scriptकांठल में गत वर्षों से लगातार सोयाबीन की फसल बुवाई से उत्पादन प्रभावित | Sowing of Soya bean crop continuously for last several years in Kandha | Patrika News

कांठल में गत वर्षों से लगातार सोयाबीन की फसल बुवाई से उत्पादन प्रभावित

locationप्रतापगढ़Published: Mar 18, 2019 10:55:11 am

Submitted by:

Rakesh Verma

बढ़ता रकबा, घटता उत्पादन

pratapgarh

कांठल में गत वर्षों से लगातार सोयाबीन की फसल बुवाई से उत्पादन प्रभावित

कम होने लगी उत्पादकता
प्रतापगढ़. कांठल में गत वर्षों से बारिश की सीजन में लगातार सोयाबीन की फसल बुवाई करने से उत्पादकता प्रभावित होने लगी है।इसका परिणाम यह आने लगा है कि सोयाबीन की उत्पादकता में कमी होने लगी है। वहीं कीटनाशकों के अंधाधुंध प्रयोग के कारण भूमि की उर्वरकता भी खत्म होने लगी है। वहीं खाद्यान्न की गुणवत्ता भी कमजोर होती जा रही है।
इसे लेकर जहां किसात चिंतित है, वहीं कृषि वैज्ञानिक, अधिकारी भी इसके प्रभाव को कम करने के लिए जैविक खेती और फसल चक्र अपनाने की सलाह दे रहे हैं। किसानों को सलाह दी जा रही है कि इसके लिए अभी से ध्यान देना होगा।
जिले में गत 6 वर्ष की स्थिति
वर्ष क्षेत्रफल उत्पादकता
2012 121202 1321
2013 121902 1260
2014 122102 1264
2015 122328 1270
2016 122901 1301
2017 133630 1292
2018 133100 1250
(आंकड़े कृषि विभाग के अनुसार, क्षेत्रफल हैक्टेयर में, उत्पादकता प्रति हैक्टेयर में प्रति किलो)

मृदा के स्वास्थ्य में सुधार की जरूरत
किसानों को अभी से चेतना होगा। खेतों में गोबर की खाद और जैव उर्वरक डालना होगा।तभी खेतों की सेहत में सुधार होगा।जिले में गत वर्षों से गोबर की खाद का कम उपयोग और जैविक खाद का उपयोग नहीं किए जाने के परिणाम स्वरूप मिट्टी में कार्बनिक स्तर घटता जा रहा है। मृदा में उर्वरा शक्ति गिरने का कारण कार्बनिक पदार्थों की मात्रा कम करना है। जो कि गोबर की खाद, फसलों के अवशेष और जैव उर्वरक में होते है।
नहीं जलाएं फसल अवशेष
फसल कटाईके बाद में अधिकांश किसान फसल अवशेषों को खेत में ही आग लगा देते है।जो खेती के लिए काफी नुकसानदायक है।इससे मिट्टी में मौजूद जीवाणु एवं कार्बनिक पदार्थ जलकर नष्ट हो जाते है।इस कारण मिट्टी की उर्वरा शक्ति कम हो जाती है। गौरतलब है कि जिले में गेहूं की फसल कटाई कें बाद खेतों में आग लगाकर अवशेष जलाने की परम्परा है।जो खेतों को बंजर बना रहे है।इफको के क्षेत्रीय अधिकारी मुकेश आमेटा का कहना है कि फसलों के अवशेष को खेतों में बिखेरकर इस पर वेस्ट डिम्पोजर का छिडक़ाव कर हंकाई करनी चाहिए। यह नहीं किए जाने पर गोबर की खाद सबसे बेहतर होती है। इससे खेतों की मिट्टी की उर्वरा शक्ति बढ़ती है।
मिट्टी की जांच करवा पोषक तत्व का उपयोग
किसानों को पोषक तत्वों की पूर्ति करने वाले खाद, उर्वरक, जैव उर्वरक, वर्मी कम्पोस्ट, फसल अवशेष का समुचित प्रयोग करना चाहिए।राइजोबियम कल्चर से बीजोपचार कर बुवाई करने पर इन फसलों की उपज में सार्थक वृद्धि होती है।फास्फो सल्फो नाइट्रो कम्पोस्ट सामान्य कम्पोस्ट से पांच गुना अधिक पोषक तत्वों की पूर्ति करता है।जो फसल अवशेषों, गोबर की खाद, जिप्सम, रॉक फास्फेट एवं यूरिया से तैयार करते है।जो फसलों के पोषक तत्वों के साथ मिट्टी का कार्बनिक स्तर बनाए रखने में काफी उपयुक्त है।
फसल चक्र अपनाएं, गोबर व जैव उर्वरक का करें उपयोग
जिले में गत वर्षों से लगातार सोयाबीन की फसल ही बुवाई की जा रही है। इससे उत्पादन कम हो रहा है। वहीं खेतों मेंसंतुलित खाद का उपयोग नहीं हो पा रहा है।ऐसे में मिट्टी की सेहत खराब होती जा रही है। इसे देखते हुए किसानों को चाहिए कि गोबर की खाद का उपयोग करें। ऐसा नहीं करने पर फसलों की थ्रेसरिंग के बाद बचा भूसा और अवशेष को खेतों में ही बिखेर दें। इसके बाद वेस्ट डिम्पोजर का छिडक़ाव कर हंकाई करें। जिससे खेतों को जैविक खाद की उपलब्धता होगी।फसल चक्र अपनाने पर खेतों में सुधार हो सकता है।
डॉ. योगेश कन्नोजिया
प्रभारी, कृषि विज्ञान केन्द्र, प्रतापगढ़
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