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एमपी का एकमात्र मंदिर जहां जमीन पर लेटी हुई मुद्रा में हैं ‘मां काली’, यहां से कोई नहीं जाता खाली हाथ

Navratri 2025: आज से शारदीय नवरात्रि के नौ दिवसीय पर्व की शुरुआत हो गई है। नवरात्रि के पहले दिन सोमवार 22 सितंबर को patrika.com पर पढ़ें मां दुर्गा के एक स्वरूप मां काली मंदिर की चौंकाने वाली कहानी, ये एमपी का एकमात्र ऐसा मंदिर जहां जमीन पर लेटी हुई हैं देवी मां… जानें कहां है ये मंदिर और इसकी महिमा?

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Navratri 2025 Maa Kali ka Anokha Mandir

Navratri 2025 Maa Kali ka Anokha Mandir: एमपी के बालाघाट में है मां काली का ये अनोखा मंदिर जहां लेटी हुई मुद्रा में है मां काली की प्रतिमा। (फोटो: पत्रिका)

Navratri 2025: बालाघाट में है मां काली का सिद्घ कालीपाठ मंदिर। वैसे तो यहां हर समय ही भक्तों की भीड़ उमड़ती है, लेकिन नवरात्रि के इन दिनों में मां काली के इस मंदिर में श्रद्धालुओं का तांता लग जाता है। लंबी-लंबी कतारों में खड़े लोग मां काली के मंत्रों का जाप करते हैं और जयकारे लगाते हैं। जिससे आसपास का पूरा वातावरण भक्तिमय हो जाता है। यहां अकेले मध्यप्रदेश से नहीं बल्कि अन्य राज्यों के लोग भी पहुंचते हैं। मान्यता है कि भक्त यहां रोते हुए आते जरूर हैं, लेकिन जाते समय एक संतोष साथ लेकर जाते हैं कि जल्द ही मां की कृपा उन पर बरसेगी और उनकी पीड़ा दूर हो जाएंगी। नवरात्र पर्व पर मंदिर में प्रतिवर्ष विविध धार्मिक आयोजन किए जाते हैं।

एमपी का एक मात्र मंदिर


आपको जानकर हैरानी होगी कि येमध्य प्रदेशका ये एक मात्र मंदिर है, जहां मां काली जमीन पर लेटी हुई मुद्रा में हैं। कहा जाता है कि मां का ऐसा स्वरूप और कहीं नहीं है। नवरात्रि में मां सिद्ध कालीपाठ मंदिर में मां के इस स्वरूप की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। दूर-दूर से श्रद्धालु यहां आते हैं। एमपी से ही नहीं, बल्कि देश के कोने-कोने से श्रद्धालु यहां आते हैं और दर्शन कर धन्य हो जाते हैं।

हर साल बढ़ जाता है प्रतिमा का आकार

मंदिर के पुजारी छोटू पंडा कहते हैं कि मातारानी की ये जमीन पर लेटी हुई प्रतिमा स्वयं भू है यानी किसी ने इसकी स्थापना नहीं की है बल्कि, ये खुद ही अस्तित्व में आई। लेकिन यह प्रतिमा कब से अस्तित्व में आई है, इसकी पुख्ता जानकारी नहीं मिलती। कहा जाता है कि सदियों पहले ये पूरा स्थल जंगलों से घिरा था। तब मातारानी यहां बहुत ही छोटे स्वरूप में विराजमान देखी गई थीं। जंगल होने के चलते गौली इस स्थान पर अपने मवेशियों को चराने के लिए लेकर आते थे और मां के इस स्वरूप की पूजा-अर्चना भी करते थे। हैरानी की बात ये है कि धीरे-धीरे प्रतिमा का स्वरूप हर साल बढ़ता जा रहा है।

पुजारी का कहना है कि मंदिर का भी जीर्णोद्धार भी किया जा चुका है। मातारानी की ख्याति अब दूर-दूर तक बढ़ चुकी है। वहीं भक्तों के सहयोग से मंदिर को और भी विस्तृत किया जा रहा है। पंडित जी का कहना है कि माता रानी की ये प्रतिमा हर साल थोड़ी-थोड़ी बढ़ती जाती है, जिससे प्रतिमा का आकार बढ़ता जा रहा है।

यहां नारियल बांधकर मन्नत बोल जाते हैं लोग

पंडित जी का कहना है कि यहां मां काली जमीन पर लेटी हुई मुद्रा में है। जिस मुद्रा में अभी मातारानी हैं, ऐसा स्वरूप कहीं और देखने को नहीं मिला है। उनका कहना है कि मां के पास समस्याओं से ग्रस्त लोग मन्नतें लेकर आते हैं। विधि-विधान से पूजा-अर्चना करते हैं और मातारानी से प्रार्थना करते हुए नारियल बांधकर जाते हैं। जब उनकी मनोकामना पूरी हो जाती है तब, वे श्रद्धा अनुसार मातारानी को भेंट करने आते हैं। यह सिलसिला सदियों से चला आ रहा है। कहा जाता है कि मां काली किसी को भी यहां से खाली हाथ नहीं लौटातीं। आशीर्वाद देती हैं और उनके घर परिवारों को खुशियों से भर देती हैं।

नवरात्र पर्व पर होती है विशेष आराधना

मंदिर के पुजारी ने बताया कि नवरात्र पर्व (Navratri 2025) में मंदिर में मातारानी की विशेष आराधना की जाती है। नौ दिन तक माता रानी का विशेष श्रंगार किया जाता है। घी और तेल के मनोकामना ज्योतिकलश प्रज्जवलित किए जाते हैं। इसके अलावा पूरे नौ दिन मातारानी के जस, गीतों की प्रस्तुति दी जाती है।

दुर्गा उत्सव के इस पर्व में महाअष्टमी के अवसर पर मातारानी को भोग लगाया जाता है। नवमीं में कन्या पूजन किया जाता है। इसके बाद ज्योतिकलशों का विसर्जन किया जाता है। महाप्रसाद का वितरण भी इस आयोजन का खास बना देता है।