
माँ दुर्गा की प्रतिमा (Photo Patrika)
Navratri 2025: राजनांदगांव जिले के छोटे से गांव कुमर्दा की पहचान अब सिर्फ उसके नाम से नहीं, बल्कि उसकी कला से बन रही है। यहां के मूर्तिकारों द्वारा तैयार की गई दुर्गा माता की प्रतिमाएं इस बार सिर्फ राज्य के भीतर ही नहीं, बल्कि देश के अन्य हिस्सों में भी अपनी छाप छोड़ रही हैं। कुमर्दा की मूर्तियों की बढ़ती मांग इस बात का प्रमाण है कि स्थानीय प्रतिभा अब राष्ट्रीय स्तर पर सराही जा रही है।
इन जगहों से मूर्तियों का ऑर्डर आया - गांव में तैयार होने वाली गणेश, दुर्गा व अन्य देवी-देवताओं की प्रतिमाएं रायपुर, दुर्ग, भिलाई, राजनांदगांव जैसे शहरों में तो जाती ही हैं, लेकिन अब मध्यप्रदेश के छिंदवाड़ा, बालाघाट और गुना जैसे जिलों में भी इनकी लोकप्रियता तेजी से बढ़ रही है। आसपास के गांवों में भी यहीं मूर्तियां जाती हैं।
गुना जिले में दो सालों से श्रद्धालु कुमर्दा की मूर्तियां मंगवाने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन ऑर्डर देर से देने के कारण संभव नहीं हो पा रहा था। इस बार समय पर संपर्क होने से विशेष रूप से तैयार की गई मूर्ति वहां भेजी जा रही है, जिससे वहां के भक्तों में खासा उत्साह है। मूर्तिकारों ने बताया कि अब दूसरे राज्यों से मांग आने की वजह से गांव का नाम चर्चित हो गया है। लोग अब संपर्क करने लगे हैं।
मूर्तिकार देव साहू ने बताया कि ज्यादातर ऑर्डर 1-2 महीने पहले ही बुक हो जाते हैं। सीमित संसाधनों व वक्त की कमी के कारण सिर्फ तयशुदा संख्या में ही मूर्तियां बनती हैं। उन्होंने यह भी कहा कि हर मूर्ति में भाव, शुद्धता और सौंदर्य का विशेष ध्यान रखा जाता है।
स्थानीय मूर्तिकारों की मेहनत व समर्पण ने कुमर्दा को आज छत्तीसगढ़ में मूर्तिकला का एक उभरता हुआ केन्द्र बना दिया है। दुर्गा महोत्सव के इस पावन अवसर पर कुमर्दा की मूर्तियों ने एक बार फिर अपनी गुणवत्ता और लोकप्रियता का डंका बजाया है। कुमर्दा की मिट्टी में कला, आस्था और संस्कृति की खुशबू है। यहां के मूर्तिकारों की साधना अब देशभर में पूजी जा रही है।
Updated on:
20 Sept 2025 01:32 pm
Published on:
20 Sept 2025 01:31 pm
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