
18 जिलों में सिमटा ‘रेड कॉरिडोर’ (फोटो सोर्स- पत्रिका)
जगदलपुर। @ मनीष गुप्ता।CG Naxal News: भारत के अंदरूनी सुरक्षा को सबसे बड़ी चुनौती देने वाला नक्सलवाद आज धीरे-धीरे अपने अंत की ओर बढ़ रहा है। दशकों तक जंगलों और पहाड़ियों में छिपकर सुरक्षा बलों को चुनौती देने वाले नक्सलियों का तिलिस्म अब आधुनिक तकनीक के सामने टिक नहीं पा रहा है। डिजिटल युग में जिस तरह से सुरक्षा एजेंसियों ने अत्याधुनिक तकनीकी साधनों को अपनाया है, उसने नक्सलियों की रणनीति को ध्वस्त कर दिया है।
कभी देश के 180 जिलों से होकर गुजरने वाला ‘रेड कॉरिडोर’ अब 18 जिलों में सिमट कर रह गया है। बात करें छत्तीसगढ़ की तो यहां मात्र 6 जिले ही अति प्रभावित बचे हैं इनमें चार जिले बीजापुर, सुकमा, नारायणपुर और कांकेर बस्तर संभाग में है, झारखंड का पश्चिम सिंहभूमि और महाराष्ट्र का गढ़चिरौली जिला भी अति नक्सल प्रभावित है।
इसके अलावा अन्य 6 जिले जो प्रभावित तो हैं लेकिन वारदातें यदाकदा ही होती है, इनमें दंतेवाड़ा, गरियाबंद, मोहला-मानपुर (छत्तीसगढ़) लातेहार (झारखंड), नुवापाड़ा (ओडिशा), मूलुग (तेलंगाना) शामिल हैं इन जिलों को एलडब्ल्यूई श्रेणी में रखा है। वहीं अल्लूरी सीतारामराजू (आंध्रप्रदेश), बालाघाट (मध्यप्रदेश), कालाहांडी, कंधमाल, मलकानगिरी (ओडिशा) और भाद्रादि-कोट्टागुडेम (तेलंगाना) जिलों को केंद्र सरकार ने कंसर्न जिलों की सूची में रखा है।
बस्तर के आईजी ने बताया कि वर्ष 2020 से अगस्त 2025 तक कुल 568 नक्सली मारे जा चुके है। इनमें से पिछले दो वर्षों में ही 427 नक्सली ढेर हो चुके है। वर्ष 2024 में जहां 217, तथा 2025 में 10 अगस्त तक 210 नक्सलियों को जवानों ने मार गिराने में सफलता प्राप्त की है। इसी दौरान 3253 नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया है तथा 3145 नक्सलियों को पुलिस ने गिरफ्तार किया है इस दौरान 155 सुरक्षाकर्मी शहीद भी हुए है।
नक्सली संगठन में अब शीर्ष पदाधिकारियों की कमी हो गई है संगठन की सर्वोच्च राजनीतिक संस्था पोलित ब्यूरो में जहां 12 सदस्य होते है इसमें अब केवल चार सक्रिय सदस्य बचे हैं: मुप्पला लक्ष्मण राव उर्फ गणपति, मल्लोजुला वेणुगोपाल राव उर्फ अभय, देव कुमार सिंह उर्फ देवजी और मिसिर बेसरा इसी तरह केंद्रीय कमेटी में जहां 24 सदस्य होते थे वहां अब12 ही बचे है।
नक्सल संगठन इन दिनों नेतृत्व संकट से जूझ रहा है 2018 में केंद्रीय समिति के तत्कालीन सचिव गणपति उर्फ मुप्पला लक्ष्मण राव के इस्तीफे के बाद बसव राजू ने कमान संभाली थी उसके बाद संगठन में संकट गहराता गया। मई 2025 में अबूझमाड़ में डीआरजी के साथ हुई एक मुठभेड़ बसव राजू भी मारा गया। यह नक्सलियों के लिए बड़ा झटका था। इस घटना के बाद नक्सल संगठन ने एक बयान जारी कर कहा कि बसव राजू की मौत अंदरूनी विश्वासघात का नतीजा थी।
