20 दिसंबर 2025,

शनिवार

Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

30 सेकंड में अंग-अंग में भर दी थी गोलियां, बॉडी उछलती रही…फिर भी नहीं रुकी फायरिंग, जब इलाहाबाद की सड़क बनी कब्रगाह

Jawahar Pandit Murder Case : प्रयागराज के सिविल लाइंस में सपा विधायक जवाहर यादव की बीच सड़क पर हत्या कर दी गई थी। जवाहर यादव को करवरिया ब्रदर्स ने एके-47 से भून डाला।

3 min read
Google source verification

सिविल लाइंस में पहली बार चली थी एके-47, PC- x

प्रयागराज : 13 अगस्त 1996, इलाहाबाद का सिविल लाइंस इलाका। शाम का वक्त था। एक सफेद मारुति कार (नंबर UP-70 E-3479) हनुमान मंदिर चौराहे से पत्थर गिरजाघर की ओर बढ़ रही थी। कार में समाजवादी पार्टी के विधायक जवाहर यादव उर्फ जवाहर पंडित बैठे थे। उनके साथ ड्राइवर गुलाब यादव और प्राइवेट गनर कल्लन यादव थे। कार के ठीक पीछे एक टाटा सूमो भी चल रही थी, जिसमें उनके कुछ साथी सवार थे।

सुभाष चौराहे के पास पैलेस सिनेमा के आगे अचानक एक सफेद टाटा सिएरा ने मारुति को ओवरटेक किया। ड्राइवर गुलाब यादव को कुछ गड़बड़ लगा। वो सिएरा को फिर से ओवरटेक करने वाले थे कि बगल की लेन में एक सफेद मारुति वैन (नंबर UP-70 8070) उनके बराबर आ गई। आगे चल रही सिएरा ने ब्रेक मार दिया। जवाहर की कार रुकने पर मजबूर हो गई।

वैन से चार लोग उतरे। इनके हाथों में रायफल, रिवॉल्वर और AK-47 थी। आरोपियों ने कार पर ताबड़तोड़ फायरिंग शुरू कर दी। AK-47 की तड़तड़ाहट पहली बार इलाहाबाद की सड़कों पर गूंजी। आधे मिनट में जवाहर पंडित के शरीर में दस गोलियां धंस चुकी थीं।फिर भी हमलावर गोली मारते जा रहे थे, अब जवाहर पंडित की बॉडी गोली लगते ही ऊपर उछल जा रही थी। ड्राइवर गुलाब यादव और कल्लन यादव को भी गोलियां लगीं। जवाहर और गुलाब की मौके पर ही मौत हो गई। कल्लन गंभीर रूप से घायल हुए, लेकिन जान बच गई, हालांकि कुछ समय बाद बीमारी से उनकी मौत हो गई।

अदावत के चलते हुई थी जवाहर पंडित की हत्या

यह हत्याकांड यूं ही नहीं हुआ। इसका तार बालू खनन के ठेकों और राजनीतिक वर्चस्व की लड़ाई से जुड़ा था। जवाहर पंडित जौनपुर के एक छोटे गांव से इलाहाबाद आए थे। मजदूरी से शुरू करके शराब और बालू के कारोबार में नाम कमाया। 1993 में झूंसी से सपा के टिकट पर विधायक बने। मुलायम सिंह यादव के करीबी थे। सपा सरकार में बालू के ठेकों पर उनका कब्जा बढ़ा। दूसरी तरफ करवरिया बंधु- कौशांबी के छोटे गांव से निकले ब्राह्मण परिवार भी बालू के धंधे में दबदबा रखते थे। दोनों के बीच 1980 के दशक से अदावत चल रही थी।

सीबी-सीआईडी ने की थी मामले की जांच

जवाहर के भाई सुलाकी यादव की तहरीर पर कपिल मुनि, उदयभान, सूरजभान, रामचंद्र त्रिपाठी और एक अन्य आरोपी पर मुकदमा दर्ज हुआ। जांच सीबी-सीआईडी को सौंपी गई। मुकदमा लंबा खिंचा। 2004 में चार्जशीट दाखिल हुई। 2018 में योगी सरकार ने केस वापस लेने की अर्जी दी, लेकिन विजमा यादव के विरोध और हाईकोर्ट के हस्तक्षेप से मुकदमा चला। 31 अक्टूबर 2019 को अदालत ने कपिल मुनि, उदयभान, सूरजभान और रामचंद्र को दोषी ठहराया। 4 नवंबर को सश्रम उम्रकैद और 7.20 लाख जुर्माने की सजा सुनाई।

राजनीति में रसूख

करवरिया परिवार का सफर कौशांबी के छोटे गांव से शुरू होकर प्रयागराज की सियासत तक फैला। उदयभान दो बार भाजपा से विधायक बने, कपिल मुनि बसपा से सांसद, सूरजभान एमएलसी। जेल जाने के बाद उदयभान की पत्नी नीलम करवरिया भाजपा से विधायक बनीं। 2024 में उदयभान को अच्छे व्यवहार के आधार पर समय पूर्व रिहा कर दिया गया, जबकि बाकी भाई जेल में हैं।

विजमा यादव ने रखा राजनीति में कदम

पति की हत्या के बाद विजमा यादव ने राजनीति में कदम रखा। 1990 में जवाहर से शादी के सिर्फ छह साल बाद विधवा हुईं। 1996 में सपा ने झूंसी से टिकट दिया। 12 हजार वोटों से जीतीं। 2002 में मार्जिन बढ़कर 18 हजार हुआ। 2007 में बसपा के प्रवीण पटेल से हारीं। 2012 में प्रतापपुर से फिर विधायक बनीं। विजमा ने पति की विरासत को आगे बढ़ाया और न्याय की लड़ाई लड़ी। आज भी वे सक्रिय हैं और उदयभान की रिहाई को अवैध बताती हैं।