प्रवासी पक्षियों की शरण स्थली जिला मुख्यालय से 50 किलोमीटर दूर कुंभलगढ़ के केलवाड़ा के समीप स्थित है। बताया जाता है कि यह तालाब लगभग 900 वर्ष पुराना है, तथा हमेरपाल सिंह द्वारा निर्मित करवाया गया था। इससे केलवाड़ा क्षेत्र के आधा दर्जन गांवों व भागलों का प्रमुख जलस्रोत है।
लगभग हर साल बारिश से तालाब जलमग्न हो जाता है, जिससे यहां मछलियों, मगरमच्छों जलीय पक्षी तथा आसपास के मवेशियों व वन्यजीवों को आसानी से पेयजल उपलब्ध होता रहा है। तालाब में मछलियों की अच्छी संख्या होने से यहां प्रवासी पक्षियों की भी चहल-पहल रहती है।
पर्यटकों का रहता है जमावड़ा तालाब में बड़ी संख्या में अफ्रीकन प्रजाति की मछलियां हैं। जिससे मछलियों को देखने, उन्हें दाना खिलाने के लिए पर्यटकों का यहां सालभर जमावड़ा रहता है। लेकिन इस बार मार्च के महीनें में ही तालाब का पेंदा निकलने से मछलियां मर रही हैं तथा पर्यटकों को भी निराशा हो रही है। इसलिए सूखे तालाब हमेरपाल और लाखेला तालाब से इसबार जमकर पानी का अवैध दोहन हुआ है।
बताया जाता है कि हरवर्ष इस मौसम में यह तालाब आधे ही खाली होते थे, लेकिन इस बार पूरा सूखने की कगार पर है। स्थानीय लोगों का कहना है कि कुछ लोगों ने अस्थाई मोटरें लगाकर पानी का जमकर दोहन किया था, इससे यह तालाब सूखे हैं। लाखेला से मगरमच्छ तक गायब हो गया। कुंभलगढ़ दुर्ग की तलहटी पर करीब 600 वर्ष पूर्व महाराणा लाखा द्वारा लाखेला तालाब का निर्माण करवाया गया। केलवाड़ा के ग्रामीणों के लिए यह मुख्य पेयजल का स्रोत है पांच किमी तक की परिधि के किसानों के लिए भी खेती का मुख्य साधन है। आम दिनों में यह अप्रेल माह तक आधा ही खाली होता था, लेकिन इस बार मार्च माह में ही इसका पेंदातक सूखने लगा। इस तालाब में सात-आठ माह पूर्व एक मगरमच्छ का बच्चा दिखा था, जिससे अनुमान था कि यहां और मगरमच्छ होंगे, लेकिन अब पानी लगभग सूख चुका है। इससे मगरमच्छ नजर नहीं आ रहे। ग्रामीणों का कहना है कि या तो वे पानी की कमी से मर गए या फिर पलायन कर गए।
इनका कहना है… सात-आठ माह पहले मैंने एक मगरमच्छ का बच्चा देखा था, तब तालाब भरा था, उसके बाद से नजर नहीं आया। हरबार इस माह में तालाब में आधा पानी रहता है लेकिन इस बार पेंदा भी सूख रहा है। अब खाली कैसे हुए यह तो मुझे नहीं मालूम। –पुष्कर, नाव संचालक, लाखेला तालाब,
लाखेला तालाब पर मगरमच्छ थे, इस बात की जानकारी मुझे नहीं है। मैं पता करवाता हूं। हालांकि मगरमच्छ कुछ दिन कीचड़ में भी बने रहते हैं, या हो सकता है पलायन कर गए हों। -फतहसिंह राठौड़, डीएफओ, राजसमंद