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World Population Day: विश्व जनसंख्या दिवस पर खुली हकीकत, युवा डिजिटल… लेकिन मूलभूत सेवाओं की हालत खराब

World Population Day: छत्तीसगढ़ में विद्यार्थियों की संख्या के हिसाब से शिक्षकों की कमी है। शिक्षा का अधिकार कानून के तहत प्राइमरी स्कूल में 30 बच्चों के पीछे 1 शिक्षक होना चाहिए।

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छत्तीसगढ़ में स्वास्थ्य और शिक्षा संकट (Photo source- Patrika)

छत्तीसगढ़ में स्वास्थ्य और शिक्षा संकट (Photo source- Patrika)

World Population Day: प्रदेश की आबादी करीब 3 करोड़ से पहुुंच चुकी है। लेकिन जरूरतों के हिसाब से हम संसाधन में पिछड़ रहे हैं। लेकिन वहीं डब्ल्यूएचओ के अनुसार प्रदेश में नागरिकों के इलाज के लिए करीब 33 हजार डॉक्टरों की जरूरत है। दूरदराज के क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुविधाओं की भारी कमी है। सुपर स्पेशलिटी सेवा सिर्फ राजधानी तक सीमित है। बात शिक्षा की करें तो यहां भी हालात अच्छे नहीं हैं।

प्राइमरी स्कूल में 30 बच्चों के पीछे 1 शिक्षक होना चाहिए। लेकिन राज्य की 30,700 प्राथमिक शालाओं में औसतन 21.84 विद्यार्थियों के पीछे एक शिक्षक है। प्रदेश के 13,149 पूर्व माध्यमिक शालाओं में 26.2 विद्यार्थियों के पीछे एक शिक्षक है। लेकिन डिजिटल क्षेत्र की बात करें तो शहरी इलाकों में हालात बेहतर हैं। छत्तीसगढ़ 94 प्रतिशत युवा मोबाइल से लैस हो चुके हैं। ग्रामीण इलाकों में नेटवर्क की समस्या के चलते हालात अच्छे नहीं हैं।

World Population Day: जिला अस्पतालों व सीएचसी में विशेषज्ञ डॉक्टरों की कमी

छत्तीसगढ़ की आबादी करीब 3.08 करोड़ पहुंच चुकी है। इनमें केवल 2 हजार के आसपास डॉक्टर सेवाएं दे रहे हैं। डब्ल्यूएचओ के अनुसार 1000 आबादी पर एक डॉक्टर होना चाहिए, इस हिसाब से 33 हजार डॉक्टरों की जरूरत है। वर्तमान में 31 हजार डॉक्टरों की कमी है। प्रदेश में 15434 आबादी पर एक डॉक्टर है, जो कि विश्व स्वास्थ्य संगठन के मापदंड के अनुसार काफी कम है। 10 सरकारी मेडिकल कॉलेजों में ही डॉक्टरों के 48.5 फीसदी पद खाली है।

स्वास्थ्य विभाग के अस्पतालों का तो और बुरा हाल है। उनके जिला अस्पतालों व सीएचसी में विशेषज्ञ डॉक्टर ही नहीं हैं। अभी प्रदेश में 10 सरकारी व 5 निजी मेडिकल कालेज हैं। इसमें एमबीबीएस की 2130 सीटें हैं। हालांकि हर साल 1600 से ज्यादा डॉक्टर निकल रहे हैं। तीन सरकारी व दो निजी कॉलेजों में अभी एक भी बैच नहीं निकला है। चार साल बाद जितनी सीटें हैं, उतने ही डॉक्टर निकलेंगे। दरअसल एमबीबीएस साढ़े 4 साल का कोर्स है। एक साल की इंटर्नशिप है।

इसके अनुसार एक छात्र को साढ़े 5 साल बाद एमबीबीएस की डिग्री मिल जाती है। वहीं राजधानी में बोन मेरो ट्रांसप्लांट (बीएमटी) व रोबोटिक सर्जरी जैसी सुविधा केवल निजी अस्पतालों तक सीमित है। एम्स व नेहरू मेडिकल कॉलेज या इससे संबद्ध डीकेएस सुपर स्पेशलिटी अस्पताल में दोनों ही एडवांस सुविधाओं के लिए लंबा इंतजार करना पड़ सकता है।

