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Parents day 2025: बच्चों की परवरिश अब पहले जैसी नहीं, कब हुई इसकी शुरुआत? पैरेंट्स डे पर जानिए आज के दौर में क्या कहते हैं विशेषज्ञ

Parents day 2025: पैरेंट्स डे महज़ एक तारीख नहीं, बल्कि एक भावना है, जो हर दिन उनके प्रति सम्मान और आभार का अहसास कराती है। उनकी छाया में ही हम बड़े हुए हैं, अब समय है कि हम उन्हें सुकून भरा साथ दें।

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पैरेंट्स डे: (फोटो सोर्स- Getty Images)

पैरेंट्स डे: (फोटो सोर्स- Getty Images)

Parents day 2025: हर साल जुलाई के चौथे रविवार को 'अंतर्राष्ट्रीय पैरेंट्स डे' मनाया जाता है। यह दिन हमारे जीवन के सबसे महत्वपूर्ण व्यक्तित्व, माता-पिता के समर्पण, त्याग, प्रेम और परवरिश को समर्पित होता है। चाहे वह पिता का मजबूत कंधा हो या मां की ममता भरी गोद, हमारी जिंदगी की हर नींव माता-पिता की छांव में ही रखी जाती है।

परवरिश अब सिर्फ पालन-पोषण नहीं

आज के दौर में पेरेंटिंग का मतलब सिर्फ अच्छे स्कूल, ट्यूशन और पोषण तक सीमित नहीं है। अब यह भावनात्मक संवाद, तकनीकी समझ और समय के साथ चलने की कोशिश का दूसरा नाम बन चुका है। एक मां अब सिर्फ खाना बनाने वाली नहीं, बल्कि काउंसलर, फ्रेंड और गाइड भी है। वहीं पिता अब महज़ कमाई का जरिया नहीं, बल्कि बच्चों की भावनात्मक संरचना में बराबर की भूमिका निभा रहे हैं।

कहां से शुरू हुआ पैरेंट्स डे?

इस दिन की शुरुआत संयुक्त राज्य अमेरिका में वर्ष 1994 में हुई थी। तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन ने इसे राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता दी थी। तब से यह दिन हर साल जुलाई के चौथे रविवार को माता-पिता के प्रति सम्मान और जिम्मेदारी के भाव के साथ मनाया जाता है।

विशेषज्ञों से सीधी बात: क्या कहते हैं अलग-अलग पेशे के लोग?

पैरेंट्स डे के खास मौके पर हमने रायपुर के अलग-अलग पेशे और अनुभव के लोगों से बात की। सीए, मनोवैज्ञानिक, रिलेशनशिप काउंसलर, एचआर प्रोफेशनल और शिक्षाविद्। सभी ने अपने-अपने नजरिए से पेरेंटिंग के मूल तत्व, चुनौतियां और बच्चों के मानसिक व सामाजिक विकास में पैरेंट्स की भूमिका को गहराई से बताया। आइए पढ़ते हैं उनकी बेबाक राय, अनुभव और सीख, जो हर माता-पिता को सोचने पर मजबूर कर सकती है।

ओवर प्रोटेक्शन से बचें

सवाल: बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर पैरेंटिंग का कितना असर होता है?
जवाब: बहुत गहरा असर होता है। आत्म-समान, आत्मविश्वास, सामाजिक व्यवहार और भावनात्मक स्थिरता सब पैरेंटिंग से बनते हैं।

सवाल: क्या ओवर-प्रोटेक्टिव पैरेंटिंग नुकसान पहुंचाती है?
जवाब: हां, इससे बच्चों में निर्णय लेने की क्षमता, आत्मविश्वास और सामाजिक समझ कमजोर हो सकती है। कई बार ये अवसाद और चिंता तक ले जाती है।

सवाल: पैरेंट-बच्चों में भावनात्मक दूरी कैसे कम हो सकती है?
जवाब: सक्रिय संवाद, दोस्ताना व्यवहार, घर का सकारात्मक माहौल और बच्चों को सुना जाना जरूरी है।

एकल पैरेंट्स को समान और सहयोग मिले

सवाल: एकल अभिभावक होने की सबसे बड़ी चुनौती?
जवाब: अकेले रहकर घर, स्कूल, ऑफिस और आर्थिक जरूरतों को संभालना बड़ा संघर्ष है।

सवाल: समाज से क्या अपेक्षा है?
जवाब: एकल पैरेंट्स को समान और सहयोग मिले। आर्थिक रूप से कमजोर एकल पैरेंट्स के लिए शिक्षा सहायता समितियां बनें।

सवाल: बच्चों को सबसे पहले क्या सिखाती हैं?
जवाब: नैतिक मूल्य, आत्मनिर्भरता और सामाजिक जिमेदारियां।

