विरक्त मन को उपासना से असीम शान्ति मिलती है : भगवान महावीर
शारीरिक और मानसिक परिश्रम का, आहार-विहार का, व्यवहार शिष्टाचार का प्रतिफल हाथों-हाथ मिलता रहता है। उनकी उपलब्धि सामयिक होती हैं, चिरस्थायी नहीं। स्थायित्व नैतिक कृत्यों में होता है, उनके साथ भाव-संवेदनाएं और आस्थाएँ जुड़ी होती हैं। जड़ें अन्तरंग की गहराई में धंसी रहती हैं, इसलिए उनके भले या बुरे प्रतिफल भी देर में मिलते हैं और लम्बी अवधि तक ठहरते हैं, इन कर्मों के फलित होने में प्रायः जन्म-जन्मान्तरों जितना समय लग जाता है।
अपने हृदय और कर्मों से संन्यासी बनो, असुविधाओं के कारण निराश न हों : अलेक्जेन्डर महान
अन्तःकरण की संरचना दैवी तत्वों से हुई हैं। उसमें स्नेह-सौजन्य सद्भाव सच्चाई जैसी प्रवृत्तियां ही भरी पड़ी हैं। जीवन यापन की रीति उत्कृष्टता के आधार पर बनाने की प्रेरणा इस क्षेत्र में अनायास ही मिली रहती है। इस क्षेत्र में जब निकृष्टता प्रवेश करती हैं, तो सहज उसकी प्रतिक्रिया होती हैं। रक्त में जब बाहरी विजातीय तत्व प्रवेश करते हैं तो श्वेत कण उन्हें मार भगाने के लिए प्राणपण से संघर्ष छेड़ते हैं और परास्त करने में कुछ उठा नहीं रखते। ठीक इसी प्रकार अन्तःकरण की दैवी चेतना आसुरी दुष्प्रवृत्तियों को जीवन सत्ता में प्रवेश करने और जड़ जमाने की छूट नहीं देना चाहती। फलतः दोनों के बीच संघर्ष छिड़ जाता है। यही अन्तर्द्वन्द्व है, जिसके रहते आन्तरिक जीवन उद्विग्न अशान्त ही बना रहता है और उस विक्षोभ की अनेक दुःखदायी प्रतिक्रिया फूट-फूटकर बाहर आती रहती है।
जीवन को सादा बनाइए, इससे आपका और समाज का बहुत बड़ा हित साधन होगा : महात्मा गांधी
दो सांड़ लड़ते हैं, तो लड़ाई की जगह को तहस-नहस करके रख देते हैं। खेत में लड़ें तो समझना चाहिए कि उतनी फसल चौपट ही हो गई। दुष्प्रवृत्तियां जब भी जहां भी अवसर पाती हैं वहीं घुसपैठ करने, जड़ जमाने में चूकती नहीं। घुन की तरह मनुष्य को खोखली करती है और चिनगारी की तरह चुप-चुप सुलगती हुई अन्त में सर्वनाशी ज्वाला बनकर प्रकट होती हैं। ठीक इसी प्रकार दुष्प्रवृत्तियाँ आत्मसत्ता पर आधिपत्य जमाने के लिए कुचक्र रचती रहती हैं, किन्तु अन्तरात्मा को यह स्थिति सह्य नहीं, अस्तु वह विरोध पर अड़ी रहती है। फलतः संघर्ष चलता ही रहता है और उसके दुष्परिणाम अनेकानेक शोक सन्तापों के रूप में सामने आते रहते हैं। मनोविज्ञानी इस स्थिति को दो व्यक्तित्व कहते हैं।
स्वामी विवेकानंद के जीवन का प्रेरक प्रसंग : सत्य का साथ कभी न छोड़े
एक ही शरीर में भले-बुरे व्यक्तित्व शान्ति सहयोग पूर्वक रह नहीं सकते। कुत्ते-बिल्ली की, सांप-नेवले की दोस्ती कैसे निभे? एक म्यान में दो तलवार ठूंसने पर म्यान फटेगी ही। शरीर में ज्वर या भूत घुस पड़े तो कैसी दुर्दशा होती है, इसे सभी जानते हैं। नशेबाजों की दयनीय स्थिति देखते ही बनती हैं। यह परस्पर विरोधी शक्तियों का एक स्थान पर जमा होना ही हैं, जिसमें विग्रह की स्वाभाविकता टाली नहीं जा सकती।
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