विशेष राज्य का दर्जा देने वाली मांग
दरअसल, जेडीयू नेता केसी त्यागी ने सोमवार को एक बयान जारी कर कहा कि साल 2000 में विभाजन के बाद बिहार पिछले 18 सालों से राज्य से प्राकृतिक संसाधनों के भंडार और उद्योगों के अभाव से दो-चार हो रहा है। जिस हिसाब से राज्य का विकास जैसे होना चाहिए था, नहीं हुआ। उन्होंने कहा कि अब समय आ गया है कि केंद्रीय वित्त आयोग को इस मुद्दे पर नए सिरे से विचार करना होगा। चुनाव पर पैनी नजर रखने वालों का तो यह भी मानना है कि शायद जेडीयू को यह आभास हो गया है कि इस बार चुनाव में भाजपा का कमल नहीं खिलने वाला। यही वजह है कि जेडीयू समय रहते अपने आपको सुरक्षित करना चाहता है। हालांकि जेडीयू नेता ने एनडीए में रह कर ही बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने वाली मांग को उठाने की बात कही है, लेकिन कयास लगाए जा रहे हैं कि नीतीश की पार्टी इस मुद्दे के सहारे अपने लिए सुरक्षित ठिकाने तलाशने की शुरुआत कर चुकी है।
कांग्रेस ने दिखाया सॉफ्ट कॉर्नर
इसके साथ ही मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस ने समय की नजाकत को समझते हुए जेडीयू को लेकर सॉफ्ट कॉर्नर दिखाया है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता आजाद ने मौके को लपकते हुए कहा कि अगर चुनाव परिणाम आने के बाद नीतीश कुमार जैसे कुछ नेता साथ दें तो केंद्र में गैर भाजपा सरकार का गठन किया जा सकता है। आजाद ने तो यहां तक कह डाला कि यदि गठबंधन में कांग्रेस को प्रधानमंत्री का पद नहीं भी मिला तो यह पार्टी के लिए कोई मुद्दा नहीं होगा। उन्होंने कहा कि चुनाव परिणाम के पहले शीर्ष पद के दावेदारी पर आम सहमति का स्वागत किया जाएगा।
कब-कब उठाया विशेष राज्य का मुददा—
क्या है स्थिति —
40 लोकसभा सीटों वाले बिहार में जेडीयू को 2014 में केवल 2 सीटों पर ही संतोष करना पड़ा था। हालांकि उस समय जेडीयू एनडीए का हिस्सा नहीं थी। अब चूंकि बिहार में भाजपा और जेडीयू मिलकर चुनाव लड़ रहे हैं, ऐसे में पार्टी नेता 12 से 14 सीटें जीतने का दावा कर रहे हैं। अगर ऐसा हुआ तो जेडीयू चुनाव के बाद सरकार बनाने में महती भूमिका में निभा सकती है।