
(राजस्थान पत्रिका फोटो)
Student Union Elections in Rajasthan: राजस्थान में छात्रसंघ चुनावों पर लगे प्रतिबंध को हटाने की मांग को लेकर दायर याचिका पर बीते गुरुवार को राजस्थान हाईकोर्ट में सुनवाई हुई। जस्टिस समीर जैन की एकल पीठ ने राज्य सरकार से कड़ा सवाल पूछा कि जब देश में सांसद और विधायक के चुनाव हो सकते हैं, तो छात्रसंघ चुनाव क्यों नहीं?
कोर्ट ने सरकार के इस दावे पर टिप्पणी की कि छात्रसंघ चुनाव छात्रों का मौलिक अधिकार नहीं है। जस्टिस जैन ने मौखिक रूप से कहा कि अगर यह मौलिक अधिकार नहीं है तो फिर आप NSUI और ABVP जैसे छात्र संगठनों पर प्रतिबंध क्यों नहीं लगा देते? इस मामले की अंतिम सुनवाई अब 22 अगस्त को होगी, जिसमें यह तय हो सकता है कि प्रदेश में इस सत्र में छात्रसंघ चुनाव होंगे या नहीं।
सुनवाई के दौरान जयपुर बेंच ने सरकार से स्पष्ट जवाब मांगा कि वह छात्रसंघ चुनाव क्यों नहीं करवा रही है। राज्य सरकार ने अपने जवाब में कहा कि प्रदेश की 9 विश्वविद्यालयों के कुलगुरुओं ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) के क्रियान्वयन, शैक्षणिक सत्र की व्यस्तता और कक्षाओं के नियमित संचालन में व्यवधान का हवाला देते हुए चुनाव न कराने की सिफारिश की है। सरकार ने यह भी दावा किया कि छात्रसंघ चुनाव कराना छात्रों का मौलिक अधिकार नहीं है और इसलिए इस सत्र में विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में चुनाव नहीं कराए जाएंगे।
हाईकोर्ट ने सरकार के इस रुख पर नाराजगी जताते हुए कहा कि अगर कानून-व्यवस्था बनाए रखने की जिम्मेदारी सरकार की है, तो वह इसे बहाना बनाकर चुनाव क्यों टाल रही है? कोर्ट ने लिंगदोह कमेटी की सिफारिशों का जिक्र करते हुए पूछा कि जब ये सिफारिशें स्पष्ट रूप से कहती हैं कि शैक्षणिक सत्र शुरू होने के 6-8 सप्ताह के भीतर चुनाव होने चाहिए, तो सरकार इसका पालन क्यों नहीं कर रही?
कोर्ट ने यह भी टिप्पणी की कि अगर संसदीय और विधानसभा चुनावों के लिए कानून-व्यवस्था संभाली जा सकती है, तो छात्रसंघ चुनावों के लिए ऐसा क्यों नहीं हो सकता?
