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आपको भी चौंका देगा सुप्रीम कोर्ट, आधी रात और दीपक मिश्रा के बीच ये अजीब इत्तेफाक

locationनई दिल्लीPublished: May 17, 2018 08:52:14 am

आपको भी चौंका देगा सुप्रीम कोर्ट, आधी रात और चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के बीच का ये अजीब इत्तेफाक।

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नई दिल्ली। कर्नाटक में सरकार बनाने को लेकर चल रही खींचतान के बीच मामला बुधवार देर रात सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया और देश के न्यायपालिका के इतिहास में दूसरी बार सुप्रीम कोर्ट ने भी मामले की गंभीरता को समझते हुए आधी रात को अपने दरवाजे खोल दिए और इस मामले पर तीन जजों की अदालत लगी। अब तक सुप्रीम कोर्ट दो बार आधी रात को खुल चुका है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट, आधी रात और सीजेआई दीपक मिश्रा के बीच एक खास कनेक्शन है। आईए आपको बताते हैं क्या है ये खास कनेक्शन…
देश के इतिहास में दो बार सुप्रीम कोर्ट आधी रात को खुला है, और इन दोनों ही मामलों में वर्तमान सीजेआई दीपक मिश्रा की अहम भूमिका रही है। कर्नाटक मामले में सीजेआई ने तीन जजों की बेंच तैयार की, जबकि इससे पहले 29 जुलाई 2015 को हुए याकूब मेमम वाले मामले में दीपक मिश्रा की अगुवाई में तीन जजों की बेंच ने फैसला सुनाया था। यानी देश में दो बार आधी रात को सुप्रीम कोर्ट खुली और दोनों ही बार दीपक मिश्रा इस प्रक्रिया का अहम हिस्सा रहे।
इतिहास में दूसरी बार आधी रात को खुली सुप्रीम कोर्ट, कर्नाटक की खींचतान पर लगी अदालत

कर्नाटक में ये रही भूमिका
पहले दूसरे मामले से शुरुआत करते हैं….कर्नाटक में राज्यपाल की ओर से बीजेपी को सरकार बनाने का न्यौता देने के खिलाफ कांग्रेस ने देर रात को सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। कांग्रेस की इस मांग पर मुख्य न्यायधीश दीपक मिश्रा ने सोच विचार के बाद करीब 12 बजे अदालत लगाने का फैसला लिया। रात 1 बजे सीजेआई दीपक मिश्रा ने मामले की सुनवाई के लिए 3 जजों की बेंच गठित की और 2 बजकर 10 मिनट पर सुनवाई शुरू हो गई जो तड़के 5.30 बजे तक चली। बुधवार देर रात सुप्रीम कोर्ट में तीन जजों की बेंच ने कांग्रेस की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई की। इस बेंच में जस्टिस एके सीकरी, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एसए बोबडे शामिल थे। इसके अलावा कांग्रेस की तरफ से अभिषेक मनु सिंघवी और केंद्र सरकार की तरफ से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने पक्ष रखा।
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याकूब के मामले में भी दीपक मिश्रा का रोल
अब बात करते हैं पहले मामले की…इससे पहले 29 जुलाई 2015 को पहली बार आधी रात को सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खुला था। मुंबई बम धमाकों के दोषी याकूब मेमन की याचिका, सुप्रीम कोर्ट, गवर्नर और बाद में राष्ट्रपति से खारिज होने के बाद फांसी से ठीक पहले आधी रात को जाने-माने वकील प्रशांत भूषण समेत 12 वकील चीफ जस्टिस के घर पहुंचे थे। उन्होंने याकूब मेमन की फांसी पर रोक लगाने की मांग की। इसके बाद तत्कालीन चीफ जस्टिस एच एल दत्तू ने वर्तमान चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अगुवाई में तीन जजों की बेंच गठित की। देर रात को ही जज सुप्रीम कोर्ट पहुंचे और मामले की सुनवाई शुरू हुई। तीन जजों की इस बेंच ने याकूब की फांसी की सजा को बरकरार रखा था।
ये भी है दिलचस्प इत्तेफाक
आप ये तो जान गए कि दो बार आधी रात को सुप्रीम कोर्ट खुला और दोनों ही मामलों में दीपक मिश्रा की अहम भूमिका रही। लेकिन एक और दिलचस्प बात इन दोनों ही मामलों से जुड़ी है। दरअसल याकूब मामले में आधी रात को अदालत लगी, लंबी बहस हुई लेकिन अंत में पूर्व फैसले को ही बरकरार रखा गया। इसी तरह कर्नाटक मामले में भी आधी रात को कोर्ट खुला और इस बार भी कोर्ट ने लंबी बहस के बाद राज्यपाल के फैसले को ही बरकरार रखते हुए येदियुरप्पा के शपथ लेने पर रोक नहीं लगाई। ये भले ही इत्तेफाक है लेकिन काफी दिलचस्प इत्तेफाक है।

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