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…और ऐसे पड़ी देवगढ़ की नींव

प्रतापगढ़: इतिहास के आइने से-01

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Rajesh Dixit

Apr 12, 2017

pratapgarh

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मदन वैष्णव
आपने मेवाड़ के इतिहास के बारे में तो पढ़ा होगा। और विश्वप्रसिद्ध दुर्ग चित्तौडग़ढ़ की भी सैर की होगी। महाराणा कुम्भा द्वारा बनवाए गए ' विजय स्तम्भ Ó को भी आपने देखा होगा। प्रतापगढ़ रियासत की कहानी भी इन्हीं कुम्भा के साथ शुरू होती है।
चित्तौडग़ढ के महाराणा मोकल के दो पुत्र थे। कुम्भा और क्षेमकर्ण। बड़े होने के नाते कुम्भा उदार थे, जबकि क्षेमकर्ण राज्य लिप्सु थे। इन्हें मेवाड़ की गद्दी चाहिए थी। कुम्भा अपने छोटे भाई की इच्छा को जानते थे। इसलिए वे गद्दी के प्रति उदासीन थे। लेकिन मेवाड़ राज्य के ठिकानेदार चाहते थे कि वंश परम्परा के अनुसार गद्दी पर कुम्भा ही बैठे। कुम्भा का राजतिलक हुआ और वे महाराणा बने तो क्षेमकर्ण को अच्छा नहीं लगा। राजा बनने की इच्छा इतनी बलवती हुई कि अपने भाई कुम्भा ने बड़प्पन दिखाया। लेकिन क्षेमकर्ण ने युद्ध का मार्ग चुना और मेवाड़ राज्य के महत्वपूर्ण ठिकाने सादड़ी (अब बड़ी सादड़ी) पर कब्जा कर लिया।
महाराणा कुम्भा बहुत उदार थे। चित्तौडग़ढ़ की महिमा इतनी फैली हुई थी कि दिल्ली और मालवा के शासकों की नजर ग्रहण की तरह चित्तौडग़ढ़ पर लगी रहती थी। बाहरी आक्रमणकारियों की ओर उनका अधिक ध्यान रहा और क्षेमकर्ण का मनाना मुमकिन नहीं हुआ तो बड़ी सादड़ी को छुड़ाने के लिए क्षेमकर्ण के विरुद्ध छोटी-बड़ी कार्रवाईयां करते रहे। क्षेमकर्ण को भटकने को मजबूर होना पड़ा। लेकिन क्षेमकर्ण की रानियों और पुत्रों पर कुम्भा की उदार दृष्टि बनी रही।
कुम्भा को बाहरी शत्रुओं से निपटना पड़ा। मगर चित्तौडग़ढ़ दुर्ग पर कुदृष्टियों के चलते उन्होंने एक और सुरक्षित दुर्ग कुम्भलगढ़ का निर्माण कराया। मालवा के सुल्तान पर विजय के उपलक्ष्य में उन्होंने चित्तौडग़ढ़ दुर्ग पर विजय स्तम्भ का निर्माण करवाया। इस विजय स्तम्भ के शिल्प में भारतीय इतिहास, कला और संस्कृति के दर्शन होते हैं।
कुम्भा को पहले तो छोटे भाई क्षेमकर्ण का विरोध झेलना पड़ा। और बाद में अपने पुत्र उदा की नाराजगी। अपने पिता कुम्भा के व्यक्तित्व से उदा प्रभावित नहीं था। इस कारण एक दिन अपने पिता की हत्या कर दी। उदा का यह कुकृत्य बेकार गया। वह चित्तौड़ की गद्दी पर नहीं बैठ पाया। उदा के छोटे भाई रायमल को मेवाड़ की गद्दी मिली।
उधर क्षेमकर्ण की मृत्यु के बाद बड़ी सादड़ी में जो मेवाड़ के खण्ड राज्य था, सूरजमल की गद्दी नशीनी हुई।
चित्तौडग़ढ़ के महाराणा रायमल और सादड़ी खण्ड राज्य के राजा सूरजमल चचेरे भाई थे। मेवाड़ राज्य की प्रतिष्ठा दांव पर थी। रायमल चाहते थे कि जैसे क्षेमकर्ण को भगाया, इसी तरह सादड़ी से सूरजमल को भी भगा दिया जाए।
आक्रमण की योजना बनी। सादड़ी पर पुन: मेवाड़ का पूर्णरूप से अधिकार हो जाए, कौन यह काम करने को तैयार है? यह प्रश्न उठा। महाराणा रायमल की सभा में सभी सभासद बैठे थे। सोने के थाल में सोने के वर्क से लिपटे पान बीडे रखे थे।
'जो सादड़ी को मुक्त कराना चाहे, वह बीड़ा उठाएÓ।
काफी देर तक किसी ने बीड़ा नहीं उठाया। भाईयों के आपसी मामले में सरदार पडऩा नहीं चाहते थे। उधर सूरजमल की कार्यशैली और मेवाड़ राज्य के प्रति लगाव अच्छी थी। अंत में महाराणा रायमल के पुत्र कुंवर पृथ्वीसिंह ने बीड़ा उठाया। और यहीं से देवगढ़ (देवलिया) राज्य की स्थापना की नींव पड़ी। यही देवलिया राज्य आगे चलकर 'प्रतापगढ़ राज्यÓ कहलाया।
...लगातार