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CG Medical College: नेहरू मेडिकल कॉलेज में नए विषयों पर थीसिस करने में एमडी-एमएस छात्रों को हो रही परेशानी

CG Medical College: रायपुर प्रदेश के सबसे बड़े व सबसे पुराने पं. जवाहरलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज में पीजी छात्रों को नए विषयों या नई बीमारियों पर थीसिस करने में परेशानी हो रही है। छात्र ने किट व जरूरी जांच में अपनी जेब से एक से डेढ़ लाख खर्च किया। तब कहीं जाकर उनका थीसिस पूरा हुआ।

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रुकी पैसे बर्बादी! समिति ने कहा- नेहरू मेडिकल कॉलेज के एनाटॉमी विभाग में 35 से 40 डेडबॉडी उपलब्ध...(photo-patrika)

रुकी पैसे बर्बादी! समिति ने कहा- नेहरू मेडिकल कॉलेज के एनाटॉमी विभाग में 35 से 40 डेडबॉडी उपलब्ध...(photo-patrika)

CG Medical College: छत्तीसगढ़ के रायपुर प्रदेश के सबसे बड़े व सबसे पुराने पं. जवाहरलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज में पीजी छात्रों को नए विषयों या नई बीमारियों पर थीसिस करने में परेशानी हो रही है। दरअसल कॉलेज में एडवांस जांच की सुविधा उपलब्ध नहीं है। तीन साल पहले स्क्रब टाइफस पर मेडिसिन विभाग के एक छात्र को थीसिस करने दिया गया था। छात्र ने किट व जरूरी जांच में अपनी जेब से एक से डेढ़ लाख खर्च किया। तब कहीं जाकर उनका थीसिस पूरा हुआ।

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CG Medical College: मशीन नहीं चालू होने से छात्रों को हो रही दिक्कत

इस साल भी तीन पीजी छात्रों को नर्व व मसल्स की बीमारी पर थीसिस करने दिया गया है। दिक्कत ये है कि दोनों बीमारियों की जांच के लिए मेडिसिन विभाग में एनसीवी व ईएमजी मशीन लगी है। लेकिन सालभर बाद भी मशीन को चलाने के लिए टेक्नीशियन नियुक्त नहीं हो पाया है। इससे नर्व व मसल्स डिसआर्डर का पता चलेगा। मशीन चालू नहीं होने से तीन पीजी छात्र थीसिस भी शुरू नहीं कर पा रहे हैं। ऐसे में अगर थीसिस पूरा करना होगा तो उन्हें मरीजों की जांच अपने खर्च पर करवानी होगी।

निजी अस्पतालों में एक जांच के लिए 3 से 4 हजार रुपए लगते हैं। ऐसे में छात्रों के लाखों रुपए खर्च होना तय है। हालांकि छात्रों को 65 से 75 हजार रुपए प्रति माह स्टायपेंड मिलता है, लेकिन थीसिस पूरा करवाना कॉलेज की जिमेदारी है। छात्र अपना थीसिस पूरा करने के लिए जेब से खर्च कर देते हैं, ये अलग बात है। कॉलेज प्रबंधन भी एडवांस जांच के लिए पहल नहीं कर रहा है। इसलिए पीजी छात्रों को परेशानी हो रही है।

साढ़े 6 साल से लगी पेट सीटी

स्कैन मशीन, जांच ही नहीं: कैंसर विभाग में पेट सीटी व गामा कैमरा मशीन साढ़े 6 साल से लगी है, लेकिन छात्र इस पर थीसिस नहीं कर पा रहे हैं। जब मशीन ही चालू नहीं है और थीसिस कैसे किया जा सकता है? जबकि विभाग की ओपीडी में रोजाना 250 से 300 मरीजों का इलाज किया जाता है। यही नहीं 100 से ज्यादा मरीज हमेशा भर्ती रहते हैं। बाहर जांच में 22 से 25 हजार रुपए लगता है। जबकि एस में 40 दिनों की वेटिंग है और जांच में 7 हजार रुपए खर्च होता है। ऐस में कोई पीजी छात्र थीसिस पर इतना ज्यादा खर्च क्यों करना चाहेगा?

पीजी छात्रों को थीसिस देते समय यह देखा जाता है कि कॉलेज व अस्पताल में क्या संभव है। चूंकि ये पीजी छात्र विभिन्न बीमारी के मरीजों का इलाज या ऑपरेशन करते हैं इसलिए सभी थीसिस बीमारियों पर ही आधारित होते हैं। बीमारी से पहचान के पहले डायग्नोस जरूरी है। इसके लिए जरूरी मशीन होना जरूरी है। चाहे वह ब्लड टेस्ट के लिए हो या नर्व या मसल्स के लिए। ब्रेन, हार्ट, लीवर, किडनी, आई से संबंधित जांच भी की जाती है।