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बिना पास हुए MBBS फाइनल ईयर की क्लास में बैठ रहे छात्र, आखिर क्या है वजह? जानें..

CG Medical College: रायपुर प्रदेश के मेडिकल कॉलेजों में बिना पास हुए छात्र एमबीबीएस फाइनल ईयर भाग-दो की क्लास अटेंड कर रहे हैं।

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हिंदी माध्यम MBBS बेअसर? दो साल से नहीं आया एक भी अभ्यर्थी, हिंदी माध्यम में एक भी एडमिशन नहीं...(photo-patrika)

हिंदी माध्यम MBBS बेअसर? दो साल से नहीं आया एक भी अभ्यर्थी, हिंदी माध्यम में एक भी एडमिशन नहीं...(photo-patrika)

CG Medical College: छत्तीसगढ़ के रायपुर प्रदेश के मेडिकल कॉलेजों में बिना पास हुए छात्र एमबीबीएस फाइनल ईयर भाग-दो की क्लास अटेंड कर रहे हैं। ये इसलिए हो रहा है, क्योंकि पं. दीनदयाल उपाध्याय हैल्थ साइंस विवि दिसंबर में हुई भाग-एक की परीक्षा का रिजल्ट नहीं निकाल पाया है। ये परीक्षा 6 से 16 दिसंबर तक हुई थी।

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CG Medical College: सरकारी कॉलेज का हाल

प्रैक्टिकल जनवरी के पहले सप्ताह में पूरा हो गया था। इसके बाद भी फॉरेंसिक मेडिसिन का परचा दो दिन पहले ही पूरा चेक हो पाया है। एक-दो दिन बाद रिजल्ट निकलने की संभावना है। बिना पास हुए अगली क्लास अटेंड करने के पीछे का उद्देश्य कोर्स पूरा करना होता है। एमबीबीएस फाइनल ईयर भाग-दो डेढ़ साल का होता है। ऐसे में परीक्षा होते ही सभी छात्रों को बिना रिजल्ट निकाले अगली क्लास में पढ़ाई कराई जा रही है।

परीक्षा का मूल्यांकन ऑनलाइन करवाया जा रहा है। इस कारण भी रिजल्ट में लगातार देरी हो रही है। भाग-2 का रिजल्ट 22 अप्रैल को जारी किया गया, जबकि इसका प्रैक्टिकल मार्च में हो गया था। रिजल्ट देरी से निकलने के कारण छात्रों की इंटर्नशिप में देरी हो रही है। अब भी छात्रों की पोस्टिंग में दो से तीन साल लगेंगे। इंटर्नशिप में देरी होगी तो दो साल की बॉन्ड पोस्टिंग में भी देरी होगी। विवि जल्द रिजल्ट जारी करने की तैयारी कर रहा है। हालांकि विवि रिजल्ट निकालने में लगातार पिछड़ रहा है।

फैकल्टी परचा जांचने में कर रहे आनाकानी

सरकारी मेडिकल कॉलेजों की कुछ फैकल्टी परचा जांचने में आनाकानी कर रहे हैं। पत्रिका की पड़ताल में पता चला है कि विवि एक परचा के लिए 60 रुपए पारिश्रमिक देता है। जबकि डॉक्टरों को प्राइवेट प्रैक्टिस में एक मरीज के कंसल्टेंट फीस के रूप में 500 रुपए या इससे ज्यादा मिल जाता है। जानकारों के अनुसार, एमबीबीएस फाइनल ईयर भाग-2 का परचा सरकारी कॉलेजों की फैकल्टी की उदासीनता के कारण प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों की फैकल्टी से परचे जांच करवाए गए, ताकि रिजल्ट निकालने में देरी न हो।

हालांकि कुछ केस ऐसे भी है, जिसमें प्राइवेट कॉलेज के प्रोफेसर ने परचे जांचने में आनाकानी की तो दूसरे प्राइवेट कॉलेज के टीचर से परचों का मूल्यांकन करवाया गया। तब जाकर फाइनल ईयर का रिजल्ट निकल पाया है। भाग एक में यही हो रहा है। फॉरेंसिक मेडिसिन का परचा नेहरू मेडिकल कॉलेज की फैकल्टी द्वारा पूरा नहीं जांचने के कारण निजी कॉलेज से मूल्यांकन करवाया गया।