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रुकी पैसे बर्बादी! समिति ने कहा- नेहरू मेडिकल कॉलेज के एनाटॉमी विभाग में 35 से 40 डेडबॉडी उपलब्ध…

CG Medical College: रायपुर में जवाहरलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज के एनाटॉमी विभाग के लिए दो करोड़ रुपए की वर्चुअल बॉडी खरीदना कैंसिल हो गया है।

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रुकी पैसे बर्बादी! समिति ने कहा- नेहरू मेडिकल कॉलेज के एनाटॉमी विभाग में 35 से 40 डेडबॉडी उपलब्ध...(photo-patrika)

रुकी पैसे बर्बादी! समिति ने कहा- नेहरू मेडिकल कॉलेज के एनाटॉमी विभाग में 35 से 40 डेडबॉडी उपलब्ध...(photo-patrika)

CG Medical College: छत्तीसगढ़ के रायपुर में जवाहरलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज के एनाटॉमी विभाग के लिए दो करोड़ रुपए की वर्चुअल बॉडी खरीदना कैंसिल हो गया है। कॉलेज की समिति ने कहा है कि एनाटॉमी विभाग में 35 से 40 डेडबॉडी उपलब्ध है। ऐसे में वर्चुअल बॉडी की कोई जरूरत नहीं है। कमिश्नर मेडिकल एजुकेशन कार्यालय को समिति की मंशा भेज दी गई है।

CG Medical College: दो करोड़ की वर्चुअल बॉडी अब नहीं खरीदेंगे

विशेषज्ञों के अनुसार वर्चुअल बॉडी वहां के लिए उपयोगी है, जहां डेडबॉडी की कमी होती है। यह पैसे की बर्बादी के अलावा कुछ नहीं है। पत्रिका ने 31 अगस्त के अंक में एनाटॉमी का प्रस्ताव नहीं, फिर भी थोप रहे वर्चुअल बॉडी शीर्षक से समाचार प्रकाशित किया था। इसके बाद कॉलेज की समिति ने वर्चुअल बॉडी को गैरजरूरी बताते हुए खरीदने के लिए सहमति देने से ही इनकार कर दिया था। 29 अगस्त को एक एजेंसी ने कॉलेज में वर्चुअल बॉडी का डेमो दिया था। यही नहीं चिकित्सा शिक्षा विभाग उच्चाधिकारियों ने एनाटॉमी विभाग पर बॉडी खरीदने के लिए सहमति देने का दबाव भी बनाया था।

उच्चाधिकारियों की बात मानते हुए विभाग ने बॉडी खरीदने पर सहमति दे दी थी, लेकिन पत्रिका में समाचार प्रकाशित होने के बाद कॉलेज में ही इस बात की चर्चा होने लगी कि आखिर 2 करोड़ बर्बाद करने का कोई मतलब नहीं है। ये छात्रों के लिए कोई उपयोगी नहीं है। इसी तर्क के आधार पर समिति ने वर्चुअल बॉडी को गैरजरूरी बता दिया। डेड बॉडी एमबीबीएस फर्स्ट ईयर के छात्रों के डिटेक्शन का काम आता है। छात्र मनुष्य के जरूरी अंगों से रूबरू होते हैं। जबकि वर्चुअल बॉडी एक आभासी दुनिया की तरह है।

एनएमसी नार्म्स के अनुसार डेडबॉडी अनिवार्य

एनएमसी के नार्म्स के अनुसार छात्रों के डिटेक्शन के लिए कैडेवर यानी डेडबॉडी अनिवार्य है। इसमें छात्र ऑर्गन के बारे में बारीकी से सीखते हैं, जबकि वर्चुअल बॉडी में थ्रीडी इमेज आती है। जानकारों ने वर्चुअल बॉडी को खरीदने के पीछे कमीशनखोरी की बात कह रहे हैं। जितनी कीमत में ये बॉडी खरीदी जाती, वास्तव में इसका मूल्य उतना नहीं है।

वर्चुअल बॉडी को राजधानी स्थित एक निजी मेडिकल कॉलेज ने यह कहते हुए खरीदने से इनकार कर दिया कि ये छात्र के किसी काम की नहीं है। इसके बाद भी चिकित्सा शिक्षा विभाग के अधिकारी कॉलेज पर दबाव बनाकर जबर्दस्ती अनुमोदन दिलाया था। सरकारी मेडिकल कॉलेजों में डेड बॉडी की खरीदी पर कई सवाल उठ रहे थे।