दरअसल, मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मिजोरम में विधानसभा चुनाव नवंबर में प्रस्तावित है। इन राज्यों में चुनाव की तैयारियों में चुनाव आयोग पिछले कई महीनों से जुटा है। लेकिन इस बात की सूचना पहले से न होने के कारण चुनाव आयोग ने तेलंगाना में चुनाव कराने को लेकर अभी तक प्रारंभिक तैयारियां भी शुरू नहीं की है। ऐसे में चुनाव आयोग के लिए मतदाता सूची का अपडेशन, ईवीएम की व्यवस्था, मतदान केंद्र का प्रबंधन, जरूरी कर्मचारियों का प्रबंधन, करने के साथ सुरक्षा बल जैसे पहलुओं पर विचार करना मुश्लिक भरा काम हो सकता है। हालांकि गुरुवार को ही मुख्य चुनाव आयुक्त ओपी रावत ने कहा था कि उन्होंने सीएम के इस्तीफे और तत्काल चुनाव कराने के सुझाव को देखते हुए राज्य चुनाव आयोग को सभी जानकारियां तत्काल मुहैया कराने को कहा है। ताकि उन संभावनाओं पर विचार किया जा सके कि चारों राज्यों के साथ तेलंगाना का चुनाव संभव है या नहीं।
आपको बता दें कि तेलंगाना की राजनीति में सीएम के चंद्रशेखर राव का अभी कोई सानी नहीं है। इसके बावजूद उन्होंने सियासी नजाकत को देखते हुए सीएम के पद से इस्तीफा दे दिया है। साथ ही राज्यपाल से समय से पहले तेलंगाना विधानसभा भंग का जल्द चुनाव कराने का सुझाव दिया था। जबकि तेलंगाना विधानसभा का कार्यकाल मई, 2019 तक है। उन्होंने ऐसा कर कांग्रेस को बड़ा झटका दिया है ताकि राहुल गांधी केसीआर के विरोधियों से हाथ मिलाकर टीआरएस को पटखनी न दे सकें। चुनाव आयोग सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक अब यही दांव के चंद्रशेखर राव का उलटा पड़ सकता है।
आपको बता दें कि 2014 में अलग तेलंगाना राज्य बनने के बाद हुए पहले विधानसभा चुनाव में उन्हें 90 सीटें मिली थीं। विधानसभा की कुल 119 सीटें हैं। टीआरएस के खिलाफ यहां विपक्ष को 29 सीटें मिली थीं। इनमें कांग्रेस को 13, असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम को सात, भाजपा को पांच, टीडीपी को तीन और सीपीएम को एक सीटें मिली थीं।