CG News: राजधानी के प्राचीन मठों में एक ‘जैतूसाव’ की 92 एकड़ जमीन एक फर्जी महंत ने रायपुर के तत्कालीन तहसीलदार अजय चंद्रवंशी की मदद से बेच दी। चंद्रवंशी अभी गरियाबंद जिले में राजिम के तहसीलदार हैं। 400 करोड़ रुपए से ज्यादा के इस महाघोटाले को संदेहास्पद वसीयतनामे और फर्जी आधार कार्ड के जरिए अंजाम दिया गया। तहसीलदार ने इसी आधार पर फर्जी महंत को जैतूसाव मठ का सर्वराकार घोषित कर दिया।
दरअसल, मठ का संचालन रजिस्टर्ड ट्रस्ट करता है। इसमें 10 ट्रस्टी हैं। प्रबंधक रायपुर के मौजूदा कलेक्टर होते हैं। चंद्रवंशी ने रायपुर तहसीलदार रहते अपने अधिकार से बाहर जाकर दस्तावेजों से कलेक्टर का नाम विलोपित किया। ट्रस्टियों के अधिकार छीने और महंत राम आशीष दास को सर्वराकार के तौर पर मठ की संपत्तियों का उत्तराधिकारी बना दिया। उसने धरमपुरा में 75 एकड़, तो दतरेंगा में साढ़े 17 एकड़ जमीन बेच डाली।
इन जमीनों की रजिस्ट्री शराब घोटाले में फंसे अनवर ढेबर, भारत माला घोटाले में जेल में बंद हरमीत खनूजा, विकास शर्मा के नाम पर की गई। श्री रामचंद्र स्वामी जैतूसाव मठ ट्रस्ट की आपत्ति पर रायपुर कमिश्नर महादेव कावरे ने हाल ही में धरमपुरा में 57 एकड़ जमीन वापस मठ के नाम की है। इससे पहले भी 5 एकड़ जमीन लौटाई गई थी। अभी यहां 13 एकड़ जमीन मिलनी बाकी है। इनकी कीमत ही 300 करोड़ से ज्यादा है। जबकि, दतरेंगा में भी साढ़े 17 एकड़ जमीन का सौदा हुआ है।
ये मामला अभी भी विचाराधीन है। दोनों मिलाकर करीब 400 करोड़ का जमीन घोटाला है। इसके अलावा अभनपुर में भी मठ की 30 एकड़ जमीन में भारत माला मुआवजा घोटाला हुआ। इस तरह जैतूसाव मठ की कुल 100 एकड़ जमीन हड़प ली गई। आरोप है कि आशीष ने एक मुस्लिम शब्बीर हुसैन का नाम समीर शुक्ला और उसके पिता का नाम जीपी शुक्ला बताकर फर्जी आधार कार्ड बनवा लिया है। वे भी पैसे लेकर मंदिर की संपत्ति बेच रहे हैं।
तहसीलदार अजय चंद्रवंशी पहले भी अपने कारनामों के लिए मशहूर रहे हैं। रायपुर तहसीलदार रहते 100 से ज्यादा जमीनों को फ्लैट बता रजिस्ट्री रोक दी। लेन-देन का मामला खुला तो तबादला कर गरियाबंद जिले में भेजा गया। यहां राजिम तहसीलदार बने। इनके रहते तहसील में मनमानी, वसूली आम रही। पत्रिका ने राजिम से ग्राउंड रिपोर्ट छापी। तत्कालीन कलेक्टर दीपक अग्रवाल ने उन्हें फिंगेश्वर भेज दिया था। वहां से डिंपल ध्रुव राजिम भेजी गईं। कुछ महीनों बाद चंद्रवंशी वापस राजिम लौट आए। डिंपल फिंगेश्वर भेज दी गईं।
पूरे घोटाले को वॉलफोर्ट सिटी में रहने वाले आशीष तिवारी ने फर्जी आधार कार्ड के आधार पर अंजाम दिया। उसने अपना सरनेम हटाकर नाम के आगे महंत राम और पीछे दास जुड़वा दिया। इस तरह वह महंत राम आशीष दास बन गया। अपना पता जैतूसाव मठ बताया। दरअसल, उसके मामा महंत रामभूषध दास मठ के पूर्व महंत थे। 2007 में उनका देहांत हो चुका है।
CG News: आशीष ने वसीयतनामा पेश किया, जिसमें उसने मामा (पूर्व महंत) की ओर से उसे अपना उत्तराधिकारी चुनने का दावा किया। इन्हीं फर्जी और विवादित दस्तावेजों के आधार पर तत्कालीन तहसीलदार चंद्रवंशी ने उसे मठ की संपत्तियां बेचने का अधिकार दे दिया। कमिश्नर ने भी अपनी जांच में पूर्व महंत के वसीयतनामे को संदेहास्पद बताया है।
जैतूसाव मठ के सचिव महेंद्र अग्रवाल और ट्रस्टी अजय तिवारी बताते हैं कि मठ को सारी संपत्ति 150 साल पहले दान में मिली थी। दानदाता उमादेवी अग्रवाल ने तभी साफ कर दिया था कि जमीनें न तो किसी के नाम पर ट्रांसफर की जाएंगी, न बेची जाएंगी। मंदिर और भक्तों के हित में इस्तेमाल होगा।
वैसे भी जैतूसाव मठ के नियमों के अनुसार महंत का ब्रह्मचारी होना जरूरी है। आशीष शादी-शुदा है। उसके 2 बच्चे हैं। तहसीलदार ने ऐसे शख्स को मठ की संपत्ति बेचने दी, यह भ्रष्टाचार में उनकी सीधी मिलीभगत को साबित करता है। ट्रस्ट अब खुद को महंत बताकर जमीनें बेचने वाले आशीष तिवारी और इसमें उसका साथ देने वाले तहसीलदार अजय चंद्रवंशी के खिलाफ माना थाने में एफआईआर दर्ज करवाएगा।
Updated on:
21 Jun 2025 12:09 pm
Published on:
21 Jun 2025 12:08 pm