
मधुसूदन शर्मा
राजसमंद. राजस्थान के नाथद्वारा उपखंड के घोड़च ग्राम पंचायत के गांव कुंडा गांव में एक अनोखी कहानी लिखी जा रही है। ऐसी कहानी जो एक नायक की मेहनत पर निर्भर है। इसमें भी रोचक बात ये है कि फील्ड दूसरा होने के बाद उन्होंने इस काम में महारत हासिल कर खुद को साबित कर दिया। ऐसी ही प्रतिभा के धनी है किसान नारायण सिंह। जिन्होंने मेवाड़ की धरा पर स्ट्रॉबेरी की खेती कर न केवल अपनी किस्मत बदली बल्कि क्षेत्र के किसानों के लिए कृषि में एक नई लाइन हमेशा के लिए खींच दी। उनके इस कार्य में सहयोग के रूप में उदयपुर आरएनटी मेडिकल कॉलेज के प्रोफेसर मेडिसिन डा.महेश दवे साथ आए। जिन्होंने किसान को लीज पर अपनी जमीन देकर इसमें रूचि दिखाई। स्ट्रॉबेरी के बंपर उत्पादन ने उनकी मेहनत को साबित कर दिया है। किसान नारायण सिंह ने बताया कि उदयपुर जिले के मावली तहसील के रहने वाले हैं। लेकिन वहां पर स्ट्रॉबेरी के लिए उपयुक्त क्लाइमेट नहीं है। आसलियों की मादड़ी गांव के निवासी ये किसान अब दूसरों के लिए प्रेरणा स्रोत बन चुका है। इस परियोजना में 8 लाख खर्च हुए हैं, और अनुमान है कि पूरी फसल से 16 लाख की आमदनी होगी, यानी एक ही फसल से करीब 8 लाख का शुद्ध लाभ किसान को होगा।
बैंकिंग क्षेत्र में काम करने वाले नारायण सिंह का मन खेती में था। उन्होंने स्ट्रॉबेरी की खेती के लिए गहन शोध शुरू किया और पाया कि इस पौधे को उगाने के लिए आदर्श तापमान 15-20 डिग्री सेल्सियस के बीच होना चाहिए। हिमाचल प्रदेश, महाबलेश्वर और अन्य जगहों की यात्रा के बाद उन्हें एहसास हुआ कि यह चुनौतीपूर्ण तो है, लेकिन मेहनत और सही तकनीक से इसे साकार किया जा सकता है। उनकी मुलाकात उदयपुर आरएनटी मेडिकल कॉलेज के प्रोफेसर मेडिसिन डा.महेश दवे से हुई। दोनों ने मिलकर तय किया कि वे कुंडा गांव में 65,000 वर्ग फीट में स्ट्रॉबेरी की खेती करेंगे। अक्टूबर में बुवाई के बाद केवल दो माह में दिसंबर में इस क्षेत्र में स्ट्रॉबेरी की बहार आ गई।
यह बात भी गौर करने लायक है कि स्ट्रॉबेरी की खेती कोई साधारण काम नहीं है। इसे 'मिनी गार्डन' की तरह देखभाल की जरूरत होती है और हर दिन सुबह-सुबह से लेकर रात के अंधेरे तक ध्यान रखना पड़ता है। नारायण सिंह और डॉ. महेश दवे बताते हैं कि स्ट्रॉबेरी की खेती में लगातार निगरानी और देखभाल की जरूरत होती है। पौधों के तापमान, नमी और पोषण पर खास ध्यान देना पड़ता है। इसके अलावा, खेती की गुणवत्ता बनाए रखने के लिए जैविक खाद, नीम की खली और छाया जाल का भी इस्तेमाल किया गया। मधुमक्खियों की मदद से पौधों का परागण भी कराया गया, जिससे उत्पाद की गुणवत्ता में इज़ाफा हुआ।
आदर्श तापमान और जलवायु: 15-20°C तापमान सबसे उपयुक्त है। ज्यादा गर्मी या ठंडे वातावरण में यह फसल ठीक से नहीं उगती।
मिट्टी: बलुई दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त रहती है, जिसमें अच्छी जल निकासी हो।
सिंचाई: ड्रिप सिंचाई प्रणाली का उपयोग करना सबसे बेहतर होता है, ताकि पौधों को पर्याप्त पानी मिले लेकिन जलभराव से बचा जा सके।
पौधों का चयन: उच्च गुणवत्ता वाले, रोगमुक्त और उपयुक्त किस्म के पौधों का चुनाव करें। "चैंडलर", "कैमारोसा" जैसी किस्में भारत में लोकप्रिय हैं।
छाया और तापमान नियंत्रण: गर्मी से बचाने के लिए छाया जाल या पॉलीहाउस का इस्तेमाल करें।पॉलीनेशन: मधुमक्खियों से पॉलीनेशन कराना फसल के लिए फायदेमंद होता है।
कृषि विभाग के संयुक्त निदेशक संतोष दूएरिया और उद्यान विभाग के उप निदेशक हरिओम सिंह राणा ने बताया कि राज्य सरकार से इन्हें मलचिंग शीट, लो टनल और ड्रिप सिस्टम पर सब्सिडी दी गई है। साथ ही समय समय पर तकनीकी मदद उपलब्ध कराई जाकर सहयोग किया जा रहा है। विभाग द्वारा यहां निरंतर दौरा एवं निगरानी भी की जा रही है।
Published on:
06 Jan 2025 10:38 am
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