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‘मुझे इस नौकरी में कोई रुचि नहीं, पर जरूरत है इसलिए कोशिश कर रहा हूं’

locationजयपुरPublished: Jan 11, 2019 08:40:04 pm

Submitted by:

manish singh

वर्ष 2021 तक 15 से 24 वर्ष की उम्र वाले लोगों की संख्या करीब 48 करोड़ होगी जो साक्षर होंगे और देश में अब तक की सबसे अधिक पढ़ी लिखी आबादी होगी। अर्थशास्त्रियों का मानना है कि नौकरियों को लेकर स्थिति अभी ठीक नहीं है।

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‘मुझे इस नौकरी में कोई रुचि नहीं, पर जरूरत है इसलिए कोशिश कर रहा हूं’

भारत दुनिया की तेजी से बढऩे वाली अर्थव्यवस्था है पर यहां नौकरियों के अवसर पैदा नहीं हो रहे हैं। 2017 तक नीति आयोग के उपाध्यक्ष रहे अरविंद पनगढिय़ा ने कहा था कि नौकरियों को लेकर जब तक सही आंकड़े नहीं पता चलेंगे और उसके अनुसार काम नहीं होगा तब तक देश की अर्थव्यवस्था को किसी हाल में गति नहीं दी जा सकती है।

भारत में बेरोजगारी आर्थिक समस्या के रूप में उभरी है। राजनीतिक दल बेरोजगारी को चुनावी मुद्दा बनाते हैं और युवाओं के वोट लेकर सत्ता में आने के बाद हाथ पर हाथ रखकर बैठ जाते हैं। ऐसा ही एक किस्सा है राजस्थान के झुंझुनंू के 19 साल के अनिल गुर्जर का जो हाल ही दिल्ली रेलवे की ग्रुप- डी की परीक्षा देने आए थे। भारतीय रेलवे ने राष्ट्रीय स्तर पर पोर्टर, क्लीनर, हेल्पर, गेटमैन, ट्रैकमैन और सहायक स्विचमैन के पदों पर भर्ती निकाली थी। 63 हजार पदों के लिए कुल करीब 1.9 करोड़ लोगों ने आवेदन किया।

अनिल के पिता किसान हैं। ये घर के पहले सदस्य हैं जिसने स्नातक किया है। जब ये परीक्षा केंद्र पर पहुंचे तब इन्हें पता चला कि वहां आने वाले हर परीक्षार्थी ने स्नातक या मास्टर्स की डिग्री की है जिसके बाद इन्हेें अहसास हुआ कि रेलवे या सरकार युवाओं की उम्मीदों को पूरा करने में विफल रहे हैं। सरकार द्वारा एक निजी यूनिवर्सिटी के जरिए कराए गए सर्वेंक्षण के मुताबिक देश के हर राज्य में 2011 से 2016 के बीच बेरोजगारी की दर तेजी से बढ़ी है। इसी का नतीजा है कि हर राज्य में नौकरियों के लिए विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं जो अच्छा संकेत नहीं है।

नौकरी के लिए युवाओं के बीच मैराथॉन दौड़ जैसी स्थिति है। रेलवे की ग्रुप डी नौकरी शिक्षित युवाओं के मुताबिक तो नहीं है लेकिन सुरक्षित है जिसमें 18 हजार रुपए प्रतिमाह के वेतन के साथ मुफ्त में ट्रेन यात्रा और दूसरी सुविधाएं हैं। राजस्थान के साथ उत्तर प्रदेश और उत्तरी भारत के राज्यों में नौकरियों को लेकर होड़ है क्योंकि गांवों में रोजगार के साधन नहीं हंै।

