
पं. जवाहरलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज (फोटो सोर्स- विकिपीडिया)
CG News: पं. जवाहरलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज के एनाटॉमी विभाग के लिए शासन वर्चुअल बॉडी खरीद रहा है। जबकि विभाग ने कभी इसकी डिमांड ही नहीं की। बताया जाता है कि चिकित्सा शिक्षा विभाग ने जबर्दस्ती विभाग ने अनुमोदन मांगा गया, जिसे दे दिया गया। एनाटॉमी विभाग में 35 से 40 डेड बॉडी है। यह डेड बॉडी एमबीबीएस फर्स्ट ईयर के छात्रों के डिटेक्शन का काम आती है। एक वर्चुअल बॉडी की कीमत करीब 2 करोड़ रुपए बताई जा रही है।
इस बारे में जानकारों का कहना है कि यह पैसे की बर्बादी है। शुक्रवार को कॉलेज में वर्चुअल बॉडी का डेमोस्ट्रेशन भी किया गया। यहां से अनुमोदन मिलने के बाद शासन सभी 10 सरकारी मेडिकल कॉलेजों के लिए यह बॉडी खरीदने की तैयारी कर रहा है। एनएमसी के नॉर्म्स के अनुसार छात्रों के डिटेक्शन के लिए कैडेवर यानी डेडबॉडी जरूरी है। ऐसे में वर्चुअल बॉडी क्यों खरीदी जा रही है, बड़ा सवाल है। सरकारी कॉलेजों में डेड बॉडी की कोई कमी नहीं है। वर्चुअल बॉडी की वहां जरूरत है, जहां डेड बॉडी न हो।
पुणे की एक कंपनी ने एक निजी मेडिकल कॉलेज में वर्चुअल बॉडी का डेमोस्ट्रेशन दिया था। कॉलेज प्रबंधन ने इसे लेने से यह कहते हुए इनकार कर दिया कि यह छात्रों के लिए ज्यादा कारगर नहीं है। यह भी कहा कि नेशनल मेडिकल कमीशन के नॉर्म्स में वर्चुअल बॉडी से डिटेक्शन कराने का कोई जिक्र नहीं है। निजी कॉलेज ने कीमत भी ज्यादा बताई है। कंपनी के ही एक प्रतिनिधि ने कॉलेज को ये बताया कि नेहरू मेडिकल कॉलेज में उनका प्रस्ताव मंजूर कर लिया गया है। यही कारण है कि शुक्रवार को एनाटॉमी के सभागार में इसका प्रेजेंटेशन हुआ।
वर्चुअल बॉडी खरीदना पैसे की बर्बादी के अलावा कुछ नहीं है। नेहरू मेडिकल कॉलेज में 40 डेडबॉडी हैं। इसलिए यहां इसकी जरूरत नहीं है। यह बॉडी वहां के लिए कारगर है, जहां डेड बॉडी न हो।
आंबेडकर अस्पताल में सीटी स्कैन की सीटी इंजेक्टर मशीन डेढ़ साल से खराब है। इससे एंजियोग्राफी नहीं हो पा रही है। इसमें 15 लाख खर्च होना है। शासन ने यह कहते हुए मेटेनेंस के लिए फंड देने से इनकार कर दिया कि इतनी राशि नहीं है। अब बड़ा सवाल है कि जब जरूरी मशीन के लिए 15 लाख नहीं है तो वर्चुअल बॉडी के लिए दो करोड़ रुपए कहां से आएंगे। मरीज निजी डायग्नोस्टिक सेंटरों में 8500 रुपए में हार्ट की जांच करवाने मजबूर हैं।
वर्चुअल बॉडी का मतलब है ऐसा कृत्रिम शरीर, जो भौतिक रूप से उपलब्ध नहीं होता। यानी वर्चुअल रियलिटी (वीआर) या कंप्यूटर जनरेटेड इमेजिंग जैसी तकनीकों के माध्यम से बनती है। यह एक ऐसा अनुभव प्रदान करता है जैसे उपयोगकर्ता किसी काल्पनिक दुनिया या वातावरण में मौजूद हो। जिसमें उनके शरीर के आकार, रूप व बनावट को बदला जा सकता है। इसमें थ्रीडी इमेज आती है।
-डॉ. सीके शुक्ला,
सीनियर फैकल्टी, एनाटॉमी व रिटायर्ड डीन नेहरू मेडिकल कॉलेज: वर्चुअल बॉडी खरीदना पैसे की बर्बादी के अलावा कुछ नहीं है। नेहरू मेडिकल कॉलेज में 40 डेडबॉडी हैं। इसलिए यहां इसकी जरूरत नहीं है। यह बॉडी वहां के लिए कारगर है, जहां डेड बॉडी न हो।
वर्चुअल बॉडी की खरीदी हो रही है तो नेहरू मेडिकल कॉलेज के डीन से बात कीजिए। वे ही बेहतर बता पाएंगे। वैसे इस बॉडी को सभी कॉलेजों के लिए खरीदने की कोई योजना नहीं है। - शिखा राजपूत तिवारी, कमिश्नर, मेडिकल एजुकेशन
Published on:
31 Aug 2025 11:30 am
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