विरोधियों के बहकावे में आने की जरूरत नहीं बता दें कि बुधवार को राज्यसभा में इस बिल को पेश करते हुए अमित शाह ने अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों से कहा कि उन्हें चिंता करने की जरूरत नहीं है। उन्होंने कहा है कि लोगों से किसी के भ्रामक प्रचार में भी आने से बचने की अपील की है। उन्होंने कहा कि इस बिल से किसी को खतरा नहीं है। जो इस तरह की बात कर रहे वो जान बूझकर लोगों को बरगलाने में लगे हैं।
धर्म के नाम पर बांटने का षडयंत्र इसका जवाब देते हुए कांग्रेस के वरिष्ठ नेता आनंद शर्मा ने कहा कि मोदी सरकार धर्म के नाम पर लोगों को बांटना चाहती है। यह बिल संविधान के मूल भावना के खिलाफ है। सरकार को इस बिल में समाहित गलत प्रावधानाओं को हटाने चाहिए। उन्होंने कहा कि इस बिल को पास कराने को लेकर सरकार को जल्दबाजी में काम लेने से बदले इसे संसदीय समिति के पास विचार के लिए भेजे ताकि इस विषय पर गंभीरता से विचार का सर्वसमावेशी नीतियों का सुझाव दे सके।
कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी ने लोकसभा में गृह मंत्री अमित शाह पर तंज कसते हुए कहा कि पहले वो ये बताएं कि सामान्य हालत किसे कहते हैं। ऐसा इसलिए कि हर सवाल के जवाब में वो यही कहते हैं कि जम्मू-कश्मीर स्थिति सामान्य है। अगर ऐसा है तो वहां के नेता हिरासत में क्यों हैं?
ये बिल संविधान के साथ एक धोखा इस पत्र पर लेखक जावेद अख्तर, अभिनेता नसीरुद्दीन शाह और एडमिरल रामदास के अलावा इतिहासकार रोमिला थापर, अभिनेत्री नंदिता दास, अपर्णा सेन, सामाजिक कार्यकर्ता योगेंद्र यादव, तीस्ता सीतलवाड, अरुणा राय और दिल्ली हाईकोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश एपी शाह, देश के पहले सीआईसी वजाहत हबीबुल्ला के हस्ताक्षर हैं।
पत्र में यह भी लिखा गया है कि ये बिल संविधान के साथ एक धोखा है। इसलिए हम सरकार से इस बिल को तुरंत वापस लेने की मांग कर रहे हैं. आगे कहा गया है कि ये प्रस्तावित कानून भारतीय गणतंत्र के मूल चरित्र को आधारभूत रूप से बदल देगा और यह संविधान द्वारा मुहैया कराये गए संघीय ढांचे को खतरा पैदा करेगा।
किस बात की परेशानी? दरसअसल, विपरीत विचाधारा के नेताओं और सेलिब्रिटीज का कहना है कि यह बिल संविधान की मूल भावनाओं के खिलाफ है। मुस्लिम होने के आधार पर किसी को नागिरिकता देने से वंचित करना न्यायोचित नहीं है। हमारा संविधान सर्वसमावेशी समाज की बात करता है। जबकि नागरिकता संशोधन बिल धार्मिक आधार पर लोगों को बांटने का एक षडयंत्र है। इससे लोगों के बीच तनाव व वैमनस्यता को बढ़ावा मिलेगा। साथ ही देश की 72 वर्षोंं से स्थापित धर्मनिरपेक्ष छवि को भी धक्का लगेगा।