जानकारों के मुताबिक बसव राजू ने स्थानीय मुद्दों और ग्रामीणों से जुड़ाव के बजाय सैन्य हमलों पर ज्यादा ज़ोर दिया, वहीं सरकार ने प्रभावित इलाकों में जनता की मूलभूत सुविधाओं पर किया।
सरकार ने मार्च 2026 तक नक्सल समस्या से मुक्ति का टारगेट रखा है। आत्मसमर्पण करने वाले नक्सलियों की माने तो सुरक्षा बलों का आक्रामक अभियान, प्रभावित इलाकों में चल रही लक्षित विकास योजनाएं, संगठन में मतभेद और नेतृत्व संकट के चलते नक्सली लगातार कमजोर हो रहे है। यही कारण है कि अधिकांश शीर्ष नक्सली नेता अंडरग्राउंड हो गए है। कई आत्मसमर्पित नक्सलियों ने बताया कि उनके परिजनों ने उनसे हिंसा से दूर रहने की हिदायत दी है।
पहले नक्सली घने जंगलों और दुर्गम पहाड़ियों में छिपकर सुरक्षा बलों पर अचानक हमला कर दिया करते थे। लेकिन अब ड्रोन और सैटेलाइट सर्विलांस की मदद से उनकी गतिविधियों पर पल–पल नजर रखी जा रही है। आसमान से मिल रही रीयल-टाइम तस्वीरें उनके ठिकानों, मूवमेंट और हथियार छुपाने के ठिकानों को उजागर कर रही हैं।
नक्सली पहले जंगलों में मैसेंजर और परंपरागत तरीकों से संदेश पहुंचाते थे, लेकिन सुरक्षा बलों ने डिजिटल सर्विलांस नेटवर्क खड़ा कर लिया है। कॉल इंटरसेप्शन, रेडियो फ्रिक्वेंसी ट्रैकिंग और साइबर मॉनिटरिंग ने उनके गुप्त संदेशों को पढ़ लेना आसान बना दिया है। नतीजा यह हुआ कि बड़ी साजिशें समय रहते नाकाम हो रही हैं।
नक्सलियों का सबसे खतरनाक हथियार IED (इंप्रोवाइज्ड एक्सप्लोसिव डिवाइस) रहा है। सड़क पर गड्ढा खोदकर बारूद लगाने से लेकर प्रेशर बम तक उन्होंने सुरक्षा बलों को भारी नुकसान पहुंचाया। लेकिन अब माइन डिटेक्शन सिस्टम, ग्राउंड पेनिट्रेटिंग रडार और रोबोटिक आर्म्स जैसे उपकरणों ने उनकी इस चाल को भी कमजोर कर दिया है।
पहले नक्सली सुरक्षा बलों की गतिविधियों पर नजर रखकर हमला करते थे, लेकिन अब हालात उलटे हैं। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और डेटा एनालिसिस के जरिए हर घटना का पैटर्न तैयार किया जा रहा है। इससे नक्सलियों की हरकतों का अनुमान लगाना आसान हो गया है और सुरक्षा बल पहले से तैयार रहते हैं।
तकनीक ने सिर्फ हथियारों और जासूसी तक ही नहीं, बल्कि मनोवैज्ञानिक मोर्चे पर भी नक्सलियों को कमजोर किया है। सोशल मीडिया, मोबाइल ऐप्स और डिजिटल कनेक्टिविटी ने जंगल के युवाओं को मुख्यधारा से जोड़ा है। विकास की तस्वीरें और अवसरों की जानकारी अब हर घर तक पहुंच रही है, जिससे नक्सली विचारधारा की पकड़ कमजोर हो रही है।
बस्तर में नक्सलियों का जनाधार खत्म हो गया है। इसी कारण उनका संगठन कमजोर हो चुका है। बड़े नेता या तो मारे जा रहे है या फिर अंडरग्राउंड हो गए है। मार्च 2026 तक बस्तर नक्सल मुक्त हो जाएगा। सुन्दरराज पी., आईजी, बस्तर रेंज
Updated on:
18 Aug 2025 02:51 pm
Published on:
18 Aug 2025 02:50 pm
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