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महुए के पेड़ पर सदियों से होता है हक

मनोज सेन बरखेड़ी. कांठल के जंगल में बहुतायत में पाए जाने वाले महुआ के पेड़ सदियों से आदिवासियों के लिए आय का जरिया बने हुए हैं।

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इतना ही नहीं इन पेड़ों पर इनका समुदाय स्तर पर परम्परागत हक भी रहता है। ऐसे में महुए के पेड़ परम्परागत रूप से आय का स्रोत हैं।
गौरतलब है कि काठंल के जंगल में महुए के पेड़ से मिलने वाले फूलों से शराब बनाई जाती है। जबकि पककर जो फल प्राप्त होता है, उसे डोलमा कहा जाता है, इससे तेल निकाला जाता है, जो कई उपयोग में लिया जाता है । इस प्रकार फूल और फल दोनों को बाजार में बेचकर आय होती है। इन दिनों महुए के पेड़ से फूल पककर गिर रहे हंै। ऐसे में लोग इन फूलों को बीनने में लगे हुए हैं।
महुए के पेड़ की उम्र करीब दो सौ वर्ष मानी जाती है। ऐसे में इस पेड़ से आमदनी भी होती है। जिस कारण पेड़ों का बंटवारा होता है। परिवार बढऩे के साथ ही पेड़ों पर हक अलग-अलग हो जाता है। जो आगे तक बढ़ता जाता है।
बच्चों से लेकर बुजुर्ग करते हैं एकत्रित
महुए के फूलों को एकत्रित करने में बच्चों से लेकर बुजुर्ग तक लगे हुए हैं। सुबह पेड़ों के नीचे फूल एकत्रित किए जा रहे हंै। अल सुबह से ही लोग महुए के पेड़ के नीचे फूलों को एकत्रित करते हुए दिखाई दे जाते हैं।
फूल के बाद फल पकता है। जो डोलमा कहा जाता है।इस डोलमे से तेल निकाला जाता है, जो साबुन व अन्य काम में लिया जाता है। हालांकि आदिवासी इलाके में इस तेल को खाद्य तेल के रूप में काम में लिया जाता है। इस तेल से कई प्रकार की औषधियों में भी काम में लिया जाता है।
महुए के प्रति खासा मोह
जंगल और खेतों की मेड़ आदि स्थानों पर लगे महुए के पेड़ से वर्षों तक होने वाली आय को देखते हुए लोगों को काफी मोह है। वहीं जिले में कार्यरत वन सुरक्षा समितियों की ओर से भी जंगल की जमीन पर लगे पेड़ों से आय होती है। इसे देखते हुए विभाग की ओर से भी प्रतिवर्ष महुए के काफी संख्या में पौधे तैयार करते हैं। इन पौधों की मांग भी अधिक रहती है।
एस.आर. जाट
उपवन संरक्षक, प्रतापगढ़

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