8 दिसंबर 2025,

सोमवार

Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

आधी राहत-आधी उलझन! समाज को जोड़ेगा या नया विवाद खड़ा करेगा वक्फ संशोधन कानून 2025?

Wakf Amendment Act 2025: वक्फ संशौधन कानून 2025 पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला स्वागत योग्य, अल्पसंख्यक समुदाय को राहत भले ही मिल गई लेकिन सवाल अब भी कई...

3 min read
Google source verification
Supreme Court

सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु सरकार की लगाई फटकार (SC Website)

Wakf Amendment Act 2025: संजना कुमार@ patrika.com: वक्फ संशोधन कानून 2025 पर जो फैसला दिया गया है, उसने पूरे देश में जहां एक नई बहस छेड़ दी है, वहीं ये फैसला भारतीय न्यायिक संवैधानिक व्यवस्था के साथ ही धार्मिक और सामाजिक न्याय के लिए एक मील का पत्थर साबित हुआ है। इस फैसले में कोर्ट ने अधिनियम के कुछ विवादित प्रावधानों पर अंतरिम रूप से ब्रेक लगाया है, जबकि पूरा कानून बरकरार रखा गया है। यह फैसला दर्शाता है कि न्यायपालिका ने न केवल विधायिका की सर्वोच्चता को मान्यता दी है, बल्कि जरूरत पड़ने पर संवैधानिक सुरक्षा की भूमिका भी निभाई है। न सरकार जीती और न ही विपक्ष हारा, सुप्रीम कोर्ट का संतुलित फैसला।

फैसले के सकारात्मक पहलू

1- कानून को पूरी तरह से निरस्त करने से इनकार कर सुप्रीम कोर्ट ने संदेश दिया है कि संसद द्वारा पारित कानून को तुरंत असेवैधानिक नहीं किया जा सकता। इससे लोकतांत्रिक संस्थाओं की गरिमा बनी रहती है।

2- संवेदनशील प्रावधानों जैसे 'पांच साल में प्रैक्टिसिंग मुस्लिम' और 'कलेक्टर को विवाद निपटाने का अधिकार' जैसे प्रावधानों पर फिलहाल रोकना, ये दिखाता है कि न्यायपालिका ने नागरिक अधिकारों और धार्मिक स्वतंत्रता को प्राथमिकता दी है।

3- मुस्लिम समुदाय को यह भरोसा मिला है कि उनकी चिंताओं को अदालत ने पूरी गंभीरता से सुना। वहीं कोर्ट ने ये भी संदेश दिया है कि सरकार के पास कानून बनाने का अधिकार जरूर है, लेकिन उसे संविधान की सीमाओं के भीतर रहकर काम करना होगा।

चुनौतियां भी कम नहीं


1- कुछ प्रावधान लागू करना और कुछ रोकना, ये कानूनी अस्पष्टता पैदा करने का कारण बन सकता है। जमीनी स्तर पर अधिकारी और जनता दोनों ही कन्फ्यूजन में रहेंगे कौन-सा नियम मान्य है और कौन-सा नहीं?

2- सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा है कि सरकार को स्पष्ट नियम बनाने होंगे। लेकिन अब सवाल सामने है कि क्या ऐसे नियम बनाना संभव है कि जिनसे सभी पक्षों को संतुष्टि दी जा सके? 'प्रैक्टिसिंग मुस्लिम' इसका बड़ा उदाहरण बन गया है, जिसकी परिभाषा तय करना कहना भले ही आसान है लेकिन व्यवहारिक रूप से उतना ही मुश्किल।

3- वक्फ संपत्तियां पहले से ही भारी विवादों से घिरी हुई रही हैं। इस फैसले के बाद राजनीतिक दल और धार्मिक संगठन इसे अपने-अपने नजरिये से भुनाने की कोशिश करेंगे। जो सामाजिक ध्रुवीकरण की स्थितियां पैदा कर सकता है।

4- अदालत ने इसे रोका जरूर है, लेकिन यदि भविष्य में सरकार नए तरीके से ये प्रवाधान फिर लाने की कोशिश करती है, तो न्यायपालिका बनाम कार्यपालिका का टकराव गहराने से इनकार नहीं किया जा सकता।

कोर्ट ने बनाया लोकतांत्रिक संतुलन


इस फैसले से सुप्रीम कोर्ट ने लोकतांत्रिक संतुलन बनाए रखने का प्रयास किया है। न सरकार को पूरी तरह से छूट मिली है और न ही कानून को पूरी तरह से निरस्त कर धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाई गई है। लेकिन अधूरा फैसला देकर कोर्ट ने आगे का रास्ता सुरक्षित जरूर कर दिया है।

भविष्य की राह कैसे होगी आसान?

1- सरकार अब अगर हकीकत में इस कानून को लागू करना चाहती है, तो नियम बनाते समय पारदर्शिता के साथ ही जनभागीदारी भी सुनिश्चित करनी होगी।

2- सामुदायिक संवाद अनिवार्य होगा। वक्फ बोर्ड से जुड़े फैसले सिर्फ कानूनी नहीं बल्कि सामाजिक भी हैं। ऐसे में सभी पक्षों से संवाद जरूरी है।

3- किसी विवाद की निपटारे की प्रक्रिया पर न्यायिक निगरानी इस फैसले का सबसे महत्वपूर्ण बिंदू है। निपटारे की प्रक्रिया के दौरान कोर्ट या स्वतंत्र ट्रिब्यूनलों की भूमिका बनी रहना चाहिए।

4- इस कानून का इस्तेमाल राजनीति से परे रखकर करना सबसे बड़ी चुनौती है। ताकि इसे राजनीति और वोट बैंक का हथियार न बनाया जा सके।

क्या होगा फैसले का भविष्य?

कुल मिलाकर ये कहा जाए तो गलत नहीं होगा कि सुप्रीम कोर्ट का ये फैसला किसी अंतिम निष्कर्ष पर नहीं पहुंच पाया है। बल्कि इसने बहस को गहरा कर दिया है। इससे यह भी तय हो गया है कि आने वाले समय में वक्फ संशोधन कानून पर चर्चा जारी रहेगी। एक पक्ष को राहत तो किसी के लिए उलझन का मिश्रण बने इस फैसले ने भले ही अल्पसंख्यक समुदाय को राहत दे दी कि उनकी चिंताओं को कोर्ट में गंभीरता से सुना गया, लेकिन असली कसौटी तो तब होगी जब आधा लागू, आधे रोके गए इस कानून के लिए सरकार कैसे नियम बनाती है। क्या ये कानून समाज को जोड़ने का साधन बन पाएगा या एक और विवाद का कारण बनेगा?