विरक्त मन को उपासना से असीम शान्ति मिलती है : भगवान महावीर
मैं क्यों उसके यहां जाऊं- वह मेरे यहां क्यों नहीं आये? उसके आश्रम में मेरा आश्रम क्यों छोटा रहे? जैसी अहंमन्यता की अति वहां भी कम नहीं होती है दूर से देखने पर जो सन्त योगी दीखते थे, पास जाने और बारीकी से देखने पर वे भी अहंकार से बेतरह ग्रस्त रोगी की तरह ही दीखते हैं।
एक ही शरीर में भले-बुरे व्यक्तित्व शान्ति सहयोग पूर्वक नहीं रह सकते : आचार्य श्रीराम शर्मा
यह अहंकार ओछेपन का चिह्न है। अन्न हजम न होने पर मुंह से खट्टी डकारें बार-बार निकलती हैं और सड़ा हुआ बदबूदार अपान वायु शब्द करता हुआ निकलता है। ठीक इसी प्रकार वाणी से आत्म प्रशंसा-शेखीखोरी अपना बखान करने की भरमार यह बताती है कि पेट में अपच है और यह खट्टी डकारें मुंह से निकल रही हैं।
तुम अपने से पूछो- कोऽहम्? मैं कौन हूं : स्वामी विवेकानंद
चकाचौंध उत्पन्न करने वाला ठाट-बाट जमाने में कितना समय, श्रम और धन नष्ट होता है, अपनी महत्ता का ढोल पीटने के लिये कितना निरर्थक सरंजाम इकट्ठा किया जाता है इसे देखकर यह समझा जा सकता है कि अपच अपान वायु के रूप में ढोल पीटने और ढिंढोरा करने की विडम्बना रच रहा है।
कोई सदगुरु अपने शिष्य से न तो कभी अपमानित होता है और न ही वह उसका त्याग करता है : संत कबीर
विभिन्न वर्ग और विभिन्न स्तर के लोग अपनी भौतिक सम्पदाओं का भौंड़ा प्रदर्शन अपने-अपने ढंग से करते रहते हैं उसमें उनकी आन्तरिक तुच्छता आत्मश्लाघा की खिड़की में से झांकती दीखती है। श्रेष्ठ व्यक्ति सम्पदा को पचा जाते हैं हजम किया हुआ अन्न रक्त बन जाता है।
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