कन्हैया कुमार ने गिरिराज पर साधा निशाना, कहा- ‘बेगूसराय के लोग मुद्दों पर करेंगे वोट’ आत्मविश्वास के पीछे है शाह की व्यूह रचना इस लक्ष्य को राजनीति के जानकार भी अंसभव सा लक्ष्य मान रहे हैं। बावजूद इसके शाह का कहना है कि 74 से एक सीट ज्यादा हो सकता है कम नहीं होगा। शाह के इस आत्मविश्वास के पीछे गजब की सियासी व्यूह रचना है, जिसके लिए वो जाने जाते हैं। अगर ऐसा हुआ तो प्रियंका गांधी का सक्रिय राजनीति में कूदना और सपा-बसपा गठबंधन की भाजपा को धूल चटाने की कवायद धरी की धरी रह जाएगी।
1 प्रत्याशी के 2 सीटों से चुनाव लड़ने के खिलाफ दायर याचिका पर सुप्रीम कोर्ट का … दलित और ओबीसी को साधने पर जोर मतदाताओं को भाजपा से जोड़े रखने की ये व्यूह रचना बहुत हद तक मंडल-कमंडल के दौर से मिलता जुलता है। उसी दौर में भाजपा को यूपी में कल्याण सिंह जैसा कद्दावर नेता मिला था। संघ की रणनीतियों की वजह से उस दौर में भाजपा को सवर्णों के साथ दलित और ओबीसी मतदाताओं का भी साथ मिला था। दलितों और ओबीसी की ताकत का अहसास भी भाजपा को पहली बार उसी समय हुआ। इस ताकत के बल पर ही बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद भाजपा नेता और वर्तमान में राजस्थान के राज्यपाल कल्याण सिंह के नेतृत्व में भाजपा का परचम यूपी में लहराया था। अब उससे भी बड़े लक्ष्य को हासिल करने के काम में भाजपा अध्यक्ष अमित शाह और सीएम योगी जुटे हैं।
जम्मू-कश्मीर: महबूबा सरकार में पूर्व राज्य मंत्री रहे इमरान रजा अंसारी के ठिकानों पर IT रेड क्या है यूपी में वोट का गणित? भारतीय जनगणना 2011 के मुताबिक उत्तर प्रदेश में करीब 80 फीसद आबादी हिंदुओं और 18 फीसदी आबादी मुस्लिमों की है। मोटे तौर पर जाति आधारित मतदाताओं की बात करें तो यूपी में ओबीसी की हिस्सेदारी सबसे ज्यादा 40 फीसदी है। दलितों की हिस्सेदारी 20 और सवर्ण मतदाताओं की 21 से 22 फीसदी है। शेष में मुस्लिम व अन्य मतदाताओं का समूह शामिल है। इनमें दलित और मुस्लिम पर बसपा की तो ओबीसी और मुस्लिमों पर सपा की पकड़ है। भाजपा के हिस्से में सवर्ण मतदाताओं के साथ दलित और एससी मतदाताओं का एक तबका जुड़ा है।
निर्मला सीतारमण ने ममता पर साधा निशाना, कहा- ‘टीएमसी का मतलब तुष्टिकरण, माफियागि… मोदी लहर से दलित और ओबीसी मतदाता भी नहीं बच पाए 2014 लोकसभा चुनाव की बात करें तो मोदी लहर में ओबीसी और दलित मतदाताओं ने पार्टी लाइन और जातिगत बंधनों को भुलाकर भाजपा को वोट दिया था। जिसकी वजह से यूपी में बसपा का पत्ता साफ हो गया तो सपा का दायरा नेताजी के परिवार तक सीमित हो गया। कांग्रेस का दायरा अमेठी और रायबरेली तक सीमित हो गई। ताज्जुब की बात ये है कि 2014 में बसपा को 20 फीसदी मतदाताओं का साथ मिला पर पार्टी के प्रत्याशी एक भी सीट पर जीत हासिल नहीं कर पाए। यानी बसपा को भी इस बात का एहसास हो गया था कि अब जीत के लिए केवल दलितों के भरोसे नहीं रहा जा सकता। इसके लिए दूसरे जातियों व समूहों के मतदाताओं को भी साधना होगा। इसके उलट भाजपा को 2014 में 42.3 फीसदी मत मिला और पार्टी 80 में से 71 सीटें जीतने में सफल हुई। जबकि एनडीए को 80 में से 73 सीटों पर जीत मिली।
