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Bangali Durga Puja: अंबिकापुर में 1949 से भव्य दुर्गा पूजा मना रहा बंग समाज, कोलकाता से आते हैं पुरोहित, चावल के राक्षस की दी जाती है बलि

Bangali Durga Puja: शहर में दो स्थानों पर पारंपरिक ढंग से आयोजित की जाती है दुर्गा पूजा, 5 दिन चलता है उत्सव, समाज की महिलाएं सिंदूर खेला खेलकर मां दुर्गा को देती हैं भावभीनी विदाई

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Bangali Durga Puja

Sindoor Khela (Photo- Patrika)

अंबिकापुर. बंग समाज द्वारा आयोजित दुर्गा पूजा का त्योहार इस वर्ष भी पूरी श्रद्धा और धूमधाम से मनाया जा रहा है। 1949 से लगातार इस परंपरा का निर्वहन करते आ रहा बंगाली समुदाय (Bangali Durga Puja) इस आयोजन को न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक मानता है, बल्कि इसे सांस्कृतिक एकता और सामाजिक समरसता का पर्व भी माना जाता है। यह पूजा शहर के दो प्रमुख स्थानों भंडार दुर्गा बाड़ी (प्रतीक्षा बस स्टैंड के पास) और देवीगंज रोड स्थित दुर्गा बाड़ी में की जाती है।

बंग समाज (Bangali Durga Puja) के सचिव जेएन लाहिरी बताते हैं कि इस परंपरा की नींव 194९ में रखी गई थी, जब समाज के पूर्वजों ने एक साथ मिलकर दुर्गा पूजा की शुरुआत की थी। 1949 में डॉ. चक्रवर्ती, डॉ. एनसी बोस, डॉ. एससी मुखर्जी, जीएन अधिकारी, जेएन लाहिरी और आरएन मुखर्जी सहित अन्य प्रतिष्ठित लोगों ने इसे संगठित रूप से आरंभ किया था।

हालांकि 1952 में कुछ आपसी मतभेदों के चलते पूजा 2 भागों में विभाजित हो गई। इसके बावजूद, दोनों स्थानों पर अब भी परंपरागत रूप से पूजा होती है और श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ती है।

Bangali Durga Puja: जीव बलि की प्रथा नहीं

जेएन लाहिरी ने बताया कि इस पूजा में जीव बलि की कोई प्रथा नहीं है। इसकी जगह चावल से बने राक्षस की प्रतिमा बनाकर प्रतीकात्मक बलि दी जाती है। इसके अलावा कोहड़े, गन्ने को बलि के रूप में दिया जाता है। इसके माध्यम से अहिंसा और करुणा का संदेश समाज में प्रसारित किया जाता है।

छोटे स्तर पर की गई थी पूजा की शुरूआत

दुर्गा बाड़ी देवीगंज रोड पूजा समिति के अध्यक्ष मानिक रंजन सेन व कोषाध्यक्ष सतबरत हरि ने बताया कि शुरूआत में पूर्वजनों द्वारा पूजा (Bangali Durga Puja) सीमित संसाधनों के साथ छोटे स्तर पर की जाती थी, लेकिन अब यह आयोजन अंबिकापुर शहर की पहचान बन चुका है।

दुर्गा बाड़ी की विशेषता है कि हमलोग प्रसाद बनाने के लिए बाहर से कैटर्स को नहीं बुलाते हैं, हमलोग ही प्रसाद बनाते हैं और निष्ठा के साथ वितरण करते हैं। बंग समाज की यह दुर्गा पूजा (Bangali Durga Puja) न केवल धार्मिक आयोजन है, बल्कि यह शहर में बंगाली संस्कृति की जीवंत अभिव्यक्ति भी है, जो हर वर्ष सैकड़ों लोगों को एकत्र कर एक नई ऊर्जा और उत्साह से भर देती है।

मात्र 5 दिनों की होती है पूजा

बंगाली रीति-रिवाजों के अनुसार षष्ठी तिथि से मां दुर्गा की प्रतिमा की स्थापना की जाती है, और पांच दिनों तक विविध अनुष्ठान होते हैं। विशेष बात यह है कि बंगाल (Bangali Durga Puja) से हर वर्ष पुरोहित को बुलाया जाता है। इस वर्ष भी कोलकाता से आए पुरोहित मनोज वल्लभ पूजा विधि संपन्न करा रहे हैं।

सिन्दूर खेलना अनूठी संस्कृति का हिस्सा

विजया दशमी के दिन बंग समाज की महिलाएं (Bangali Durga Puja) परंपरागत रूप से मां दुर्गा को सिंदूर, चूड़ी और बिंदी पहनाकर भावभीनी विदाई देतीं हैं। इसके पश्चात महिलाएं उसी सिंदूर से ‘सिंदूर खेला’ कर होली जैसी मस्ती करती हैं, जो इस पूजा का एक अनूठा सांस्कृतिक पक्ष है।