हो, उनको राजनीति में लेंगे। इससे नई सोच आएगी, नई शक्ति आएगी और लोकतंत्र मजबूत होगा।" 

अपने उसी संबोधन में प्रधानमंत्री मोदी ने स्पष्ट कर दिया था कि "ऐसे एक लाख लोग, फ्रेश ब्लड, चाहे ग्राम पंचायत में आएं, नगर पालिका में आएं, जिला परिषदों में आएं, चाहे विधानसभाओं में आएं या लोकसभा में आएं। इससे पहले उनके परिवार का कोई राजनीतिक इतिहास न हो, ऐसे फ्रेश लोग राजनीति में आएं।" इसके बाद भी प्रधानमंत्री ने अपने इसी विचार को विभिन्न अवसरों पर, जैसे अक्टूबर 2024 में वाराणसी में, दिसंबर 2024 में रामकृष्ण मठ कार्यक्रम में, और जनवरी 2025 में विकसित भारत युवा नेता संवाद में भी दोहराया।

नितिन नबीन को बनाया राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष

इस परिप्रेक्ष्य में देखें तो नितिन नबीन की उम्र अभी केवल 45 वर्ष है और उनके नेतृत्व में पार्टी में ढेर सारे युवा लोगों को आगे लाने में और बहुत बुज़ुर्ग हो चुके नेताओं को रिटायर करने में आसानी हो सकती है। हालांकि फिलहाल उन्हें पार्टी का राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया है, जो कि पार्टी संविधान के मुताबिक एक सहायक पद है, जो राष्ट्रीय अध्यक्ष के प्रत्यक्ष अधीन कार्य करता है। इस पद पर नियुक्ति पार्टी के संसदीय बोर्ड द्वारा की जाती है और इसके मुख्य दायित्वों में चुनाव प्रबंधन, सदस्यता अभियान, राज्य इकाइयों के समन्वय, इत्यादि जैसे दैनिक संगठनात्मक कार्य होते हैं। 

जब राष्ट्रीय अध्यक्ष का पद खाली होता है या संक्रमण काल में, कार्यकारी अध्यक्ष अंतरिम रूप से प्रमुख भूमिका निभाते हैं—जैसे कि वर्तमान में हो रहा है। इससे पहले जे.पी. नड्डा भी जून 2019 से जनवरी 2020 तक अमित शाह के राष्ट्रीय अध्यक्ष काल में राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष के रूप में काम कर चुके हैं, हालांकि बाद में उन्हें ही राष्ट्रीय अध्यक्ष भी बनाया गया। इससे ऐसा लगता है कि बाद में नितिन नबीन को भी राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया जाना संभव है, लेकिन चूंकि अभी वे काफी युवा हैं, इसलिए पार्टी ने फिलहाल उन्हें कार्यकारी अध्यक्ष बनाकर सावधानीपूर्वक कदम बढ़ाया है, ताकि राष्ट्रीय संगठन में अनुभव हासिल करने और पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के बीच अपनी स्वीकार्यता को बढ़ाने के लिए उन्हें अधिक अवसर प्रदान किया जा सके। 

इस दृष्टि से देखा जाए, तो नितिन नवीन की नियुक्ति से भाजपा ने मुख्य रूप से ये पांच हित साधे हैं-

1- भाजपा को अतिरिक्त समय मिला

जेपी नड्डा के बाद पार्टी द्वारा नए राष्ट्रीय अध्यक्ष का चयन न कर पाना राजनीतिक हलकों में बहुबात का विषय बन गया था। ऐसे में कार्यकारी अध्यक्ष के तौर पर नितिन नबीन की नियुक्ति से पार्टी को इस विषय को हैंडल करने के लिए थोड़ा और समय मिल गया। अब यदि कार्यकारी अध्यक्ष के तौर पर नितिन नबीन पार्टी और आरएसएस की अपेक्षाओं पर खरे उतरे, तो उन्हें पदोन्नति देकर राष्ट्रीय अध्यक्ष बना दिया जाएगा, अन्यथा उचित समय पर नए राष्ट्रीय अध्यक्ष का चयन किया जाएगा।

2- युवा वर्ग को संदेश

45 साल के युवक को पार्टी का कार्यकारी अध्यक्ष बनाए जाने से पार्टी के लिए युवा वर्ग से खुद को जोड़ पाने, उनके मुद्दों और समस्याओं को समझने में आसानी तो होगी ही, युवा वर्ग के भीतर प्रधानमंत्री का एक लाख नए युवा नेता गढ़ने वाला संदेश भी प्रभावी रूप से जाएगा और बड़ी संख्या में युवा राजनीति से जुड़ पाएंगे। इस प्रकार भाजपा खुद को एक युवा पार्टी के रूप में स्थापित कर पाएगी। एक अनुमान के मुताबिक, देश के 50 से 60 प्रतिशत मतदाता 18 से 45 वर्ष आयुवर्ग से आते हैं। सारे संकेत बताते हैं कि प्रधानमंत्री मोदी महिलाओं के साथ ही युवाओं का एक ऐसा MY समीकरण बनाने पर ज़ोर है, जिसे भेद पाना किसी भी अन्य पार्टी के लिए आसान नहीं रहे।

