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कभी पचास रुपये किलो बिकता था, आज पांच रुपये में भी कोई नहीं पूछ रहा

लाॅकडाउन में अन्नदाता हुआ बर्बाद हजारों क्विंटल पैदावार किसानों ने खेतों में छोड़े तोड़वाने या परिवहन लागत भी नहीं निकल पा रहा

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कभी पचास रुपये किलो बिकता था, आज पांच रुपये में भी कोई नहीं पूछ रहा

कभी पचास रुपये किलो बिकता था, आज पांच रुपये में भी कोई नहीं पूछ रहा

रायसेन। लाॅकडाउन ने हर वर्ग की चिंताओं को बढ़ा दिया है। सबसे अधिक परेशान किसान है। खेतों में उगाए गए फसल, सब्जियों के दाम नहीं मिल रहे। आलम यह कि कई जगह उसे अपनी उपज खेतों में ही छोड़नी पड़ रही है। जिले के बाड़ी क्षेत्र में किसानों ने हजारों क्विंटल टमाटर खेतों में ही नष्ट कर दिया। वजह यह कि मंडी में पहुंचने पर परिवहन लागत तक इससे निकलना मुश्किल था।

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रायसेन जिले में टमाटर की खेती खूब होती है। इस बार टमाटर का रिकार्ड तोड़ पैदावार रहा। लेकिन लाॅकडाउन के चलते टमाटर बाहर की मंडियों में नहीं पहुंच पा रही है। बाहर नहीं जा पाने की वजह से टमाटर की मांग घट गई है जिसका सीधा असर इसकी कीमतों पर पड़ा है। अधिक पैदावार और मांग कम होने से यह कौड़ियों के दाम बिक रहा।
जानकार बताते हैं कि टमाटर बाहरी बाजार में सत्तर अस्सी रुपये किलो भी बिकता है। अभी कुछ दिन पहले तक पचास रुपये प्रति किलो से अधिक कीमत पर बिका। लेकिन लाॅकडाउन शुरू होते ही किसानों की दुश्वारियां प्रारंभ हो गई।

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किसान नीरज ठाकुर ने तीन एकड़ में टमाटर उगाया था। पैदावार भी बंपर हुआ। लेकिन जब टमाटर पके तो लाॅकडाउन शुरू हो गया। नीरज ठाकुर बताते हैं कि लाॅकडाउन की वजह से वह टमाटर बाहर की मंडी में नहीं भेजवा सकते, ऐसे में उसे तोड़वाना भी महंगा साबित होगा। इसलिए उन्होंने खेतों में ही उसे सूखने को छोड़ दिया।
किसान बताते हैं कि वे लोग खेतों में ही टमाटर को सूखने के लिए छोड़ दिए हैं। पशुओं के चारा के लिए उपयोग कर रहे हैं।
किसान बताते हैं कि पचास से अस्सी रुपये किलो आमतौर पर बिकने वाला टमाटर अब फुटकर में दस से बीस रुपये किलो बिक रहा। जबकि थोक व्यापरी एक से डेढ़ रुपये किलो खरीद रहे हैं। किसानों की मानें तो 20 से तीस रुपये प्रति केरेट वह टमाटर थोक व्यापारियों को दे रहे हैं। एक केरेट में बीस किलोग्राम टमाटर होता है।

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