
आधुनिक वाद्य यंत्रो की चकाचौंध में अस्तित्व खोते परम्परागत वाद्य यंत्र
-मरम्मत और निर्माण करने वालों का रोजगार भी हो रहा प्रभावित
आईडाणा. संगीत का कोई सुर गाएं और वाद्य यंत्र का स्वर नहीं आए तो संगीत का पूरा आनन्द नही आता। इसमें भी परम्परागत वाद्य यंत्र के स्वर का तो कहना ही क्या। लेकिन, वर्तमान में आधुनिक वाद्य यंत्रों की चकाचौंध में परम्परागत वाद्य यंत्र अपना अस्तित्व खोते जा रहे हैं। आज के समय में परम्परागत वाद्य यंत्र काफी कम ही दिखाई देते हैंं। छोटे-मोटे किसी कार्यक्रम में परंपरागत की बजाए आधुनिक वाद्य यंत्रों को ही पसंद किया जने लगा है। यही कारण है कि आज के समय में वांकिया, हारमोनियम, ढोलक जैसे वाद्य यंत्र नहीं के बराबर ही दिखाई देते हैं। इसके चलते इनका वादन करने वालों के समक्ष भी रोजी-रोटी का संकट आ खड़ा है। ऐसे में इन वाद्य यंत्रों का वादन करने वाल अधिकांश कलाकारों ने या तो दूसरा रोजगार चुन लिया है या इनकी जगह आधुनिक वाद्य यंत्रों को अपना लिया है। यही स्थिति इन परंपरागत वाद्य यंत्रों की मरम्मत करने वाले लोगों की हो गई। इसके चलते इनकी मरम्मत करवाना भी काफी मुश्किल हो गया क्योंकि अब मरम्मत कर्ता भी काफी मुश्किल से ही मिल पाते हैं। जबकि, पूर्व में परम्परागत वाद्य यंत्रों का उपयोग अधिक होने से से इनके निर्माण एवं मरम्मत का काम करने वाले परिवारों की रोजी-रोटी चलती थी। लेकिन, आज परम्परागत वाद्य यंत्र बनाने एवं मरम्मत करने का यह व्यवसाय काफी कम हो गया है। एक ओर जहां परम्परागत वाद्य यंत्रो की आवाज सुरीली एवं कर्ण प्रिय होती थी। वही आधुनिक वाद्ययंत्रो की आवाज करकस एवं कानफोडु है।
परम्परागत वाद्य यंत्र
वांकिया, वीणा, तन्दुरा, हारमोनियम, नगाड़ा, ढोल, ढोलक, खजरी आदि।
आधुनिक वाद्य यंत्र
की पैड, वायलीन, गिटार, ऑर्गन, आरती मशीन, ड्रमसेट फाइबर, सेड ड्रम, पीटी ड्रम, ऑक्टोपेड आदि।
कम मिलता है काम
परम्परागत वाद्य यंत्रों का जो स्वर है, वो आधुनिक वाद्य यंत्रों में नहीं है। परम्परागत वाद्य यंत्र कम लागत के होने के साथ ही उनकी मरम्मत भी हो जाती है। लेकिन, अब चलन कम होने से काम कम ही मिल पाता है।
दिनेश देवड़ा, परम्परागत वाद्ययंत्र मरम्मतकर्ता, आमेट
Published on:
28 May 2018 07:37 am
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