स्नातक बेरोजगारों की संख्या भी बढ़ी

श्रम अर्थशास्त्री संतोष मेहरोत्रा के अनुसार स्नातक बेरोजगारों की संख्या 4.1 फीसदी से बढकऱ 8.4 फीसदी हो गई है। बेरोजगार युवाओं को नौकरी देना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बड़ी जिम्मेदारियों में शामिल था। इस साल चुनाव है इसलिए ये बड़ा मुद्दा है। मोदी जब सत्ता में आए तो उन्होंने वादा किया था ‘सबका साथ सबका विकास’ लेकिन उत्पादन और स्टार्टअप के क्षेत्र में कुछ खास नहीं हो सका और वादा लगभग अधूरा ही रह गया।

नौकरियों के अवसर लगातार कम हो रहे हैं

मुंबई के सेंटर फॉर इंडियन इकोनॉमी रिसर्च की रिपोर्ट के अनुसार 2016 में नोटबंदी के फैसले के बाद पहले चार महीने में देश के 30 लाख लोगों को नौकरी गंवानी पड़ी थी। देशभर में नौकरियों को लेकर तैयार की गई इस रिपोर्ट में ये भी पता चला था कि नोटबंदी के बाद 2017-18 के बीच देश में कामगारों की संख्या भी घटी जो एक मजबूत नौकरी बाजार के लिए ठीक नहीं था। शोध करने वाली संस्था के प्रमुख महेश व्यास बताते हैं कि ‘देश में नौकरियों के अवसर लगातार कम हो रहे हैं’। सरकार युवाओं को नौकरी देने में पूरी तरह से असमर्थ है।

हर साल 80 लाख नौकरियों की जरूरत

इंडियन काउंसिल फॉर रिसर्च की अर्थशास्त्री राधिका कपूर का कहना है कि शिक्षित युवा ‘पकौड़े वाला’ नहीं बनना चाहता है। उसे अच्छी नौकरी चाहिए। इंस्टीट्यूट फॉर ह्ूमन डेवलपमेंट के अर्थशास्त्री अजीत घोष कहते हैं कि देश में हर साल 80 लाख नौकरियों की जरूरत है। घोष के मुताबिक देश में 10.4 करोड़ कामगार हैं जिनका इस्तेमाल सही ढ़ंग से नहीं हो रहा है। सरकार के श्रम मंत्रालय ने नौकरियों के आंकड़े सार्वजनिक नहीं किए।

सरकारी नौकरी की परीक्षा है अग्निपरीक्षा

अनिल गुर्जर अपनी जिंदगी में पहली बार दिल्ली आए थे और सुबह नौ बजे उन्हें परीक्षा देनी थी। पूरी रात रेलवे स्टेशन पर ही जमीन पर पन्नी बिछाकर सोए। सुबह परीक्षा केंद्र पहुंचने के लिए बस पकड़ी और करीब 7 बजकर 35 मिनट पर पहुंचे जहां सुरक्षाकर्मी परीक्षा से जुड़े नियम कानून की जानकारी लाउडस्पीकर पर बता रहे थे। अनिल से जब बात हुई तो उन्होंने कहा कि ‘मुझे इस नौकरी में कोई रुचि नहीं है लेकिन जरूरत है इसलिए पाने की कोशिश कर रहा हूं’। 90 मिनट की परीक्षा के बाद जब वे परीक्षा केंद्र से बाहर निकले तो उनके चेहरे पर एक अलग सी मुस्कान थी और इस बात को लेकर पूरी तरह आश्वस्त थे कि उनकी परीक्षा अच्छी हुई है, पर इसी के साथ उन्हें इस बात की भी चिंता सता रही थी कि एक सीट पर 300 उम्मीदवार हैं ऐसे में मुश्किलें कम नहीं है। फिर भी उन्हें उम्मीद है कि वे नौकरी पाने में सफल हुए तो उनकी मेहनत सफल हो जाएगी और जिंदगी पटरी पर आ जाएगी।

जोआना स्लेटर, वाशिंगटन पोस्ट की भारत में ब्यूरो चीफ हैं। अमरीका, यूरोप और एशिया में पत्रकारिता का अनुभव है। (वाशिंगटन पोस्ट से विशेष अनुबंध के तहत)

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