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Maratha Aarakshan से सियासी पारा हाई, उद्धव ठाकरे सरकार की नई मुसीबत आई

महाराष्ट्र में मराठा आरक्षण ( maratha aarakshan ) को लेकर भाजपा ने उद्धव सरकार को घेरना शुरू किया। आरक्षण मामले में उद्धव ठाकरे ( Uddhav Thackeray ) के नेतृत्व वाली सरकार के सामने बढ़ रही है मुश्किल। चव्हाण ने कहा कि सरकार सोमवार को फिर मामले को सुप्रीम कोर्ट लेकर जा रही है।  

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Maratha Aarakshan became a challenge for Uddhav Thackeray Govt

Maratha Aarakshan became a challenge for Uddhav Thackeray Govt

मुंबई। महाराष्ट्र की सियासत में फिर उबाल देखने को मिल रहा है और इसकी वजह मराठा आरक्षण ( maratha aarakshan ) बन गया है। बॉम्बे हाई कोर्ट द्वारा मराठा आरक्षण पर दिए गए फैसले को सुप्रीम कोर्ट द्वारा स्थगित कर देने से हलचल बढ़ गई है। भले ही अब यह मामला संवैधानिक खंडपीठ या बड़ी बेंच के पास भेजा जाए, लेकिन महाराष्ट्र में विपक्षी दल भाजपा ने इस मुद्दे को भुनाना शुरू कर दिया है और बयानबाजी कर सरकार को घेरने में लग गई है।

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भारतीय जनता पार्टी के मुताबिक उद्धव ठाकरे ( Uddhav Thackeray ) के नेतृत्व वाली सरकार ने मराठा आरक्षण मामले पर अपने पक्ष को ठीक से पेश नहीं किया। इस मामले की उप समिति के प्रमुख और प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण का कहना है कि इसे लेकर सामने आ रहे बयान सिर्फ सियासी हैं और जिन वकीलों ने देवेंद्र फडणवीस सरकार के दौरान हाई कोर्ट में पक्ष रखा था, उन्होंने ही अब सुप्रीम कोर्ट में भी इसका पक्ष रखा है। चव्हाण ने घोषणा की कि सरकार सोमवार को एक बार फिर मामले को सुप्रीम कोर्ट लेकर जा रही है।

इस मामले को लेकर महाराष्ट्र के सीएम उद्धव ठाकरे और एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार के बीच बुधवार रात को बैठक भी हुई। बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने मराठा आरक्षण पर आदेश उसी बिंदु पर दिया है, जिसके आधार पर उच्च न्यायालय ने इसे लागू करने की अनुमति दी थी।

अदालत ने कहा था कि भले ही संविधान में अधिकतम 50 फीसदी आरक्षण की बात कही गई है, लेकिन अपवाद वाले हालात में इसमें बदलाव का अधिकार है। राज्य सरकार ऐसा फैसला ले सकती है। बॉम्बे हाई कोर्ट ने वर्ष 2018 में यह फैसला सुनाया था। हालांकि अब सुप्रीम कोर्ट ने इसी फैसले को आधार बनाते हुए इसे स्थगित करने के आदेश जारी किए हैं।

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जबकि बॉम्बे उच्च न्यायालय के आदेश के बाद महाराष्ट्र में मराठा आरक्षण का रास्ता साफ हो गया था। हाई कोर्ट ने इसमें शर्त रखी थी कि इस आरक्षण को नौकरियों में 13 फीसदी और शिक्षा में 12 फीसदी से अधिक नहीं होना चाहिए। जबकि महाराष्ट्र सरकार ने 16 फीसदी आरक्षण की सिफारिश की थी।

गौरतलब है कि वर्ष 2009 से 2014 तक तमाम सियासी दलों व सत्ताधारी पार्टी के नेताओं द्वारा सरकार के सामने यह मांग रखी गई थी। जून 2014 में तत्कालीन सीएम पृथ्वीराज चव्हाण ने इसको मंजूरी भी दे दी थी। तत्कालीन आदेश में शिक्षा और नौकरी में मराठा समाज को 16 फीसदी आरक्षण देने के लिए कहा गया था। इसके अलावा मुस्लिम समाज को 5 फीसदी आरक्षण देने का भी निर्णय दिया गया था।