
नई दिल्ली। देश के सबसे पुराने अयोध्या विवाद पर ऐतिहासिक फैसले का पूरा देश इंतजार कर रहा है। इस मुद्दे पर एक सप्ताह के अंदर देश की सर्वोच्च अदालत अपना फैसला सुना सकता है। बता दें कि मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई 17 नवंबर को रिटायर हो रहे हैं। उन्होंने पहले की बता रखा है कि रिटायर होने से पहले वो राम मंदिर मुद्दे पर फैसला सुना देंगे।
इस बात को देशभर के लोग जानना चाहते हैं कि फैसला क्या आएगा, लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि राम जन्मभूमि के विवाद को यहां तक पहुंचाने वाला कौन है। वैसे तो लालकृष्ण आडवाणी से लेकर कई राजनेता, समाजसेवी और नौकरशाह इस सूची में शामिल हैं लेकिन केके नायर एक ऐसे नौकरशाह हैं जिन्होंने रामलला की मूर्ति को विवादित भूमि से हटने नहीं दिया। यहां तक की उन्होंने डीएम तक की नौकरी भी दांव पर लगा दी थी।
दरअसल, अयोध्या के विवादित स्थल पर रखी गईं रामलला की मूर्तियों को हटवाने के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने दो बार आदेश दिए लेकिन अयोध्या के डीएम ने दोनों बार उनके आदेश का पालन करवाने में असमर्थता जताकर बड़े हिंदूवादी चेहरे के रूप में अपनी पहचान बनाई।
उस समय अयोध्या में डीएम के रूप में केके नायर तैनात थे। डीएम और उनकी पत्नी ने बाद में चुनाव लड़ा और लोकसभा पहुंचे जबकि उनका ड्राइवर भी इस इमेज का फायदा उठाकर यूपी विधानसभा पहुंचने में कामयाब रहा।
1949 में रखीं गईं थीं मूर्तियां
बता दें कि 1949 में 22 और 23 दिसंबर की आधी रात मस्जिद के अंदर कथित तौर पर चोरी-छिपे रामलला की मूर्तियां रख दी गईं। अयोध्या में शोर मच गया कि जन्मभूमि में भगवान प्रकट हुए हैं। मौके पर तैनात कांस्टेबल के हवाले से लिब्राहन आयोग की रिपोर्ट में लिखा गया है कि इस घटना की सूचना कांस्टेबल माता प्रसाद ने थाना इंचार्ज राम दुबे को दी।
उसके बाद 50-60 लोगों का एक समूह परिसर का ताला तोड़कर दीवारों और सीढ़ियों को फांदकर अंदर घुस आया और श्रीराम की प्रतिमा स्थापित कर दी। साथ ही उन्होंने पीले और गेरुआ रंग में श्रीराम लिख दिया।
युद्ध में अयोध्या
इस बारे में हेमंत शर्मा ने अपनी कितबा युद्ध में अयोध्या नामक अपनी किताब में मूर्ति से जुड़ी एक दिलचस्प घटना का जिक्र किया है। उनके मुताबिक केरल के अलेप्पी के रहने वाले केके नायर 1930 बैच के आईसीएस अफसर थे। फैजाबाद के जिलाधिकारी रहते इन्हीं के कार्यकाल में बाबरी ढांचे में मूर्तियां रखी गईं या यूं कहें इन्होंने ही रखवाई थीं।
टर्निंग प्वाइंट
तत्कालीन नंबर केके नायर बाबरी मामले से जुड़े आधुनिक भारत के वे ऐसे शख्स हैं जिनके कार्यकाल में इस मामले में सबसे बड़ा टर्निंग प्वाइंट आया और देश के सामाजिक-राजनीतिक ताने-बाने पर इसका दूरगामी असर पड़ा।
केके नायर एक जून, 1949 को फैजाबाद के कलेक्टर बने। 23 दिसंबर, 1949 को जब भगवान राम की मूर्तियां मस्जिद में स्थापित हुईं तो तत्कालीन पीएम जवाहरलाल नेहरू ने यूपी के मुख्यमंत्री गोविंद बल्लभ पंत से फौरन मूर्तियां हटवाने को कहा। यूपी सरकार ने मूर्तियां हटवाने का आदेश दिया लेकिन जिला मजिस्ट्रेट केके नायर ने दंगों और हिंदुओं की भावनाओं के भड़कने के डर से इस आदेश को पूरा करने में असमर्थता जताई।
बाद में डीएम नायर ने 1952 में स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले ली। चौथी लोकसभा के लिए वे उत्तर प्रदेश की बहराइच सीट से जनसंघ के टिकट पर लोकसभा पहुंचे। इस इलाके में नायर हिंदुत्व के इतने बड़े प्रतीक बन गए कि उनकी पत्नी शकुंतला नायर भी कैसरगंज से तीन बार जनसंघ के टिकट पर लोकसभा पहुंचीं। उनका ड्राइवर भी उत्तर प्रदेश विधानसभा का सदस्य बना।
Updated on:
08 Nov 2019 02:38 pm
Published on:
08 Nov 2019 01:32 pm
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