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भीष्म पितामाह ने देह त्याग के लिए चुना था मकर संक्रांति का दिन, यहां जानें इस दिन के ऐतिहासिक और रोचक किस्से

हर साल 14 जनवरी को मनाया जाने वाला यह त्योहार इस बार 15 जनवरी को मनाया जाएगा। लेकिन इस दिन का ऐतिहासिक महत्व भी है। क्या आप जानते हैं इस दिन कई ऐतिहासिक घटनाएं हुईं हैं? इस लेख में पत्रिका.कॉम आपको बता रहा है कुछ ऐसे ही ऐतिहासिक और इंट्रेस्टिंग फैक्ट्स...

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Sanjana Kumar

Jan 14, 2023

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भोपाल। हिंदू धर्म में सूर्यदेवता से जुड़े कई प्रमुख त्योहार को मनाए जाने की परंपरा है। उन्हीं में से एक त्योहार है मकर संक्राति। इस बार मकर संक्रांति का समय 14 जनवरी की शाम से शुरू हो रहा है। इसीलिए उदयातिथि में 15 जनवरी को मकर संक्रांति का पर्व मनाया जाएगा। शीत ऋतु के पौष मास में जब भगवान सूर्य उत्तरायण होकर मकर राशि में प्रवेश करते हैं, तो सूर्य की इस संक्रांति को मकर संक्रांति के रूप में देशभर में मनाया जाता है। हर साल 14 जनवरी को मनाया जाने वाला यह त्योहार इस बार 15 जनवरी को मनाया जाएगा। लेकिन इस दिन का ऐतिहासिक महत्व भी है। क्या आप जानते हैं इस दिन कई ऐतिहासिक घटनाएं हुईं हैं? इस लेख में पत्रिका.कॉम आपको बता रहा है कुछ ऐसे ही ऐतिहासिक और इंट्रेस्टिंग फैक्ट्स...

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मकर संक्रांति पर दान और स्नान का महत्व
शास्त्रों में मकर संक्रांति के दिन स्नान, ध्यान और दान का विशेष महत्व माना गया है। पुराणों में मकर संक्रांति पर्व को देवताओं का दिन माना गया है। मान्यता है कि इस दिन किया गया दान सौ गुना होकर आपके पास वापस लौट आता है।

यहां पढ़ें मकर संक्रांति के दिन का रोचक इतिहास...

- भीष्म पितामाह ने देह त्याग के लिए चुना था ये दिन महाभारत काल में भीष्म पितामह ने अपनी देह त्यागने के लिए मकर संक्रांति का दिन चुना था।

- मकर संक्रांति के दिन ही गंगाजी भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होती हुई सागर में जा मिली थीं।

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ये भी है रोचक कथा
श्रीमद्भागवत एवं देवी पुराण के मुताबिक, शनि महाराज का अपने पिता से वैर भाव था, क्योंकि सूर्य देव ने उनकी माता छाया को अपनी दूसरी पत्नी संज्ञा के पुत्र यमराज से भेद-भाव करते देख लिया था, इस बात से नाराज होकर सूर्य देव ने संज्ञा और उनके पुत्र शनि को अपने से अलग कर दिया था। इससे शनि और छाया ने सूर्य देव को कुष्ठ रोग का शाप दे दिया था। पिता सूर्यदेव को कुष्ठ रोग से पीडि़त देखकर यमराज काफी दुखी हुए। यमराज ने सूर्यदेव को कुष्ठ रोग से मुक्त करवाने के लिए तपस्या की। लेकिन सूर्य ने क्रोधित होकर शनि महाराज के घर कुंभ, जिसे शनि की राशि कहा जाता है उसे जला दिया। इससे शनि और उनकी माता छाया को कष्ट भोगना पड़ रहा था। यमराज ने अपनी सौतली माता और भाई शनि को कष्ट में देखकर उनके कल्याण के लिए पिता सूर्य को काफी समझाया। तब जाकर सूर्य देव शनि के घर कुंभ में पहुंचे।

कुंभ राशि में सब कुछ जला हुआ था। उस समय शनि देव के पास तिल के अलावा कुछ नहीं था इसीलिए उन्होंने काले तिल से सूर्य देव की पूजा की। शनि की पूजा से प्रसन्न होकर सूर्य देव ने शनि को आशीर्वाद दिया कि शनि का दूसरा घर मकर राशि मेें आने पर धन धान्य से भर जाएगा। तिल के कारण ही शनि को उनका वैभव फिर से प्राप्त हुआ था। इसलिए शनि देव को तिल प्रिय है। तभी से मकर संक्रांति पर तिल से सूर्य एवं शनि की पूजा का नियम शुरू हुआ।