
madhya pradesh me mata ke ajab gajab mandir
रतलाम। रत्तपूरी रतलाम में प्राचीन शक्तिपीठों की धरा भी कहलाती है। शहर सहित जिले में मां भगवती के देव स्थानों का जलवा जिले व प्रदेश अन्य प्रदेशों मेंं भी सुनाई देता है। शहर में गढ़ कालिका, महिषासुर मर्दिनी तो पेलेस की पद्मावती का राज है। अंचल में राजापुरा माताजी, कंवलका के साथ ईटावा माताजी व सैलाना मां कालिका के साथ नामली क्षेत्र में मैवासा माताजी दूर-दूर तक विख्यात है। माता मंदिरों पर नवरात्र की सप्तमी, अष्ठमी व नवमी पर भक्तों का तांता लगता है। इन मंदिरों की विशेषता ये है कि किसी मंदिर में मामा भांजे का साथ आना मना है तो किसी मंदिर में मां को मदिरा चढ़ाई जाती है। यहां पढे़ं जिले के इन मंदिरों के बारे में विस्तार से।
यहां चढ़ती है मदिरा
मां कंवलका का मंदिर अपने ऐतिहासिक महत्व के लिए देशभर में प्रसिद्ध है। माता की मूर्ति जाग्रत होने के कारण भक्तों की विशेष आस्था है। मराठाकाल में निर्मित इस मंदिर में विराजित माता के दर्शन के लिए वर्षभर भक्तजन आते रहते हैं। माता के मंदिर के पास ही लालबाई का मंदिर, महिषासुर मर्दिनी का मंदिर, कालिकामाता मंदिर भी दर्शनीय स्थल हंै। शहर से 28 किलो मीटर दूर महू रोड पर बिरमावल के समीप सातरुण्डा फंटे से तीन किलोमीटर पश्चिम में करीब ६00 मीटर ऊंची पहाड़ी पर स्थित माता कंवलका का मंदिर आस्था का स्थल है। इस मंदिर की विशेषता ये है कि यहां पर भक्त माता को नवरात्रि में मदिरा प्रसाद के रुप में चढ़ाते है।
प्राचीन ईटावा माताजी बिजासन माता
शहर से सात किलो मीटर दूर ईटावा गांव में प्राचीन ईटावा माताजी के नाम से प्रसिद्ध बिजासन माता का भव्य मंदिर है। मंदिर में दो माताजी की मूर्तियां हैं। माता मंदिर के समक्ष ही भेरूजी की मूर्ति भी अतिप्राचीन है। दोनों नवरात्र में गांव की बालिकाएं गरबा नृत्य करने प्रतिदिन आती हैं। साथ बरसो से मंदिर में अखंड ज्योति जल रही है। किवंदती है कि बिजसान माता के मंदिर में संतान की कामना करने वाले दपंत्ति अधिक आते हैं। चैत्र नवरात्र में मंदिर में पांच दिवसीय आयोजन व भंडारा होता है। जिले सहित अन्य राज्यों से श्रद्धालु दर्शन वंदन के लिए यहां आते रहते हैं।
आस्था का केंद्र है मां गढख़ंखाई दरबार
रतलाम से करीब 35 किलोमीटर दूर बाजना मार्ग पर गढख़ंखाई माताजी का मंदिर एक प्रसिद्ध स्थान है। लगभग पांच सौ वर्ष पुराने मंदिर के गर्भगृह में इस स्थान पर खड़ी महकाली का परमार कालीन मंदिर है। नवरात्रि में यहां सप्तमी, अष्टमी व नवमी को श्रद्धालु दूर-दूर से आते हैं। प्राकृतिक सौंदर्य के साथ यह करन और माही नदी के संगम स्थल होने से रमणीय स्थल बना हुआ है। मान्यताओं अनुसार मंदिर का निर्माण राजाभोज ने करवाया था। जीर्णोद्धार रतलाम नरेश द्वारा भी करवाया गया। इस मंदिर में मामा भांजे का साथ आना मना है।
रास्ते में आती है पहाडि़या
गढख़ंखाई माताजी के मंदिर में किसी भी दिशा से जाए, रास्ते में मामा भांजे की पहाड़ी आती है। इन पहाडि़यों के बारे में कहा जाता है कि इनके उपर मामा भांजे का मंदिर बना हुआ है। हालाकि इन मंदिर में जाने का रास्ता कही से भी नहीं है। इस बारे में आज तक कोई ये निशान नहीं मिले है कि इतने ऊंचे पहाड़ पर मंदिर का निर्माण किस तरह से हुआ होगा। मामा भांजे मंदिर में साथ क्यों नहीं आते, इस बारे में रोचक कहानी है।
पेलेस की मां पद्मावती व चामुण्डा
रतलाम राजमहल परिसर में भूमि के धरातल से लगभग 7 फीट नीचे गर्भगृह में महादेवी पद्मावती के साथ मां चामुण्डा विराजित हैं। दोनों नवरात्रि में शहर सहित अन्य प्रदेशों से भी माता के भक्त यहां दर्शन-वंदन करने के लिए आते हैंं। नवमी पर माता का विशेष पूजन किया जाएगा। किवंदती है कि राजा पद्मसिंह देवी के उपासक थे। वे नित्य ब्रह्म मुहूर्त में देवी मां की उपासना करते थे। इसलिए महाराज ने राजमहल में एक सुंदर मंदिर का निर्माण करवाया। शारदीय नवरात्र में महिलाएं व बालिकाएं पेलेस में देर रात तक गरबा करती हैं। नवमी के दिन हवन-यज्ञ का आयोजन प्रतिवर्ष किया जाता है।
प्रदेशभर में प्रसिद्धी है मां गढ़ीकाली की
प्राचीन मां गढ़ कालिका की चमत्कारी मूर्ति शहर के मध्य विराजित है। शारदीय नवरात्र में दो समय गरबारास की परंपरा पूरे प्रदेश में प्रसिद्ध है। गर्भगृह में मां कालिका के साथ चामुण्डा व दक्षिणावर्ती सूंड वाले गणपति विराजित है। मंदिर के द्वार चांदी के बने हैं। श्रद्धालु कालिका माता मंदिर जाग्रत और पवित्र मानते हैं। ज्योर्तिविद पं. गोचर शर्मा के अनुसार सन् 1556 -16 05 ई. बादशाह अकबर के समय में भी रतलाम इसी नाम से था। आईना अकबरी के अनुसार उस समय रतलाम में लगभग 500 की जनसंख्या में सोढ़ी राजपूत परिवार राज करते थे। कहा जाता है कि इन्ही सोढ़ी परिवार ने माता पूजन के लिए कालिका देवी की स्थापना की थी। जब से अब तक माता की आराधना भव्य स्तर की जाती रही है।
मलेनी नदी के तट पर हिंगलाज विराजी
शक्तिस्वरूपा गुणावद के समीप मलेनी नदी के तट पर प्राचीन शिव-शक्ति धाम के रूप में विद्यमान हैं। मां हिंगलाज यहां 6 4 योगनियों के साथ विराजी हैं। ऐसी मान्यता है कि मां के सामने सच्चे मन से मांगी गई मन्नत, नि:संतान को संतान और भक्तों के दु:ख दूर करती है। समीप ही शिव मंदिर में पाप और धर्म के खंबे है जिनमें से निकलकर लोग पापकर्मों से मुक्ति पाते है। नगर से 34 किमी दूर ग्राम गुणावद से कुछ दूर मलेनी नदी के तट पर मां हिंगलाज टेकरी पर पर भगवान शिव के साथ दर्शन देती हैंं। पुजारी गोपालगिरी गोस्वामी का परिवार की मां सेवा करता है, बताया जाता है कि मां हिंगलाज भक्तों के दुख दूर करती हैं तो समीप ही भगवान शिव के मंदिर में पाप-धर्म के खंबे है, जिनमें से भक्त शिव-शक्ति के दर्शन कर निकलने जो भक्त निकल जाता है वह पापों से अपने आप को मुक्त समझता है। आए दिन भक्त दर्शनार्थ दूर-दूर से आते रहते है। 14 खंबों से निर्मित मंदिर शिव भगवान विराजमान है। टेकरी पर पहुंचने के लिए 107 सिढिय़ां चढक़र आना होती हैं। पुरातत्व विभाग भी इस स्थल निरीक्षण कर चुका हैं
भाई-बहन के मगरे पर विराजी गिरवरी मां
शिवगढ़-बाजना रोड स्थित ग्राम पंचायत बावड़ी में भाई-बहन के मगरे पर विराजी गिरवरी माता विराजती है। माता की यहां मनमोहक अति प्राचीन दरबार है, जहां श्रद्धालुओं का दोनों नवरात्र में दर्शनार्थ आना जाना लगा रहता है। कच्चा रास्ता और दुर्गम पहाड़ी होने के कारण यहां तक पैदल ही पहुंचा जा सकता है, जो गांव से करीब आधें में तय होता है। गांव के वागजी देवाजी मां की सेवा नित्य रूप से करते है। वागजी बताते है कि माता की मूर्ति बहुत प्राचीन है और पहले यह चमेली के पेड़ के नीचे थी। समीप है भेरूजी और दोनों तरफ भी प्रतिमाएं बाप-दादा के समय से गांववाले सेवा करते आ रहे हैं। मुझे भी 35-40 साल हो गए। 15-20 साल पूर्व माता मंदिर का निर्माण ग्रामवासियों के सहयोग से करवाया गया।
सिद्ध क्षेत्र में विराजी मां महिषासुर मर्दिनी
सिद्ध क्षेत्र ऊंकाला में मां भगवती महिषासुर मर्दिनी की एक भव्य एवं सुंदर प्रतीमा स्थित है। स्थापना के समय से ही यह मूर्ति एक तरफ से कुछ टेढ़ी है। गोपाल सोनी ने भाट पोथी के अनुसार बताया कि मारवाड़ी स्वर्णकार समाज की अतिप्राचीन धरोहर के रूप में मां शक्ति आराध्यदेवी की स्थापना 1760 के लगभर एक छोटे से मंदिर के रूप में चैत्री नवरात्र पर हुई थी। प्राण प्रतिष्ठा में आए ब्राह्मणों को स्वर्णकार समाज द्वारा दक्षिणा स्वरूप सोने के कड़े भेंट किए थे। 1995 से 2003 तक मां की आराधना के लिए गरबे भी होते थे।
Published on:
12 Oct 2018 07:02 am
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