डब्ल्यूएचओ के अनुसार डॉक्टरों की कमी तो है, लेकिन 10 साल पहले की तुलना में प्रदेश में स्वास्थ्य सुविधाओं में काफी विस्तार हुआ है। हालांकि दूरदराज क्षेत्रों में डॉक्टरों की भारी कमी बनी हुई है। शहरी व ग्रामीण क्षेत्रों की विसंगति को दूर करने की जरूरत है। सुपर स्पेशलिटी इलाज के लिए मरीजों को राजधानी की दौड़ लगानी पड़ रही है। ये सुविधा केवल रायपुर, बिलासपुर, दुर्ग-भिलाई तक सिमट कर रह गई है।

छत्तीसगढ़ में विद्यार्थियों की संख्या के हिसाब से शिक्षकों की कमी है। शिक्षा का अधिकार कानून के तहत प्राइमरी स्कूल में 30 बच्चों के पीछे 1 शिक्षक होना चाहिए। राज्य की 30 हजार 700 प्राथमिक शालाओं में औसतन 21.84 विद्यार्थियों के पीछे एक शिक्षक है। प्रदेश के 13 हजार 149 पूर्व माध्यमिक शालाओं में 26.2 विद्यार्थियों के पीछे एक शिक्षक है। शहरी क्षेत्र में 527 स्कूलों में छात्र-शिक्षक अनुपात 10 या उससे कम है। 1,106 स्कूलों में यह अनुपात 11 से 20 के बीच है।

हर साल 1 करोड़ से ज्यादा लोगाें का इलाज

हर साल अस्पतालों के ओपीडी में एक करोड़ के आसपास मरीज इलाज करवाते हैं। 20113-14 में लगभग 41 लाख 26 हजार 334 मरीज नए थे तो लगभग 12 लाख पुराने मरीज थे। इस तरह कुल 53 लाख मरीज 2013-14 में इलाज कराने अस्पताल पहुंचे। 2014-15 में मरीजों की संख्या 57 लाख तक पहुंच गई, जबकि इसके अगले साल मरीजों की संख्या 57 लाख 52 हजार हो गई। इस तरह से मरीजों की संख्या हर साल लगातार बढ़ रही है, लेकिन इस अनुपात में न तो डाक्टरों की नियुक्ति हो पा रही है और न ही लोगों को उचित इलाज मिल पा रहा है।

डिजिटल इंडिया: प्रदेश में 94 प्रतिशत युवा मोबाइल से लैस

World Population Day: भारत सरकार के राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) द्वारा आयोजित व्यापक मॉड्यूलर सर्वेक्षण दूरसंचार (सीएमएसटी) के परिणाम सामने आ गए हैं। जनवरी से मार्च 2025 के बीच हुए इस सर्वे में 15 से 29 वर्ष आयु वर्ग के युवाओं की डिजिटल पहुंच, व्यवहार और इंटरनेट उपयोग की प्रवृत्तियों का विस्तृत विश्लेषण किया गया।

रिपोर्ट के अनुसार, भारत का युवा वर्ग न केवल डिजिटल रूप से सशक्त हो रहा है, बल्कि ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के बीच की खाई भी तेजी से सिमटती नजर आ रही है। सांख्यिकी कार्यालय रायपुर के अधिकारी राजेश श्रीवास्तव कहते हैं, यह सर्वे स्पष्ट संकेत देता है कि देश का युवा वर्ग वैश्विक डिजिटल क्रांति का सक्रिय भागीदार बन चुका है। ग्रामीण क्षेत्रों में भी स्मार्टफोन और इंटरनेट की गहरी पैठ, भारत को डिजिटल समानता की दिशा में तेजी से आगे बढ़ा रही है।

राष्ट्रीय स्तर पर तस्वीर

मोबाइल फोन का उपयोग

ग्रामीण क्षेत्रों में 96.8%

शहरी क्षेत्रों में 97.6%

स्मार्टफोन: 95.5% ग्रामीण और 97.6% शहरी युवाओं के पास।

इंटरनेट: 92.7% ग्रामीण और 95.7% शहर में।

छत्तीसगढ़ की तस्वीर

94% से अधिक युवा मोबाइल फोन का इस्तेमाल करते हैं।

3.2% ग्रामीण परिवारों के पास ही इंटरनेट की पहुंच है।