
UP Politics: आजम खान की रिहाई सपा के लिए वरदान या अभिशाप? Image Source 'X' @AbdullahAzamMLA
Azam Khan Release UP Politics: उत्तर प्रदेश की राजनीति में बड़ा बदलाव आने के संकेत मिल रहे हैं। समाजवादी पार्टी (सपा) के वरिष्ठ नेता और रामपुर से 10 बार विधायक रह चुके आजम खान को आखिरकार राहत मिल गई है। इलाहाबाद हाईकोर्ट से उन्हें ज़मानत मिलने के बाद अब उनकी रिहाई तय मानी जा रही है।
रामपुर और मुरादाबाद समेत रोहिलखंड के मुस्लिम बहुल इलाकों में उनके समर्थकों में जबरदस्त उत्साह है। सवाल ये है कि क्या उनकी वापसी सपा को मजबूत करेगी या फिर विपक्षी खेमे में नई टूट-फूट का कारण बनेगी?
आजम खान का राजनीतिक सफर संघर्ष और विवादों से भरा रहा है। 1980 के दशक में रामपुर के नवाब परिवार को चुनौती देकर वे मज़दूरों और रिक्शा चालकों के नेता के रूप में उभरे। लेकिन 2019 के बाद उन पर दर्ज 100 से ज़्यादा मुकदमों, भूमि हड़पने से लेकर नफरत फैलाने तक ने उनकी सियासी छवि को धूमिल कर दिया। जेल जाने के बाद रामपुर सीट पर बीजेपी ने कब्ज़ा जमाया और 2024 लोकसभा चुनावों में भी उन्हें किनारे कर दिया गया।
इसके बावजूद मुस्लिम वोटबैंक पर उनका असर कायम है, जो उनकी सबसे बड़ी राजनीतिक ताकत मानी जाती है।
आजम खान का सपा से रिश्ता हमेशा उतार-चढ़ाव भरा रहा है। 2009 में मुलायम सिंह यादव से मतभेद के चलते उन्होंने पार्टी छोड़ी थी, लेकिन बाद में लौट आए। अखिलेश यादव के दौर में भी उनका राजनीतिक प्रभाव धीरे-धीरे कम होता गया। 2024 में रामपुर सीट पर टिकट बंटवारे से वे बेहद नाराज़ बताए जाते हैं। जेल से लिखे एक पत्र में उन्होंने INDIA गठबंधन पर भी सवाल उठाए थे।
अब उनकी रिहाई के बाद सबसे बड़ा सवाल यही है क्या वे सपा में रहकर अखिलेश को मजबूती देंगे या फिर खुली बगावत करेंगे?
राजनीतिक गलियारों में सबसे चर्चित अटकल है कि आजम खान भिम आर्मी प्रमुख और आज़ाद समाज पार्टी (ASP) के नेता चंद्रशेखर आज़ाद के साथ हाथ मिला सकते हैं। आजाद ने 2024 में नागिना से दलित-मुस्लिम फॉर्मूला अपनाकर जीत हासिल की थी और नवंबर में सीतापुर जेल में आजम से मुलाकात भी की थी।
इसके अलावा AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी भी लंबे समय से आजम खान के करीबियों में रहे हैं। अगर आजम AIMIM या ASP के साथ गठबंधन करते हैं, तो यूपी की राजनीति में बड़ा ध्रुवीकरण देखने को मिल सकता है।
आजम खान की रिहाई से यूपी की सियासत में नए समीकरण बनने तय माने जा रहे हैं। अगर वे सपा में रहते हैं तो मुस्लिम-यादव गठजोड़ मजबूत होगा। लेकिन अगर वे अलग राह चुनते हैं, तो दलित-मुस्लिम गठजोड़ सपा और कांग्रेस दोनों के लिए चुनौती बनेगा। इससे विपक्षी वोटों में बिखराव होगा, जिसका सीधा फायदा बीजेपी को मिल सकता है।
राजनीतिक जानकार मानते हैं कि आजम का अगला कदम उनके स्वास्थ्य और परिवार की राजनीतिक रणनीति पर निर्भर करेगा।
Updated on:
18 Sept 2025 04:39 pm
Published on:
18 Sept 2025 04:15 pm
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