
Shah bano : हक की लड़ाई के फैसले ने दी खुशी, कानून ने तोड़ कर रख दिया दिल...
Shah Bano: शाह बानो…माथे पर संघर्ष की झुर्रियां, चेहरे पर अनुभवों की लकीरें, उम्मीदों और साहस से भरी आंखें… न वो मंच पर बोलने वाली महिला थी, न ही कोई नेता… सिर पर हमेशा दुपट्टा तहजीब-तमीज के घूंघट से झांकते चेहरे का नूर जैसे कहता था मैं एक महिला हूं, लेकिन अपने लिए नहीं… अपने वजूद के लिए लड़ने आई हूं… साहस और मिसाल की ये कहानी रचने वाली शाह बानो ने दिल में एक टीस लिए 1992 में दुनिया को अलविदा कह दिया।
उनके मन का दर्द तब छलका जब 1986 में 'The Muslim Women(Protection of Rights on Divorce), संसद से पास होकर एक नया कानून बन गया। तब उनका दर्द छलका और वो बोल पड़ीं.. 'मैं समाज के लिए लड़ी और आज समाज ने ही मुझे अकेला छोड़ दिया।' patrika.com पर जानें आखिर क्यों तड़पकर रह गया था शाहबानो का दिल… आखिर क्यों मलाल बन गया था 1986 का ये कानून…
शाह बानो एक बुजुर्ग महिला थीं, इंदौर की रहने वाली, जिनकी साहस भरी अदालती लड़ाई ने भारतीय मुस्लिम महिलाओं के साथ ही हर महिला के अधिकारों की तस्वीर बदल कर रख दी। एक नई परिभाषा दी। ये वही समय था, जब उनकी आंखें सफलता की खुशी पर कम… पीढ़ियों तक एक महिला के वजूद को संजोकर रखने का हक मिलने के बाद मिली रूहानी सुकून से चमक रही थीं। लेकिन उनका ये सुकून तब छिन गया जब सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर कानून बना। संसद में पास हुआ विधेयक जब कानून बनकर भारतीय संविधान में दर्ज हो गया, इस कानून पर सीमाएं लदी थीं, जिसने उनके हक की लड़ाई का मकसद कहीं खो गया। उन्हें लगा वो एक बार फिर से हार गईं। मीडिया से बातचीत के दौरान उनका ये दर्द छलका और कुछ इस तरह निकला…
मैं अपने लिए नहीं… आने वाली पीढियों के लिए लड़ी, मैं समाज के लिए लड़ी और आज समाज ने ही मुझे अकेला छोड़ दिया।
-शाह बानो, (1986)
पांच बच्चों की मां शाह बानो 1978 में 62 साल की उम्र में पति के तीन तलाक से इतनी आहत हुईं कि उन्होंने अदालत का दरवाजा खटखटा दिया। भरण-पोषण के लिए सीआरपीसी की धारा 125 के तहत पति मोहम्मद अहमद खान के खिलाफ आवाज उठाई, ये आवाज अकेले शाहबानों के हक के लिए नहीं थी, ये आवाज अकेले मोहम्मद अहमद खान के खिलाफ नहीं थी, बल्कि हर समाज की महिला के वजूद को बचाने और मोहम्मद अहमद खान जैसे हर पुरुष के खिलाफ उठाई गई बुलंद आवाज थी, जिसका साहस आज भी सुनाई देता है। उनका यह कदम किसी मुस्लिम महिला का समाज के खिलाफ खड़ा होना था, लेकिन शाहबानो साहस से लड़ीं और सुप्रीम कोर्ट से फैसला आया…
'धारा 125 सीआरपीसी धर्म से ऊपर है, चाहे किसी भी मजहब की हो, तलाक के बाद भरण-पोषण की हकदार है।'' मुस्लिम समाज में ही नहीं बल्कि भारतीय समाज की हर महिला इस फैसले की हकदार थी। उसे समाज में समानता का, सम्मान से और आत्म विश्वास के साथ जीने का हक मिला था.. और महिला के वजूद को बचाने का हक मिलना शाह बानों को रूहानी सुकून दे गया।
सुप्रीम कोर्ट का ये फैसला जैसे सामाजिक और राजनीतिक तूफान लाया और 1985 में शाहबानो को मिली खुशी को अपने साथ उड़ा ले गया। कुछ मुस्लिम संगठनों ने का कहना था, ये फैसला शरियत के खिलाफ है। फैसले के विरोध में देशभर में धरना-प्रदर्शन का दौर शुरू हो गया। राजनीतिक दबाव बढ़ता देख केंद्र सरकार ने 1986 में नया कानून बनाया 'मुस्लिम महिला(अधिकार संरक्षण) अधिनियम 1986' इस कानून ने शाह बानो के अरमानों और उम्मीदों पर पानी फेर दिया…
भारतीय संसद द्वारा 1986 में पारित मुस्लिम महिला (तलाक पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, उन मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों की रक्षा और संबंधित मामलों के समाधान के लिए बनाया गया था जिनका पति से तलाक हो चुका है। यह अधिनियम राजीव गांधी सरकार द्वारा शाहबानो मामले में दिए गए फैसले को रद्द करने के लिए पारित किया गया था। लेकिन इसने प्रभावी रूप से सर्वोच्च न्यायालय के फैसले को कमजोर कर दिया था।
यह दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 के अंतर्गत क्षेत्राधिकार का प्रयोग करने वाले किसी भी प्रथम श्रेणी मजिस्ट्रेट द्वारा प्रशासित किया जाता है। इस अधिनियम के अनुसार, एक तलाकशुदा मुस्लिम महिला अपने पूर्व पति से उचित और न्यायसंगत प्रावधान और भरण-पोषण पाने की हकदार है, जिसका भुगतान इद्दत की अवधि के भीतर किया जाना है ।
इस अधिनियम के उद्देश्यों और कारणों के विवरण के अनुसार, यदि कोई मुस्लिम तलाकशुदा महिला अपने पति की मृत्यु या तलाक के बाद इद्दत अवधि के बाद अपना भरण-पोषण करने में असमर्थ है, जिसके दौरान वह पुनर्विवाह नहीं कर सकती, तो मजिस्ट्रेट को उसके उन रिश्तेदारों से भरण-पोषण भुगतान का आदेश देने का अधिकार है जो, मुस्लिम कानून के तहत उसकी संपत्ति के उत्तराधिकारी होंगे। हालांकि, यदि तलाकशुदा महिला का कोई रिश्तेदार नहीं है और उसके पास अपना भरण-पोषण करने के साधन नहीं हैं, तो मजिस्ट्रेट राज्य वक्फ बोर्ड को भरण-पोषण का भुगतान करने का आदेश दे सकता है। इस प्रकार, भरण-पोषण का भुगतान करने का पति का दायित्व केवल इद्दत की अवधि तक ही सीमित था।
Published on:
05 Nov 2025 06:00 am
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