3- संगठनात्मक मजबूती

संगठन में युवा ऊर्जा और प्रतिबद्धता के अधिकाधिक समावेश से पार्टी में मेहनती और उत्साही लोगों की संख्या बढ़ेगी, जिससे ज़मीनी स्तर पर पार्टी की जड़ें और मजबूत हो सकेंगी। युवा नेतृत्व को बढ़ावा मिलने से धीरे-धीरे सरकार और प्रशासन में भी युवा चेहरों को प्राथमिकता दिया जाना संभव हो सकेगा।

4- बिहार में आधार विस्तार

इसके बावजूद कि बिहार में पिछले बीस वर्षों में लगभग तीन वर्षों को छोड़कर नीतीश कुमार के साथ रहते हुए भाजपा लगातार आधी सत्ता का सुखभोग कर रही है, लेकिन अपने दम पर इस राज्य को फतह कर पाना आज भी उसके लिए सपना ही बना हुआ है।

बिहार में भाजपा की यह संवेदनशील स्थिति उसकी राष्ट्रीय चुनावी संभावनाओं पर भी बुरा असर डालती है। जैसे, यदि 2024 के लोकसभा चुनाव में ही नीतीश कुमार वापस एनडीए में शामिल नहीं हुए होते, तो यह चुनाव फंस सकता था और एनडीए की सरकार बन पाना कठिन हो जाता। इसलिए भाजपा अब बिहार को गंभीरता से ले रही है। इसीलिए उसने वहां विकास कार्यों के साथ-साथ नए नेतृत्व के सृजन को भी प्राथमिकता सूची पर ले लिया है।

5- लंबे समय का नेता

नितिन नबीन एक ऐसे युवा नेता हैं, कम उम्र में ही जिनके पास लगभग 20 साल का राजनीतिक अनुभव तो है ही, आगे भी कम से कम 30 साल और वे सक्रिय रह सकते हैं। चूंकि भाजपा और आरएसएस विचारधारा आधारित संगठन हैं और दूर की सोचते हैं, इसलिए हमेशा उनका ज़ोर ऐसे नेता तैयार करने पर रहता है, जो लंबी रेस का घोड़ा बन सके। चूंकि नितिन नबीन लो-प्रोफाइल रहने वाले विनम्र और मेहनती स्वभाव के ज़मीनी नेता हैं, इसलिए ऐसा लगता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की निगाहों में वे काफी दिनों से थे। 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने ट्वीट में उन्हें पार्टी का एक ऐसा कर्मठ कार्यकर्ता, युवा और परिश्रमी नेता बताया है, जिनके पास संगठन का भी अच्छा-खासा अनुभव है, विधायक और मंत्री के रूप में जिसने पूरे समर्पण भाव से काम किया है, और जो अपने विनम्र स्वभाव, ऊर्जा और प्रतिबद्धता के लिए जाने जाते हैं। इसी तरह, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने भी अपने ट्वीट में उनके मेहनती स्वभाव और सांगठनिक क्षमता की प्रशंसा की है।

नितिन के नाम पर घेरते रही हैं विपक्ष

हालांकि परिवारवाद के मुद्दे को आक्रामकता से उठाने वाली भाजपा को बिहार में विपक्ष के लोग नितिन नबीन के नाम पर पहले से ही घेरते रहे हैं, क्योंकि वे प्रदेश भाजपा के महत्वपूर्ण नेता और विधायक रहे स्वर्गीय नवीन किशोर सिन्हा के बेटे हैं, जो 2005 में पटना पश्चिम से विधायक चुने गये थे, और 2006 में उन्हीं के असामयिक निधन के बाद खाली हुई सीट पर हुए उपचुनाव के माध्यम से नितिन नबीन को राजनीति में प्रवेश का मौका मिला, जब उनकी उम्र केवल 26 साल थी। 

लेकिन भाजपा के पास अपने बचाव में मुख्य रूप से दो दलीलें होंगी कि एक तो नितिन नबीन अपने पिता की मृत्यु के बाद चुनावी राजनीति में आए और दूसरा पिछले दो दशकों में उन्होंने अपनी मेहनत और काबिलियत के दम पर राजनीति में यह मुकाम हासिल किया है, जिसमें 2006 के उपचुनाव के बाद भी लगातार चार बार 2010, 2015, 2020 और 2025 में बांकीपुर विधानसभा सीट से विधायक चुना जाना और बिहार सरकार में पथ निर्माण मंत्री के रूप में उनका अच्छा प्रदर्शन शामिल है।