पर्यटन को मिलेगा बढावा
वन विभाग के अधिकारियों का कहना है कि संताल परगना प्रमंडल के विभिन्न जिलों में जंगली हाथी दो रास्ते से प्रवेश करते हैं। पहला गोड्डा या पाकुड़ के रास्ते और दूसरा बिहार की सीमा से लालबथानी होकर विभिन्न आबादी वाले गांव में जंगली हाथी पहुंच जाते है। वन विभाग के अधिकारियों का मानना है कि हाथी कॉरिडोर बनाने से भविष्य में पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा। इसके लिए आवश्यक इंतजाम करना होगा। वन विभाग के अनुसार इससे पर्यटकों के आने से क्षेत्र में रोजगार के स्रोत भी बढ़ेंगे। दूसरी ओर हाथी में जान-माल का नुकसान कम होगा। हाथी कॉरिडोर के आसपास स्थित पहाडिय़ां गांव के लोगों को हाथी भगाने का प्रशिक्षण भी देने की योजना है।
पहले भी बनी योजना
हालांकि इससे पहले भी राज्य सरकार द्वारा हाथियों के आने-वाले रास्ते को चिन्हित कर कॉरिडोर बनाने की योजना बनाई गई, लेकिन अब तक इन परियोजनाओं को धरातल पर नहीं उतारा जा सका है। धनबाद जिले के तीन हजार हेक्टेयर में फैले टुंडी पहाड़ में हाथियों के लिए कॉरिडोर बनाने की योजना धनबाद वन प्रमंडल ने बनायी थी। पांच साल की योजना में नौ करोड़ 55 लाख रुपए का बजट था। ढ़ाई साल पहले वन विभाग के मुख्यालय द्वारा यह रिपोर्ट सरकार को भेजी गई, लेकिन आज तक फैसला नहीं हुआ। इसी तरह से पाकुड़ जिले के अमड़ापाड़ा और लिट्टीपाड़ा के कुछ हिस्सों को कॉरिडोर बनाने के लि चिन्हित किया गया। बोकारो जिले के जुमरा से झुमरा पहाड़ तक के रास्ते की पहचान की गई, गिरिडीह के सरिया, डुमरी व पीरटांड़ के इलाके के लिए भी योजना बनी, जामताड़ा जिले के नाला-कुंडहित-लाधना-धनबाद और नारायणपुर-करमटांड़-देवघर के रास्ते में भी कॉरिडोर बनाने की योजना बनाई गई। लेकिन इनमें से कोई भी योजना धरातल पर नहीं उतरी।
भूमि अधिग्रहण मुख्य बाधा
पलामू, दक्षिणी छोटानागपुर और कोल्हान के लिए भी वाइल्ड लाइफ कॉरिडोर की योजना बनाई गई। जिसके तहत हाथियों की सुरक्षा के लिए सिरसि-पालकोट-सारंडा वाइल्ड लाइफ कॉरडोर निर्माण की रुपरेखा बनाई गई। इसके तहत पलामू प्रमंडल के लातेहार जिले के अलावा दक्षिणी छोटानागपुर प्रमंडल के गुमला, खूंटी और पिलचमी सिंहभूम के 214 गांवों को चिन्हित किया गया और 1.87 लाख एकड़ भूखंड अधिगृहित करने की योजना बनाई गई, लेकिन जमीन अधिग्रहण में आने वाली परेशानियों की वजह से इसे मूत्र्त रुप नहीं दिया जा सका।