2014 के हीरो अन्ना हजारे, 2019 में अप्रासंगिक कैसे हो गए? संघ की सोशल इंजीनियरिंग इस बार 2014 के परिणाम को दोहराने के लिए यादव बनाम गैर यादव पिछड़ी जातियों की ताकत का लाभ उठाने के लिए भाजपा कांशीराम के फार्मूले पर अमल करने में जुटी है। बता दें कि कांशीराम यूपी में गैर यादव पिछड़ी जातियों के दम पर सबसे पहले इसका लाभ बसपा को दिलाने में कामयाब हुए थे। उन्होंने दलितों के साथ-साथ गैर यादव जातियों को बीएसपी से जोड़ा था। अब कुछ इसी तर्ज पर आरएसएस काम कर भाजपा को लाभ पहुंचाना चाहती है।
NIA कोर्ट से प्रज्ञा ठाकुर को बड़ी राहत, चुनाव पर रोक लगाने से इनकार, एनआईए को लगाई फटकार योगी फार्मूला 2017 में विधानसभा चुनाव में प्रचंड बहुमत से सत्ता में आते ही सीएम योगी आदित्यनाथ ने दलित और ओबीसी वोट बैंक को साधने के लिए चार सदस्यीय सामाजिक न्याय समिति का गठन किया था। इसके पीछे सीएम योगी का मकसद दलित और ओबीसी वोट बैंक को भाजपा के स्थायी वोट बैंक में तब्दील करना है। पिछले दो साल से इस योजना पर काम जारी है। इस समिति का काम था पिछड़ों में भी ऐसी जातियों की पहचान करना जिन्हें ओबीसी रिजर्वेशन का फायदा नहीं मिल रहा है। इस समिति के अध्यक्ष जस्टिस राघवेंद्र ने अपनी रिपोर्ट में ओबीसी को 79 उपजातियों में बांटा है। तय है इसका लाभ भाजपा लोकसभा चुनाव 2019 में उठाना चाहेगी।
भाजपा को क्यों है दक्षिण की 130 सीटों से अप्रत्याशित परिणाम की उम्मीद? ये है शाह की 74 चाल दूसरी तरफ केंद्र सरकार ने ओबीसी के सब-कटेगराइजेशन के लिए 2 अक्टूबर, 2017 को एक राष्ट्रीय आयोग का गठन किया था। यह आयोग तय करेगा कि ओबीसी में शामिल जातियों को क्या आनुपातिक आधार पर प्रतिनिधित्व दिया जा सकता है। आयोग तय करेगा कि ऐसी कौन सी जातियां हैं जिन्हें ओबीसी में शामिल होने के बाद भी आरक्षण का पूरा लाभ नहीं मिला और ऐसी कौन सी जातियां हैं जो आरक्षण की मलाई खा रही हैं। चार सदस्यीय इस आयोग की अध्यक्ष दिल्ली हाईकोर्ट की पूर्व मुख्य न्यायाधीश जी रोहिणी हैं। इसके पीछे भाजपा का मकसद ओबीसी समुदायों में एक बड़े तबके को भाजपा से जोड़ना है।
सीताराम येचुरी ने कन्हैया के लिए बेगूसराय में किया प्रचार, कहा- ‘ मोदी को हराना… फ्लोटिंग वोट पर है भगवा ब्रिगेड की नजर सियासी मायनों में लहर और सुनामी की बात करते हुए हमें यह समझना होगा कि लहर होती क्या है? वास्तव में लहर तब आती है जब किसी भी जाति व वर्ग समूह के कैडर वोट से इतर बड़ी संख्या में मतदाता किसी असर में बह कर वोटिंग करते हैं। 2014 के लोकसभा चुनावों में ऐसे मतदाताओं की संख्या चार से पांच फीसदी अनुमानित थी। ऐसे मतदाता जाति, धर्म और वर्ग के परे जाकर जिसकी हवा होती है, उसकी तरफ बह जाते हैं।
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