scriptविचार मंथन : गुप्त नवरात्रि- जैसे हम दुःखी-पीड़ित होते हैं, थकते हैं, वैसे ही माँ भी थकती होगी, उसे भूख,प्यास सताती होगी-आचार्य श्रीराम शर्मा | Gupt Navratri : daily thought vichar manthan pt. shriram sharma achary | Patrika News

विचार मंथन : गुप्त नवरात्रि- जैसे हम दुःखी-पीड़ित होते हैं, थकते हैं, वैसे ही माँ भी थकती होगी, उसे भूख,प्यास सताती होगी-आचार्य श्रीराम शर्मा

locationभोपालPublished: Jul 03, 2019 03:00:03 pm

Submitted by:

Shyam

दीपों की लहराती जगमग ज्योति से आरती उतारते समय भाव करें कि ‘मैं प्रस्तुत हूँ माँ, जो तू चाहेगी, कहेगी, वही करूंगा।

Gupt Navratri : daily thought vichar manthan

विचार मंथन : गुप्त नवरात्रि- जैसे हम दुःखी-पीड़ित होते हैं, थकते हैं, वैसे ही माँ भी थकती होगी, उसे भूख,प्यास सताती होगी-आचार्य श्रीराम शर्मा

इस भाव से उतारें मां की आरती

आरती का मतलब होता है श्रद्धास्पद का, पूज्य का, देवी माँ का, भगवान् का दुःख बाँटना। उसकी पीड़ा को अपने माथे पर लेना। उनका भार हल्का कर देना। अपने भिखारीपन को भुलाकर उनकी सेवा में अर्पित होना। उनके साथ अपनी एकात्मता की अनुभूति एवं प्रतीति पाना कि जैसे हम दुःखी-पीड़ित होते हैं, थकते हैं, वैसे ही माँ भी थकती होगी, उसे भी भूख, प्यास सताती होगी। इसलिए उनका कष्ट अपने माथे पर लेने के लिए आरती उतारी जाती है। दीपों की लहराती जगमग ज्योति के बीच यह भाव व्यक्त किया जाता है कि ‘मैं प्रस्तुत हूँ माँ- जो तू चाहेगी, कहेगी, वही करूंगा।’ लेकिन हम हैं कि उनसे माँगते ही रहते हैं, उनको सताते ही चले जाते हैं।

 

ये भी पढ़ें : gupt navratri – माँ दुर्गा के दिन है कमाल

 

माँ से क्या मांगे

माँ मुझे धन दो, यश दो, सन्तान दो, क्या नहीं माँगते। मजे की बात तो यह है कि हमारे पास माँ से माँगने के लिए समय है, उसके पास बैठने के लिए समय नहीं है। इसके लिए बहुत हुआ तो किसी पण्डित, पुजारी को नौकर रख लेंगे। ठीक किसी कुपुत्र या कुपुत्री की तरह, जो अपनी माँ की सेवा न करके, इसके लिए किसी नर्स को रख देती है। भला नर्स की नौकरी और सन्तान की सेवा का सुख या परिणाम क्या समान हो सकता है?

 

रथयात्रा 2019 : भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा के 13 चमत्कारी रहस्य

 

माँ को वाणी से तो माँ कह रहे हैं पर..

नवरात्रि के दिनों में देश तो मातृमय हो रहा होता है, लोग मन्दिरों और घरों में जुटते हैं। लेकिन उस परमानन्द के आदिस्रोत से नहीं जुड़ पाते, जहाँ से जीवन मिलता और चलता है। कहाँ है मेलों में मिलन का मूलभाव? किधर है विलग के विलीन होने की स्थिति? हमारे अपने-अपने अहं की दीवारें तो यथावत है। माँ को वाणी से तो माँ कह रहे हैं, जोर-जोर से कह रहे हैं, लेकिन हृदय से उसे माँ मान नहीं पा रहे। लगता है कि हम सिर्फ प्रतीक की परिक्रमा, पूजा एवं कर्मकाण्ड तक ही ठहर गए हैं।

 

Gupt Navratri : माता महाकाली की गुप्त नवरात्र में ऐसे करें विशेष साधना

 

माँ के चरणों में अनुराग

हम प्रतीति, प्रीति, श्रद्धा, संवेदना, प्रेम एवं माँ के चरणों में अनुराग की एक सच्ची सन्तान की भाँति निष्कपट हो जी नहीं पा रहे। अगर ऐसा होता तो हमारी यह नवरात्रि लोक परम्परा एवं लोक व्यवहार की लीक न रहकर माँ की अलौकिक प्रभा से जगमग कर रही होती। हमारे जीवनों में माँ का दिव्य ज्योति अवतरण हो रहा होता।

 

ये भी पढ़ें : गुप्त नवरात्रि में इसलिए होती है मां दुर्गा के अलावा इनकी गुप्त पूजा, अद्भुत रहस्य

 

हम माँ के होकर भी माँ के बन नहीं पा रहे..

कहीं ऐसा तो नहीं कि हम नवरात्रि में फिर से चूक रहे हैं। हम माँ के होकर भी माँ के बन नहीं पा रहे। हम केवल रोटी बनकर उसके सामने माथा नवाते हैं। सुख-साधन, दाम, दुकान की कामना का दम्भ लेकर माँ के पास आते हैं। और यह जबरदस्ती करते हैं कि हम जो चाहते हैं, वह तो तुम्हें देना ही पड़ेगा। हां हमें तुम्हारे दुःख से कोई सरोकार नहीं रहा। रोज-मर्रा की तरह नवरात्रि के दिनों में भी हम यह नहीं जान पा रहे कि माँ हमसे यह चाहती है कि हम सब उसकी सन्तानें मिल-जुलकर, एक मन और एक प्राण होकर रहें।

****************

loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो