जो मनुष्य संसार की सेवा करता है वह अपनी ही सेवा करता है : रामकृष्ण परमहंस
डाकू ठिठक गया, उसने कहा— कहिए—क्या कहना है? तथागत ने कहा—सामने वाले वृक्ष से एक पत्ता तोड़कर जमीन पर रख दो। डाकू ने वैसा ही कर दिया। उन्होंने फिर कहा—अब इसे पुनः पेड़ से जोड़ दो। डाकू ने कहा—यह कैसे संभव है। तोड़ना सरल है पर उसे जोड़ा नहीं जा सकता। बुद्ध ने गंभीर मुद्रा में कहा—वत्स, इस संसार में मार-काट तोड़-फोड़ उपद्रव और विनाश यह सभी सरल हैं। इन्हें कोई तुच्छ व्यक्ति भी कर सकता है फिर तुम इसमें अपनी क्या विशेषता सोचते हो और किस बात का अभिमान करते हो? बड़प्पन की बात निर्माण है—विनाश नहीं। तुम विनाश के तुच्छ आचरण को छोड़कर निर्माण का महान कार्यक्रम क्यों नहीं अपनाते?
अच्छे कार्यों के लिए आपके साथ हो रहे विरोध का सामना ऐसे करें : स्वामी विवेकानंद
अंगुलिमाल के अन्तःकरण में वे शब्द तीर की तरह घुसते गये। तलवार उसके हाथ से छूट पड़ी। कातर होकर उसने तथागत से पूछा—”इतनी देर तक पाप कर्म करने पर भी क्या मैं पुनः धर्मात्मा हो सकता हूं? वे बोले—”वत्स, मनुष्य अपने विचार और कार्यों को बदल कर कभी भी पाप से पुण्य की ओर मुड़ सकता है। धर्म का मार्ग किसी के लिए अवरुद्ध नहीं है। तुम अपना दृष्टिकोण बदलोगे तो सारा जीवन ही बदल जायगा। विचार बदले तो मनुष्य बदला। अंगुलिमाल ने दस्यु कर्म छोड़कर प्रव्रज्या ले ली और वह भगवान बुद्ध के प्रख्यात शिष्यों में से एक हुआ।
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