अच्छा पैरेंट वही जो दोस्त और मार्गदर्शक भी

सवाल: आप अपने माता-पिता से पेरेंटिंग में क्या सीखते हैं?
जवाब: बच्चों को केवल बड़ा करना नहीं, उन्हें समझना, सुनना और हर परिस्थिति में साथ देना सबसे जरूरी है। मैंने अपने माता-पिता से धैर्य, अनुशासन और निस्वार्थ प्रेम सीखा। उन्होंने बिना अपने सपनों की परवाह किए हमें आगे बढ़ाया।

सवाल: बच्चे पालना और कॅरियर में संतुलन कैसे बनाते हैं?
जवाब: एक पिता और प्रोफेशनल के रूप में मैं संतुलन इस तरह बनाता हूँ कि बच्चों को क्वालिटी टाइम दे सकूं। छुट्टियों में उन्हें पढ़ाता हूं, उनके साथ खेलता हूं। स्पोर्ट्समैन स्पिरिट और जीवन के मूल्यों को रोजमर्रा की बातों में शामिल करता हूं।

सवाल: आपके लिए आदर्श पेरेंटिंग क्या है?
जवाब: मेरे लिए अच्छा पैरेंट वो है जो मित्र भी हो और मार्गदर्शक भी। प्रेम, संवाद और अनुशासन के संतुलन से ही बच्चा आत्मनिर्भर बनता है।

पेरेंटिंग में स्वीकार्यता जरूरी

सवाल: स्कूल में बच्चों का व्यवहार घर से कितना प्रभावित होता है?
जवाब: सौ प्रतिशत। माता-पिता का रिश्ता बच्चे की सोच और मूड पर सीधा असर डालता है।

सवाल: पढ़ाई और परफॉर्मेंस को लेकर पैरेंट्स का रवैया कैसा हो?
जवाब: जीत-हार और नंबर की जगह, बच्चे की क्षमताओं को अपनाना जरूरी है।

सवाल: पैरेंट-टीचर मीटिंग में सबसे आम समस्या क्या?
जवाब: पेरेंट्स की ओवर एक्सपेक्टेशन। फीस भरने के नाम पर सुपर किड की अपेक्षा रखते हैं। बच्चा इस लड़ाई में दब जाता है।

बच्चों को संघर्ष से जोड़िए

सवाल: आज की पीढ़ी और पुराने समय के बच्चों में क्या फर्क है?
जवाब: आज के बच्चों में धैर्य की कमी, जिद और तनाव प्रबंधन की कमजोरी साफ दिखती है।

सवाल: क्या आज के बच्चे माता-पिता की कद्र कम करते हैं?
जवाब: हां। अब माता-पिता बच्चों से डरते हैं। वे उन्हें गमलों का पौधा बना रहे हैं बिना संघर्ष के।

सवाल: आप समय, समान और सहारा में सबसे ज्यादा क्या महत्व देती हैं?
जवाब: समय। यही सबसे बड़ा उपहार और आधार है।

पैरेंट्स डे मनाने का उद्देश्य क्या है?

  • माता-पिता के योगदान और त्याग के प्रति समान प्रकट करना।
  • बच्चों में कृतज्ञता और पारिवारिक मूल्यों की भावना विकसित करना।
  • माता-पिता और बच्चों के बीच संवाद व जुड़ाव बढ़ाना।
  • नैतिक शिक्षा और मूल्य आधारित संस्कारों को प्रोत्साहित करना।

कैसे मनाएं पैरेंट्स डे?

  • उन्हें दिनभर अपने साथ रखें, उनकी पसंद की चीजें करें।
  • पुरानी यादों को ताजा करने के लिए एल्बम देखें या साथ कोई फिल्म देखें।
  • उनके लिए हाथ से लिखा एक पत्र या नोट दें।
  • अगर साथ नहीं हैं, तो फोन या वीडियो कॉल से भावनाएं साझा करें।
  • समाज में किसी जरूरतमंद वृद्ध दंपत्ति की मदद कर भी इस दिन को सार्थक बनाया जा सकता है।

बदलते समय में पैरेंटिंग की चुनौतियां

आज की तेज रफ्तार और तकनीकी दुनिया में पैरेंटिंग भी आसान नहीं रही। माता-पिता अब सिर्फ परवरिश नहीं कर रहे, बल्कि दोस्त, मार्गदर्शक और काउंसलर की भूमिका भी निभा रहे हैं। बच्चों की मानसिक, शैक्षणिक और सामाजिक परिपक्वता के लिए वे खुद को निरंतर अपडेट कर रहे हैं। यह दौर साझा जिम्मेदारी और संवाद का है।