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Devdasi Survey: क्या है देवदासी प्रथा और किन महिलाओं और नाबालिगों को झेलना पड़ता है यौन शोषण, क्यों कर्नाटक सरकार करवा रही है सर्वे ?

कर्नाटक में देवदासी प्रथा के चलते बच्चियों और Devdasi: महिलाओं का शोषण झेलना पड़ता है। उनकी हालत में सुधार लाने के लिए प्रदेश कांग्रेस सरकार राज्यव्यापी सर्वेक्षण करवाने जा रही है। देवदासी महिलाओं की पीड़ा समझने के लिए यहां पढ़िए पूरी रिपोर्ट...

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Devdasi survey in karnatka

कर्नाटक की कांग्रेस सरकार पूर्व देवदासी महिलाओं का सर्वे करवाने जा रही है। (Photo: ChatGPT)

Devdasi Pratha: कर्नाटक राज्य की कांग्रेस सरकार लैंगिक अल्पसंख्यकों के साथ पूर्व देवदासी महिलाओं का राज्यव्यापी सर्वेक्षण करवाने जा रही है। सरकार ने इस पहल का उद्देश्य इन समूहों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति पर सटीक आंकड़े एकत्र करना बताया है।

राज्य सरकार ने पिछले ही सप्ताह कर्नाटक देवदासी (रोकथाम, निषेध, निवारण और पुनर्वास) अधिनियम, 2025 को मंजूरी दी और अब वह देवदासी प्रथा से जुड़ी महिलाओं का सर्वेक्षण क्यों कराना चाहती है?

देवदासी प्रथा क्या है?

दक्षिण भारत से शुरू हुई देवदासी प्रथा धीरे धीरे कई अन्य राज्यों मसलन ओडिशा और महाराष्ट्र में भी अपने पांव पसारती चली गई। इस प्रथा के नाम के अनुसार लड़कियों को 'तुम देव यानी भगवान की दासी हो', उन्हें यह मानने के लिए बाध्य किया जाता था। उन्हें मंदिरों में मनोरंजन के लिए रखा जाता था। वह संगीत और नृत्य करती थीं लेकिन उनका यौन शोषण भी होता रहा है। वर्ष 1982 में इस प्रथा को कर्नाटक में पूरी तरह अवैध घोषित कर दिया लेकिन इसके बावजूद यह कुप्रथा आज भी जारी है और यह राज्य 15 जिलों में ​सिमट कर रह गई।

प्रजनन की देवी येल्लमा का आशीर्वाद लेते हैं लाखों लोग

हर साल जनवरी में लगभग पांच लाख से अधिक लोग कर्नाटक के सौंदत्ती के छोटे से कस्बे में जात्रा में शामिल होते हैं और वे यहां आकर प्रजनन की हिंदू देवी येल्लम्मा का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। समाज में अछूत या निम्न मानी जाने वाली जातियों के गरीब परिवारों की लड़कियों का चार साल की उम्र में ही येल्लम्मा से विवाह कर दिया जाता है। यह मान्यता है कि इस शादी के बाद किसी मनुष्य से विवाह करने की अनुमति नहीं है। उनसे यह अपेक्षा की जाती है कि वे अपना पूरा जीवन देवी की सेवा में समर्पित कर दें। वृद्ध देवदासियों को जोगाथी कहा जाता है और उन्हें देवी और लोगों के बीच मध्यस्थ माना जाने लगता है।

सैकड़ों वर्षों से यह दक्षिण भारतीय जीवन का हिस्सा रही है

देवदासी प्रथा कई सदियों से दक्षिण भारतीय जीवन का हिस्सा रही है। इस धार्मिक कार्य की आड़ में धनी पुरुषों को रखैलें प्रदान करना भी इस प्रथा में शामिल रहा है। देवदासियों को शास्त्रीय संगीत और नृत्य में प्रशिक्षित किया जाता था। वह आमतौर पर गांव के किसी प्रतिष्ठित व्यक्ति द्वारा प्रदान किए गए आरामदायक घरों में रहती थीं। इस परंपरा को जब 1988 में पूरे भारत में अवैध घोषित कर दिया गया तो उनकी स्थिति बदल गई और मंदिर ने भी सार्वजनिक रूप से उनकी दुर्दशा से खुद को अलग कर लिया। देवदासी प्रथा का उन्मूलन मुख्यतः मुथुलक्ष्मी रेड्डी के प्रयासों के कारण हुआ, जिन्होंने 1927 में मद्रास प्रेसीडेंसी में इसे समाप्त करने के लिए सफलतापूर्वक कानून पेश किया।

कर्नाटक में करीब 47 हजार देवदासियां

कर्नाटक की कांग्रेस सरकार ने देवदासी प्रथा से जुड़ी महिलाओं का सर्वेक्षण कराने की घोषणा की है। राज्य में पिछले 17 साल से उनको लेकर कोई सरकारी सर्वे नहीं कराया गया है। वर्ष 1993-1994 और 2007-2008 में कर्नाटक सरकार ने सर्वेक्षण कराया था, जिसमें क्रमशः 22,873 और 46,660 देवदासियों की पहचान की गई। राष्ट्रीय महिला आयोग के एक अनुमान के मुताबिक वर्ष 2011 में भारत में 48,358 देवदासियां हैं लेकिन 2015 में अंतराष्ट्रीय श्रम संगठन की संपर्क रिपोर्ट के अनुसार भारत में देवदासियों की संख्या लगभग 4,50,000 थी।

किस राज्य में कितनी है देवदासियों की संख्या

एक रिपोर्ट के अनुसार आंध्र प्रदेश में देवदासियों की संख्या 80 हजार के करीब है। कर्नाटक और महाराष्ट्र के बॉर्डर पर इनकी संख्या 2500 के करीब है। महराष्ट्र में इस प्रथा से 30 हजार से ज्यादा महिलाएं जुड़ी हैं।

छोटी उम्र ही यौन उत्पीड़न की होती हैं शिकार: अध्ययन

NLSIU ने 62 देवदासी प्रथा की शिकार महिलाओं से बातचीत के आधार पर एक रिपोर्ट जारी की थी। स्टडी में शामिल सभी महिलाएं अनुसूचित जातियों की थीं। अध्ययन में भाग लेने वाली 92% देवदासी महिलाएं नाबालिग थीं। इनमें से 74% महिलाओं के साथ पहली बार यौन संपर्क 18 वर्ष की आयु से पहले ही हो चुका था। वहीं 50% महिलाएं नाबालिग होने पर यौन शोषण का शिकार हुई थीं। अध्ययन में भाग लेने वाली 62 महिलाओं में से 41 ऐसे परिवारों से थीं जहां कम से कम एक महिला इस काम में समर्पित थी और उनमें से 20 देवदासी महिलाओं की बेटियां थीं। 62 देवदासियों में से सिर्फ 2 ने ही पुलिस से संपर्क किया जबकि 87% महिलाओं को यौन शोषण का सामना करना पड़ा और 95% महिलाओं की तस्करी की गई।