यह मामला राजस्थान विश्वविद्यालय के प्रथम वर्ष के एमए छात्र जय राव और अन्य याचिकाकर्ताओं द्वारा दायर जनहित याचिका (PIL) के आधार पर कोर्ट में पहुंचा। जय राव ने अपनी याचिका में तर्क दिया कि छात्रसंघ चुनाव के जरिए प्रतिनिधियों को चुनने का अधिकार मौलिक है और इसे सर्वोच्च न्यायालय ने भी मान्यता दी है। उन्होंने कहा कि पिछले तीन शैक्षणिक सत्रों से राजस्थान में ये चुनाव नहीं हुए हैं, जो छात्रों के लोकतांत्रिक अधिकारों का हनन है।
इस मुद्दे पर छात्र संगठनों, खासकर अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP), स्टूडेंट फेडरेशन ऑफ इंडिया (SFI) और नेशनल स्टूडेंट्स यूनियन ऑफ इंडिया (NSUI) विरोध जताया है। ABVP के केंद्रीय कार्यकारिणी सदस्य भरत यादव ने सरकार के फैसले को 'गलत' बताते हुए कहा कि छात्रसंघ चुनाव युवा नेतृत्व को बढ़ावा देने का मंच हैं।
उन्होंने चेतावनी दी कि संगठन इस मुद्दे पर आंदोलन तेज करेगा। वहीं, NSUI के प्रदेश अध्यक्ष विनोद जाखड़ ने सरकार पर लोकतंत्र का गला घोंटने का आरोप लगाया और कहा कि यह निर्णय छात्रों के नेतृत्व विकास को बाधित करेगा।
दरअसल, पिछले एक दशक में राजस्थान की छात्र राजनीति में बड़ा बदलाव देखने को मिला है। पहले ये चुनाव NSUI और ABVP जैसे संगठनों के बीच केंद्रित रहते थे, लेकिन अब निर्दलीय उम्मीदवारों का दबदबा बढ़ गया है। 2018 में राजस्थान विश्वविद्यालय के छात्रसंघ चुनाव में चारों प्रमुख पद (अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, महासचिव, और संयुक्त सचिव) निर्दलीय उम्मीदवारों ने जीते।
विनोद जाखड़ और आदित्य प्रताप सिंह जैसे उम्मीदवारों ने NSUI और ABVP से बगावत कर जीत हासिल की। 2019 में भी पूजा वर्मा ने NSUI से अलग होकर अध्यक्ष पद जीता, जबकि 2022 में निर्मल चौधरी और अमीषा मीणा जैसे निर्दलीय उम्मीदवारों ने प्रमुख पदों पर कब्जा किया।
यह बदलाव छात्र संगठनों की कमजोर पड़ती पकड़ को दर्शाता है। निर्दलीय उम्मीदवारों का उभार जातीय, स्थानीय, और व्यक्तिगत नेटवर्क पर आधारित है, जिसने पारंपरिक संगठनों की वैचारिक और चुनावी ताकत को चुनौती दी है।
गौरतलब है कि कांग्रेस और बीजेपी दोनों के लिए छात्रसंघ चुनाव अब सियासी दांव बन गए हैं। हार का डर और निर्दलीयों की बढ़ती ताकत ने दोनों दलों को चुनाव टालने के लिए मजबूर किया है। 2023 में तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने भी NEP और लिंगदोह कमेटी का हवाला देते हुए चुनाव नहीं कराए थे। अब बीजेपी सरकार भी उसी रास्ते पर चल रही है। पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने इस फैसले की आलोचना करते हुए कहा कि बीजेपी युवाओं को राजनीतिक रूप से अनजान रखना चाहती है।
छात्रसंघ चुनाव न केवल छात्रों के लिए प्रतिनिधित्व का मंच हैं, बल्कि ये युवा नेतृत्व की नर्सरी भी हैं। यहां से निकले कई नेता विधानसभा और संसद तक पहुंचे हैं। इन चुनावों के नतीजे सियासी संदेश भी देते हैं, जिससे सत्ताधारी और विपक्षी दल सतर्क रहते हैं। निर्दलीयों की लगातार जीत ने संगठनों की संरचना को कमजोर किया है, और कार्यकर्ताओं का मनोबल गिरा है। यही वजह है कि सरकारें NEP और शैक्षणिक व्यवधान जैसे तर्कों का सहारा लेकर चुनाव टाल रही हैं।
सरकार के इस फैसले से छात्रों में व्यापक नाराजगी है। कोटा, बांसवाड़ा, और उदयपुर जैसे शहरों में ABVP, SFI और NSUI ने जोरदार प्रदर्शन किए हैं। कोटा विश्वविद्यालय में ABVP कार्यकर्ताओं ने मुख्य द्वार बंद कर कुलपति कक्ष में घुसने की कोशिश की। बांसवाड़ा के गोविंद गुरु जनजाति विश्वविद्यालय और उदयपुर की सुखाड़िया यूनिवर्सिटी में भी छात्रों ने सरकार के खिलाफ नारेबाजी की और ज्ञापन सौंपे। NSUI ने 5 अगस्त को जयपुर में मुख्यमंत्री आवास का घेराव किया था, जिसमें कांग्रेस नेता सचिन पायलट भी शामिल हुए।
Published on:
15 Aug 2025 05:15 pm
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